खरी-खरीः सीएए पर छात्रों-महिलाओं के आंदोलन को निर्णायक अंजाम तक ले जाने की जिम्मेदारी विपक्ष की

अब पीएम मोदी और आरएसएस खुलकर पूरी ताकत के साथ भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने में जुट चुके हैं। ऐसे में मोदी विरोधी विपक्ष के लिए बीच का कोई रास्ता नहीं बचा। एनआरसी पर उत्पन्न जन आक्रोश के बीच विपक्ष को संविधान बचाने के नारों के साथ सड़कों पर उतरना ही पड़ेगा।

फोटोः सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

भारत का चप्पा-चप्पा इन दिनों संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ जन आंदोलन से प्रभावित है। शहर दर शहर लाखों की संख्या में भारतीय सड़कों पर निकल कर आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में पुलिस दमन के बावजूद अभी भी आंदोलन जारी है। इस लेख के लिखे जाने तक इलाहाबाद और कानपुर से समाचार मिला कि वहां दिल्ली के शाहीन बाग की तर्ज पर महिलाएं रात को एनआरसी और संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ रोज प्रदर्शन कर रही हैं। लब्बोलुआब यह है कि सारे देश में मोदी सरकार के खिलाफ एक उबाल है जो एक देशव्यापी आंदोलन का स्वरूप ले रहा है।

इस जन आंदोलन के तीन-चार मुख्य बिंदु हैं जो अभी तक उभर कर सामने आए हैं। पहला तो यह है कि अभी तक यह विशुद्ध जनता का आंदोलन है जिसका कोई बड़ा नेतृत्व नहीं है। शहरों-शहरों में नागरिक समूह स्वयं इस आंदोलन की ‘कॉल’ देते हैं। जिसमें जनता स्वयं निकलकर सीएए और एनआरसी की वापसी की मांग करती है। दूसरी उल्लेखनीय बात यह है कि इस आंदोलन में हिंदू-मुस्लिम एकता साफ नजर आ रही है, जबकि मोदी सरकार की पूरी मंशा यह थी कि संशोधित नागरिकता कानून और एनआरसी की पहल के जरिए देश में एक नए हिंदू-मुस्लिम विभाजन की नींव रख दी जाए।

तीसरा सबसे मुख्य बिंदु जो उभरा है वह यह है कि इस आंदोलन में हिस्सा लेने वाली युवा पीढ़ी संविधान और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा की मांग कर रही है। चौथी बात यह है कि इस आंदोलन में मुस्लिम महिलाओं की भारी साझेदारी है जो एक अद्भुत बात है। इतिहास पर नजर रखने वाले कहते हैं कि मुस्लिम समाज में ऐसा 1920 के दशक में खिलाफत आंदोलन या हाल में बाबरी मस्जिद सरंक्षण एवं तीन तलाक के मुद्दे पर भी नहीं हुआ।

इस परिप्रेक्ष्य में यह एक अनोखा आंदोलन है। अब प्रश्न यह है कि इस आंदोलन का भविष्य क्या होगा? क्या यह आंदोलन अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफल होगा कि नहीं? फिर इसका कोई एक केंद्रीय नेतृत्व उभरेगा कि नहीं? इसमें से किसी प्रश्न का सीधा उत्तर दे पाना अभी संभव नहीं है।

परंतु एक बात स्पष्ट है। वह यह कि मोदी सरकार इस मुद्दे पर कम से कम जल्दी पीछे हटने वाली नहीं है। स्वयं नरेंद्र मोदी हिंदुत्व विचारधारा में डूबे हुए हैं और भारत को हिंदू राष्ट्र का स्वरूप देना उनकी प्राथमिकता है। बाकी संपूर्ण राजनीति उनके इस लक्ष्य प्राप्ति का केवल एक उपाय से अधिक नहीं है। एनआरसी द्वारा मुस्लिम समाज के संपूर्ण अधिकारों की समाप्ति हिंदू राष्ट्र की नींव को मजबूत कर सकता है। अतः सरकार एनआरसी और उसके लिए बनाए गए नए नागरिकता कानून पर एक कदम भी पीछे हटने वाली नहीं है। बल्कि संभावना यह है कि इस मुद्दे पर सरकारी दमन और बढ़ सकता है।

इन परिस्थितियों में इस आंदोलन को आगे कैसे बढ़ाया जाए। एक बात स्पष्ट है और वह यह है कि केवल नागरिकों द्वारा अपने अधिकारों की लड़ाई का अपने लक्ष्य में सफल होना कठिन होता है। अतः इस आंदोलन को एक राजनीतिक स्वरूप देना आवश्यक है। वह राजनीतिक स्वरूप केवल राजनीतिक पार्टियां ही दे सकती हैं। क्या मोदी विरोधी विपक्ष इस बात के लिए तैयार है। इसमें कोई शक नहीं है कि कांग्रेस से लेकर अधिकतर क्षेत्रीय दलों ने इस मुद्दे पर जनता का साथ दिया है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि इस मुद्दे पर जैसी उत्तेजना जनता में दिखाई पड़ रही है वैसा जोश-खरोश राजनीतिक दलों में नहीं दिखाई पड़ रहा है।

ममता बनर्जी ने तो पूरी ताकत के साथ अपनी पार्टी को इस आंदोलन में झोंक दिया है। परंतु दूसरी विपक्षी पार्टियां अभी तक इस मामले में पूर्ण रूप और पूरी शक्ति के साथ नहीं कूदी हैं। विपक्षी दलों में मोदी की खुली हिंदुत्व राजनीति ने एक भय की भावना उत्पन्न कर दी है। विपक्ष को यह प्रतीत होता है कि यदि वह नए नागरिकता कानून और एनआरसी जैसे मुद्दे पर पूरी शक्ति से कूद पड़ें तो कहीं मोदी उनको पाकिस्तानी समर्थक की पंक्ति में खड़ा न कर दें। मोदी के भाषणों से यह स्पष्ट भी है कि उनकी रणनीति यही है।

परंतु विपक्ष के पास रास्ता क्या है। एक बात बहुत स्पष्ट है और वह यह कि देश में अब सॉफ्ट हिंदूवादी राजनीति की कहीं कोई जगह नहीं बची है। केवल मोदी और बीजेपी ही इस राजनीति के प्रतीक हैं और इस राजनीति का चुनावी लाभ केवल उन्हीं को मिलेगा। अर्थात चुनावी गणित के अनुसार विपक्ष के लिए आवश्यक है कि वह एक हिंदुत्व विरोधी ‘नैरेटिव’ लेकर जनता के सामने जाए। जाहिर है कि इस हिंदू प्रधान देश में वह ‘नैरेटिव’ हिंदू विरोधी नहीं हो सकता है तो फिर एनआरसी जैसे मुस्लिम विरोधी मुद्दे पर विपक्ष का क्या नैरेटिव हो सकता है। पहली बात तो यह है कि एनआरसी केवल मुस्लिम विरोधी नहीं है। यह गरीब विरोधी भी है क्योंकि गरीब चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, वह सरकार को वे दस्तावेज नहीं दे सकता है जो इस मुद्दे पर वह मांग रही है। स्वयं असम में एनआरसी से 12 लाख हिंदू अपनी नागरिकता खो बैठे और अब उन्हें कैंपों में ले जाने की तैयारी है। यह बात विपक्ष उठा तो रहा है परंतु उसके स्वर अभी तक मंद हैं।

विपक्षी दलों को पूरी ताकत के साथ अपने कार्यकर्ताओं को प्रेरित कर जनता के बीच यह बात पहुंचानी होगी। इस उद्देश्य में कोई भी हिचकिचाहट स्वयं विपक्षी दलों के लिए हानिकारक होगी। दूसरा काम जो विपक्ष को करना है वह यह कि इस आंदोलन को संपूर्ण रूप से संविधान संरक्षण का स्वरूप देना होगा। विपक्ष यह बात कह भी रहा है, लेकिन उसमें वह ऊर्जा नहीं है जो संविधान को लेकर स्वयं जनता के बीच है। कांग्रेस ने इस संबंध में 26 जनवरी को जो प्रस्तावना (संविधान की मूल प्रतिज्ञा) का देश भर में पाठ करने का जो ऐलान किया है, वह सराहनीय है।

स्वतंत्रता आंदोलन और देश को संविधान प्रदान करने के साथ एक आधुनिक भारत निर्माण के इतिहास के साथ कांग्रेस पार्टी की यह पहली जिम्मेदारी है कि वह इस आंदोलन को संविधान बचाओ आंदोलन का स्वरूप देकर इसको एक देशव्यापी राजनीतिक स्वरूप दे, जिसमें हर धर्म का गरीब जुड़े। कांग्रेस ने यह पहल कर दी है। कांग्रेस कार्यकारिणी समिति इस संबंध में प्रस्ताव पारित कर चुकी है। फिर मोदी विरोधी विपक्षी पार्टियों की एक बैठक भी इस संबंध में हो चुकी है। अब इस संबंध में दो काम तुरंत होने चाहिए। एक तो संसद के बजट सत्र में विपक्ष को इस मुद्दे पर तुरंत लामबंद होना चाहिए। दूसरा यह कि दिल्ली में जैसी विपक्षी दलों की बैठक हुई वैसी ही बैठक क्षेत्रीय दलों के सहयोग से हर प्रदेश की राजधानी में होनी चाहिए, जिसके साथ अंत में एक बड़ी रैली भी होनी चाहिए।

अब यह तय है कि नरेंद्र मोदी और संघ खुलकर पूरी ताकत के साथ भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने में जुट चुके हैं। मोदी विरोधी विपक्ष के लिए अब बीच का कोई रास्ता नहीं बचा है। क्योंकि व्यवस्था लगभग संपूर्ण रूप से मोदी के साथ है। अतः विपक्ष के पास ‘स्ट्रीट पॉलिटिक्स’ (सड़क पर उतरने की राजनीति) का ही रास्ता बचा है। एनआरसी पर उत्पन्न जन आक्रोश और देश की चरमराती आर्थिक व्यवस्था से उत्पन्न जनपीड़ा के मुद्दे को लेकर विपक्ष को संविधान संरक्षण तथा ‘मोदी हटाओ-देश बचाओ’ जैसे नारों के साथ सड़कों पर उतरना ही पड़ेगा।

कोई भी आंदोलन दो दिनों में सफल नहीं होता है। नागरिकता का नया कानून और एनआरसी के खिलाफ जन आंदोलन भी केवल छात्रों और शाहीन बाग रैली जैसे आक्रोश से नहीं कामयाब होगा। इसका यह अर्थ नहीं है कि इस मुद्दे पर नागरिक आंदोलन थमना चाहिए, बल्कि अब यह विपक्ष की जिम्मेदारी है कि वह इसकी बागडोर संभालकर इसको विभिन्न चरणों में संविधान से जोड़कर सफल बनाए। जनता ने इस आंदोलन में अपनी भागीदारी स्पष्ट कर दी है। अब विपक्ष की जिम्मेदारी इस उद्देश्य को पूरा करने की है।

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