आकार पटेल का लेख: सिर्फ बुलेट ट्रेन ही नहीं, हमें विकसित करनी होगी जापान जैसी आधुनिकता और रचनात्मकता
दुनिया के 50 फीसदी से ज्यादा बुलेट ट्रेन के यात्री जापानी हैं। पिछले 50 सालों में शिनकानसेन (बुलेट ट्रेन) में कोई हताहत नहीं हुआ है, इसका मतलब यह हुआ कि दुर्घटना में एक भी आदमी नहीं मरा, जबकि करोड़ों यात्रियों ने इससे सफर किया।
बुलेट ट्रेन परियोजना को लागू करने का काम भारत ने शुरू कर दिया है। ऐसी खबरें थीं कि मूंबई-अहमदाबाद के रास्ते पर जमीन अधिग्रहण के दौरान समस्याएं आ रही हैं लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि यह मामला सुलझ जाएगा। यह लेख इस अनुमान के साथ लिखा जा रहा है कि ट्रेन परियोजना जल्द ही शुरू हो जाएगी। इतनी लंबी-चौड़ी परियोजना में कुछ बाधाएं तो होंगी ही, लेकिन उम्मीद है कि वे छोटी होंगी। अगर सबकुछ सही रहता है तो हम कुछ सालों में विदेशी सहायता और तकनीक से बुलेट ट्रेन को चलता हुआ पाएंगे। जापान पिछले 50 सालों से बुलेट ट्रेन चला रहा है और यह पूरे देश में चलता है। कुछ साल पहले, पूर्वोत्तर के सूदूर राज्य होकैदो को भी बुलेट ट्रेन से जोड़ दिया गया। ऐसा समुद्र में एक सुरंग के निर्माण के बाद हुआ।
मेरी नजर में जापान (मैं वहां दो बार लंबे समय के लिए रहा हूं) दुनिया का सबसे उन्नत समाज है। यह बिना संदेह के यूरोप से ज्यादा उन्नत है और निश्चित तौर पर चीन से बहुत ज्यादा उन्नत है। उन्नत से मेरा मतलब यह है कि जापान के लोग ज्यादा आधुनिक हैं। इसलिए उनकी तकनीक भी आधुनिक है। इसका उलटा सही नहीं है। जापान इसलिए आधुनिक नहीं है कि वहां के लोग ज्यादा दिखावटी उपकरण इस्तेमाल करते हैं।
दूसरी बात यह है कि वहां के लोग इसलिए आधुनिक नहीं है क्योंकि वे अंग्रेजी में काम करते हैं। वास्तव में, लगभग कोई नहीं वहां अंग्रेजी बोलता है, वहां जाने वालों को यह बात पता है। लेकिन इससे पर्यटकों को वहां मिलने वाले आसान अनुभव में बाधा नहीं पहुंचती है। उनकी आधुनिकता उनकी संस्कृति और डिजाइन में नजर आती है। जापान पर्यटकों की आवाजाही के लिए दुनिया का सबसे आसान देश है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जापानी लोग डिजाइन की गुणवत्ता पर ज्यादा जोर देते हैं।
मैं आपको कुछ उदाहरण देता हूं। जापान के कई वॉश बेसिन टॉयलेट की टंकियों की तरह भी काम करते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि जो पानी आप अपना हाथ धोने के लिए इस्तेमाल करते हैं, वही टॉयलेट की टंकियों में भर जाता है जो फ्लश करने के काम में आता है। यह एक आसान तरीका है। यह टॉयलेट में खर्च होने वाले 30 से 40 फीसदी पानी की बचत करता है। लेकिन मैं किसी और ऐसे समाज को नहीं जानता जिसने इसके बारे में सोचा हो और इसका इस्तेमाल करता हो।
जापान के शिनकानसेन (बुलेट ट्रेन) में आपकी सीट के आगे यानी आपके सामने की सीट पर बैठे हुए यात्री के पीछे वाले भाग में एक खांचा बना होता है। इसमें आप अपना टिकट रखते हैं, ताकि जब आपके सोने के वक्त कंडक्टर आता है तो उसे आपका टिकट चेक करने के लिए आपको जगाने की जरूरत नहीं होती। यह कम खर्च में होने वाला एक तार्किक तरीका है जो आपकी नींद और कंडक्टर के वक्त का सम्मान करता है। इसके साथ ट्रेन में ही सीट को दूसरी तरफ घुमाया जा सकता है ताकि आप एक दूसरे के आमने-सामने हो पाएं। अगर 6 सदस्यों वाला एक परिवार साथ सफर कर रहा है तो वे तीन सीटों वाली पंक्ति को घुमा सकते हैं और एक ही तरफ देखने की बजाय एक-दूसरे के आमने-सामने देखते हुए बैठ सकते हैं। एक बार फिर, आसान लेकिन सुविचारित।
मैंने दुनिया के कई देशों की यात्राएं की हैं लेकिन मैंने इस स्तर की डिजायन गुणवत्ता और कार्यक्षमता नहीं देखी है। जापानी लोग लगातार प्रक्रियाओं और उत्पादों को बेहतर बनाने के लिए छोटे-बड़े तरीकों के बारे में सोचते रहते हैं। ऐसा दावा किया जाता है कि यह नजरिया अमेरिका के विशेषज्ञ द्वारा आयात किया गया था। मुझे इस पर यकीन करने में मुश्किल होती है। मुझे इसमें संदेह नहीं है कि डेमिंग नाम के एक प्रबंध सलाहकार उनके उद्योगों को कुछ तकनीक दिखाने जापान गए थे। मेरा मतलब यह है कि कैजेन (इन क्रमिक सुधारों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला जापानी शब्द) की संस्कृति और नजरिया वहां पहले से मौजूद था।
165 साल पहले तक जापान के शासकों ने जानबूझकर बाहरी दुनिया से जापान को बंद कर रखा था। उसके पहले भी एशियाई स्तर के हिसाब से जापान समृद्ध था। यह चावल का अतिरिक्त उत्पादन करता था (भारत से अच्छी किस्म का चावल आयात करने के बाद)। लेकिन यह ऊंची छलांग पिछली एक सदी में लगाई गई है। दुनिया के 50 फीसदी से ज्यादा बुलेट ट्रेन के यात्री जापानी हैं। पिछले 50 सालों में शिनकानसेन में कोई हताहत नहीं हुआ है, इसका मतलब यह हुआ कि दुर्घटना में एक भी आदमी नहीं मरा, जबकि करोड़ों यात्रियों ने इससे सफर किया। यह कोई चमत्कार या अच्छा भाग्य नहीं है। ऐसा सुविचारित है और सावधानी और विवेक के इस्तेमाल और निरंतर कोशिशों के कारण संभव हुआ है।
बुलेट ट्रेन अपने आप में आधुनिकता नहीं है। यह आधुनिकता का उत्पाद है। यह वह आधुनिकता है जिसे जापान से आयात करने में हम सक्षम हुए तो हमारा सौभाग्य होगा, लेकिन निश्चित रूप से इसे बोतल में भरकर भेजा नहीं जा सकता।
जितने भी सांस्कृतिक उपकरण हमारे पास मौजूद हैं, उसकी मदद से इसे हमें ही विकसित करना होगा। और अगर हमारे पास वे नहीं हैं तो किसी भी तरह हमें उसे सीखने की तरीके ढूढ़ने होंगे। मैं यहां मौजूदा सरकार की या किसी और सरकार की आलोचना नहीं कर रहा हूं। लेकिन मैं ऐसा समझता हूं कि हम इस बात पर भरोसा करते हुए लगते हैं कि खिलौने खरीदने से हम आधुनिक राष्ट्र बन जाएंगे। यह सच नहीं है। ऐसा होने के लिए समाज को बदलना होगा, और निश्चित रूप से यह किसी सलाहकार या सरकार का काम नहीं है।
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