ट्रंप की नई पाक नीति की वजह भारत नहीं, अफगानिस्तान है
भारत को अमेरिका की नई पाकिस्तान नीति का समर्थन करने की बजाय उसे बड़े परिप्रेक्ष्य में देखना होगा। पाकिस्तान से हमारे रिश्ते इस बात से नहीं तय होने चाहिए कि अमेरिका क्या कह या कर रहा है।
अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक मदद बंद की है, इससे एशिया में ध्रुवीकरण और बढ़ेगा। चीन पहले से पाकिस्तान के साथ है और उसने इस मामले में भी पाक का साथ देने की बात कही है। पाकिस्तान और चीन दोनों की निगाहें अफगानिस्तान पर हैं और अमेरिका की चिंता की बड़ी वजह अफगानिस्तान है। यह भी समझना जरूरी है कि अमेरिका इससे पहले भी अपनी मदद पाकिस्तान को बंद कर चुका है और हमेशा से आतंकवाद पर कड़ी कार्रवाई करने के लिए उस पर दबाव बनाता रहा है। इस बार निश्चित तौर पर राशि बड़ी है और इसकी भरपाई करना पाक के लिए जाहिराना तौर पर मुश्किल होगा।
अमेरिका पिछले कुछ समय से पाकिस्तान पर यह दबाव बना रहा था कि वह आतंवादी हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई करे। इस नेटवर्क और इसके विस्तार से अमेरिका परेशान है। पाकिस्तान की अफगानिस्तान में अलग रुचि है। उसे पता है कि अमेरिका को अफगानिस्तान में अपने ऑपरेशन बंद करअपने पांव वापस खींचने हैं। उसके बाद पाक की भूमिका इस इलाके में बढ़नी है। अमेरिका, पाक पर अपनी गिरफ्त कम नहीं होने देना चाहता है। इसलिए एक तरफ आर्थिक मदद बंद की और दूसरी तरफ यह भी धमकी दी है कि पाक को वह गैर नाटो एलाइंयस से बाहर कर देगा। अगर ऐसा हुआ तो वाकई पाक गहरे संकट में फंस जाएगा। फंड कटौती-फंड बंदी की पाक को आदत है, लेकिन हथियारों के मामले में उसके लिए मुश्किल हो सकती है।
यह भी हमें समझना चाहिए कि अमेरिका, पाकिस्तान में अपने सारे ऑपरेशन नहीं बंद करने जा रहा है। ड्रोन को लेकर सीआईए का मिशन चलता रहेगा और यह पाकिस्तान की धरती पर आतंकवाद के खिलाफ चलाए जाने वाला सबसे विवादित मिशन है। इसका कड़ा विरोध पाकिस्तान में भी है, क्योंकि आतंकवादियों पर होने वाले ड्रोन हमलों में बड़ी संख्या में मासूम नागरिक भी मारे जाते हैं। वैसे, यह भी सच है कि पाकिस्तान खुद भी आतंकवाद का सबसे ज्यादा सताया हुआ देश है। पिछले 10 सालों में पाकिस्तान में 60 हजार से अधिक लोग आतंकवाद का शिकार हो जान गंवा चुके हैं। पाकिस्तान भी आतंकवाद से लड़ने के लिए बड़े प्रयास कर रहा है, लेकिन सत्ता और सेना में उनका दखल भी किसी से छिपा नहीं है।
ऐसा लगता है कि हम और अधिक ध्रुवीकृत एशिया की तरफ बढ़ रहे हैं। अमेरिका के इस कदम ने पाकिस्तान को चीन की तरफ ढकेल दिया है। चीन की इस महाद्वीप को लेकर अपनी जो रणनीति हैउसमें यह बात उसके लिए मुफीद बैठती है।
पिछले साल से अमेरिका इस बात के लिए भी पाकिस्तान पर दबाव बना रहा था कि पाक अफगानिस्तान को लेकर उसकी नई नीति का समर्थन करे। वैसे पाक के अमेरिका से रिश्ते तभी से गड़बड़ हैं, जब से अमेरिका ने पाक की सरहद में घुस कर ओसामा बिन लादेन को मारा था। विश्वास की डोर तब से टूट गई है। लेकिन, फिर भी यह सच है कि पाक अमेरिकी मदद पर बहुत ज्यादा हद तक निर्भर रहा है। क्योंकि चीन उसे कर्ज देता है। इसलिए दोनों में बहुत फर्क है।
जहां तक भारत की बात है तो दोनों देशों में तनाव का लंबा इतिहास रहा है। अमेरिका और भारत पाकिस्तान पर आतंकवाद को प्रश्रय देने का आरोप लगाते रहे हैं। मुझे लगता है कि अभी भारत को अमेरिका की नई पाकिस्तान नीति का समर्थन करने की बजाय उसे बड़े परिप्रेक्ष्य में देखना होगा। पाकिस्तान से हमारे रिश्ते इस बात से नहीं तय होने चाहिए कि अमेरिका क्या कह या कर रहा है। हमें पाकिस्तान से वार्ता करनी ही होगी, उससे वार्ता के द्वार खोले ही रखने होंगे। हमें अपने रुख को सकारात्मक ही रखना होगा और यह भी ध्यान में रखना होगा कि पूरे एशिया में अलग-अलग हितों के मद्देनजर अलग-अलग देश अपनी क्रिया-प्रतिक्रिया करते ही हैं। हमें अपने पड़ोसी देश के साथ मसलों को अपने ही स्तर पर सुलझाने होंगे।
(भाषा सिंह से बातचीत पर आधारित)
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