राम पुनियानी का लेखः कोरोना से लड़ाई में अंधश्रद्धा की जगह नहीं, सरकार के साथ बीजेपी-संघ को भी होना होगा गंभीर
कोरोना से मुकाबले के लिए पीेएम मोदी के आह्वान पर 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का पालन तो हुआ, लेकिन शाम तक कई जगहों पर जुलूस निकाल इसे दूसरा रंग दे दिया गया। ये सब बीजेपी नेता शायना एनसी उस दावे के तहत हुआ कि बैक्टीरिया-वायरस के लिए काल होती है शंख ध्वनि।
इस समय पूरी दुनिया, कोविड-19 वैश्विक महामारी से मुकाबला करने में जुटी है। चीन से शुरू हुई यह जानलेवा बीमारी विश्व के लगभग सभी देशों में फैल गई है। अपनी आबादी और आकार के चलते भारत के लिए इस बीमारी से लड़ना एक बड़ी चुनौती है। इस सिलसिले में कई कदम उठाए जा चुके हैं, कुछ उठाए जा रहे हैं और कुछ आगे भी उठाए जाएंगे।
लेकिन इस लड़ाई को और मुश्किल बना रहे हैं सत्ताधारी दल और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा इस बीमारी के इलाज के संबंध में किए जा रहे अजीबोगरीब दावे। ऐसे दावे करने वालों की अपनी खोखली मान्यताओं में जुनून की हद तक आस्था होती है और उनके दावों को तार्किकता की कसौटी पर कसने वाले उनके दुश्मन बन जाते हैं। डा. नरेद्र दाभोलकर, गोविंद पंसारे और एम. एम. कलबुर्गी की हत्या इसी का सुबूत हैं। इस तरह के तत्वों को सांप्रदायवादी राष्ट्रवाद के उदय से बढ़ावा मिल रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार 22 मार्च 2020 को पूरे देश में जनता कर्फ्यू का आव्हान किया था। यह आव्हान भी किया गया था कि कोरोना से लड़ रहे डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों के प्रति जताने के लिए उसी दिन शाम पांच बजे लोग अपने घरों की बालकनियों में निकलकर थालियां और अन्य बर्तन बजाएंगे। इस कुछ गलत भी नहीं था, लेकिन कई जगहों पर इसे एक दूसरा ही रंग दे दिया गया।
देश में कई जगहों पर जुलूस निकाले गए, जिनमें भाग ले रहे लोग शंख फूंक रहे थे, बर्तन पीट रहे थे और तालियां बजा रहे थे। जाहिर है कि इस तरह के जुलूसों से जनता कर्फ्यू के मूल उद्देश्य को ही पलीता लग गया। यह सब होने का एक कारण वह विश्वास था कि शोर मचाने से वायरस और बैक्टीरिया मर जाते हैं। किसी और ने नहीं, बल्कि महाराष्ट्र बीजेपी की एक नेता शायना एनसी ने टवीट् कर पुराणों के हवाले से यह दावा किया कि शंख की ध्वनि, बैक्टीरिया और वायरस के लिए काल होती है।
इसी तरह स्वामी चक्रपाणी महाराज ने कुछ दिनों पहले दिल्ली में गोमूत्र पार्टी का आयोजन किया जिसमें सभी मेहमानों को गोमूत्र परोसा गया और उन लोगों ने गोमूत्र पिया भी, क्योंकि उनका यह विश्वास था कि इससे कोरोना वायरस से उनकी रक्षा होगी। एक अन्य बीजेपी नेता द्वारा आयोजित इसी तरह की पार्टी में गोमूत्र सेवन करने वाला एक शख्स बीमार पड़ गया, जिसके बाद हंगामा मच गया। इसी तरह असम के बीजेपी विधायक सुमन हरिप्रिया ने कोरोना से लड़ाई में गोबर की भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला।
यह कतई आश्चर्यजनक नहीं है कि गोमूत्र, गोबर आदि के औषधि के रूप में इस्तेमाल की वकालत करने वाले सभी लोग बीजेपी की विचारधारा से जुड़े हुए हैं। गोमूत्र के विलक्षण गुणों के बारे में भारतीयों को सबसे पहले साल 1998 में बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए के सत्ता में आने के बाद पता चला। पीएम मोदी के एक निकट सहयोगी, गुजरात के शंकरभाई वेगड़ का दावा है कि गोमूत्र के सेवन के कारण ही वे 76 वर्ष की आयु में भी पूरी तरह स्वस्थ हैं।
इसके अलावा मालेगांव बम धमाकों की आरोपी और भोपाल से बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के अनुसार उन्हें स्तन कैंसर था जो गोमूत्र का सेवन करने से ठीक भी हो गया। यह अलग बात है कि उनके डाक्टर के अनुसार उनकी तीन सर्जरी हुईं थीं।
अब यहां सवाल उठता है कि क्या यह मानने का कोई तार्किक कारण है कि गोमूत्र से बीमारियां ठीक हो सकती हैं? भारत सरकार ने गोमूत्र और पंचगव्य (गोबर, गोमूत्र, दूध, दही और घी का मिश्रण) पर रिसर्च के लिए एक बड़ी धनराशि आवंटित की है। कई केन्द्रीय शोध संस्थान, गो-उत्पादों और भारतीय गाय की विशेषताओं पर शोध कर रहे हैं।
चिकित्सा विज्ञान में किसी भी दवा की प्रभावोत्पादकता के परीक्षण के लिए जैव रासायिनक अध्ययन किए जाते हैं, क्लीनिकल ट्रायल होते हैं और दवा के प्रचलन में आ जाने के बाद भी लगातार उसके प्रभाव का अध्ययन और आंकलन जारी रहता है। गौ उत्पादों के बारे में जो भी दावे किये जा रहे हैं, वे केवल और केवल आस्था पर आधारित हैं। उनके पीछे न तो कोई वैज्ञानिक तर्क हैं और न ही कोई वैज्ञानिक अध्ययन।
जहां तक गौमूत्र का सवाल है अन्य जानवरों के मूत्र की तरह उसमें भी वे ही तत्व होते हैं जिन्हें शरीर अनुपयोगी या हानिकारक मानकर उत्सर्जित कर देता है। गोमूत्र में लगभग 90 प्रतिशत पानी होता है। इसके अलावा उसमें यूरिया, क्रियेटेनिन, सल्फेट और फास्फेट इत्यादि होते हैं। गोमूत्र के चिकित्सकीय गुणों को साबित करने के लिए कोई क्लीनिकल ट्रायल नहीं किए गए हैं। ये सारे दावे आस्था और विश्वास पर आधारित हैं। कुछ तत्व केवल अपनी विचारधारा को दूसरों पर लादने के लिए गोमूत्र के संबंध में बेसिर-पैर के दावे कर रहे हैं।
दरअसल गौमूत्र, गोबर आदि का महिमामंडन, हिन्दू राष्ट्रवाद की परियोजना का हिस्सा है। हिन्दू राष्ट्रवादी देश पर लैंगिक और जातिगत ऊंच-नीच पर आधारित सोच लादना चाहते हैं। इसीलिए यह दावा भी किया जाता है कि प्राचीन भारत ने हजारों वर्ष पूर्व वे सारी वैज्ञानिक उपलब्धियां हासिल कर ली थीं जो आधुनिक दुनिया ने पिछले सौ-दो सौ वर्षों में हासिल की हैं।
बीजेपी की तरह ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक और अनुषांगिक संगठन ‘विज्ञान भारती’ पौराणिक साहित्य में आधुनिक विज्ञान को ढूढ़ने पर आमादा है। इस एजेंडे का उद्देश्य है प्राचीन भारत को स्वर्णयुग के रूप में प्रस्तुत करना और पारंपरिक हिन्दू मूल्यों की सर्वोच्चता स्थापित करना, जिसमें विमान थे, टेलीविजन था, इंटरनेट था और प्लास्टिक सर्जरी भी होती थी।
दरअसल हिन्दुत्ववादी गाय का प्रयोग दो ढ़ंग से कर रहे हैं- एक ओर गाय के नाम पर लिंचिंग की जा रही है तो दूसरी ओर गोमूत्र और गोबर को चमत्कारिक दवा के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। बाबा रामदेव का पतंजलि संस्थान गौ-उत्पादों पर आधारित कई तरह की दवाईयों का उत्पादन कर रहा है और नागपुर में गौविज्ञान अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की गई है।
अब तक तो ये सब ठीक था, लेकिन अब कोरोना जैसी महामारी से मुकाबला करने के लिए सरकार और समाज दोनों को कठिन प्रयास करने होंगे। इस लड़ाई में अंधविश्वास और अंधश्रद्धा के लिए कोई जगह नहीं हो सकती। खासकर अब ये बीजेपी-आरएसएस की जिम्मेदारी है कि वह इस लड़ाई की गंभीरता को समझते हुए सरकार के तौर पर और पार्टी के तौर पर भी ईमानदार भूमिका निभाएं और देश और समाज दोनों को बचाने के लिए जरूरी प्रयास करें।
(लेख का हिंदी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा)
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