संपत सरल का व्यंग्यः इंडिया को चाहे जितना डिजिटल कर दो मोदी जी, रोटी डाउनलोड नहीं होगी!
राजा की खुद की डिग्रियां संदेहास्पद थीं, किंतु उसने 15 मिनट तक छात्रों को परीक्षा में पूरे अंक लाने के ऐसे नुस्खे बताए कि सब कॉपी-किताब कबाड़ी को बेच सिनेमा देख आए। वे इस उम्मीद से परीक्षा ही टाल गए कि हो न हो एक दिन राजा डिग्री प्राप्ति का नुस्खा भी बताएगा।
हम सब लोग बड़ेसहज रहते हैं। अब जैसे कई लोग मान लेते हैं कि ये तो मोदीजी का विरोधी है। जबकि हम किसी व्यक्ति कीआलोचना नहीं करते हैं। हम उसकी भूमिका की आलोचना करते हैं। उसको जो करना चाहिए और वो जो नहीं कर रहा है, उसको अंडरलाइन करते हैं। सटायर (व्यंग्य) 2014 से पहले भी होता था। हम एक लघुकथा आपको सुनाते हैं।
हम बाजारवाद के युग में जी रहे हैं। एक है बाजार, जो हर समय की जरूरत है। एक है बाजारवाद। बाजारवाद का मतलब है चीजें बनाकर जरूरत पैदा करना। पूरी दुनिया का सेनेरियो आप देखें चाहे वो ट्रंप हों, शिंजो आबे हों, जिनपिंग हों, पुतिन हों या अपने वाले हों या कोई और। लोगों को लगता है कि राजा का चुनाव जनता करती है जबकि ऐसा नहीं है। दस-पंद्रह मल्टीनेशनल कंपनियां मिलकर जिसमें चाभी भर देती हैं, वह खिलौना चल पड़ता है। चालाक अर्थशास्त्रियों ने सारे समीकरण उलट-पलट कर दिए और चुंबक के गुण बाजार में भर दिए और मनुष्य को लोहा बना दिया!
ये जो चीज थी इसको महात्मागांधीने समझा था। वो चीज अगर हम समझ जाएंगे, जब तक नैतिक बल हम में नहीं होगा, इन व्यवस्थाओं से इन चीजों से हम लड़ नहीं सकते। तब आप देखें, ग्लोबलाइजेशन। इस समय पूरी दुनिया में अनियंत्रित टेक्नॉलाजी और बेकाबू पूंजी दोनों का नेक्सस चल रहा है। ये धर्म, धर्मांधता, राष्ट्रवाद सब उन्हीं की उपज हैं। जब चुनाव परिणाम आए तो एक भक्त का फोन आ गया। भक्त तो आप जानते हो। भक्त किसको कहते हैं। जिसके आंखें तो होती हैं लेकिन दृष्टि नहीं होती! लेकिन हम जीवन में सहज रहते हैं। बोले, और सुनाओ क्या हालचाल हैं। मैंने कहा, हालचाल ठीक हैं और सुनाने के पैसे लेते हैं। फिर उसने तंज किया और बोले, आप तो सुनाते थे, अब फिर जीत गए मोदीजी। मैंने कहा, अच्छा है, हम को भी नया नहीं लिखना पड़ेगा!
तो मैं बता रहा था- ग्लोबलाइजेशन, उदारीकरण। महल के मुख्यद्वार पर अपार जनसमूह का शोर सुन राजा राम ने लक्ष्मण से प्रश्न किया- ये कैसी आवाज आ रही है अनुज। ये कौन लोग होंगे। उत्तर मिला- भगवन सब अयोध्या वाले ही हैं। जब से राज्य में ग्लोबलाइजेशन आया है, प्रत्येक नागरिक धनुष-बाण खरीदने के लिए लोन लेना चाहता है, ताकि वह भी सोने का हिरण मार सके!
मुझे तो हंसी तब आती है, जब नेहरू की नकल करते हुए उन्हें खारिज करने की कोशिश की जाती है। उन्होंने डिस्कवरी आफ इंडिया लिखी। और ये डिस्कवरी चैनल के लिए एक्टिंग कर रहे हैं! मेरे ये बात समझ में नहीं आई साहब कि नेहरू को छोटा करने से पटेल कैसे बड़े हो जाएंगे! शायद नौजवान पीढ़ी जानती नहीं। भावनाओं में बह जाते हैं और भाषणों में खो जाते हैं। जिस सरदार सरोवर के तट पर पटेल की सबसे ऊंची मूर्ति लगाई गई, उस सरदार सरोवर का शिलान्यास ही पंडित नेहरू ने किया था।
मिथकों के नाम पर महापुरुषों के नाम पर लड़ाया जाता है। बीजेपी के एक बड़े नेता ने कह दिया कि बापू का आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं था। हमने उसका बुरा नहीं माना कि हो सकता है कि वह खुद के बापू के बारे में कह रहे हों! फिर इन्हीं की पार्टी के एक प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने कह दिया कि जबसे नोटों पर गांधी का चित्र छपा है, नोटों की कीमत घट गई। यही भारतीय प्रजातंत्र की खूबसूरती है कि शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार आदमी भी स्वास्थ्य मंत्री बनाया जा सकता है!
फिर पार्टी अध्यक्ष ने तो यहां तक कह दिया कि गांधी एक चतुर बनिया थे। ऐसी मूर्खताओं से बड़ी चहल-पहल है देश में! पहली बार ऐसा नहीं हुआ। वे भूल जाते हैं कि गांधी जैसे विराट व्यक्तित्व ने हिंदुस्तान को निर्भीक होना सिखाया, सारी दुनिया को एक दृष्टि दी।
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia