विष्णु नागर का व्यंग्यः नेहरू से साहेब और संघ की नफरत जायज, ऐसा देश बनाया कि आज भी हिंदू राष्ट्र नहीं बना पा रहे!
अब आप अपने राज में नेहरू जी के प्रति नफरत उगलते और उगलवाते हो। आज भी फेसबुक, ट्विटर वगैरह पर यही सब ट्रेंड करेगा। यही आपके लिए 'हिन्दू पहचान' है। यही आपके लिए 'हिन्दू संस्कार' हैं, यही आपकी संघी संस्कृति है।
साहेब आपने गणवेश में तो जन्म नहीं लिया होगा या लिया था? लिया हो तो बता दो। मैं अपनी गलती सुधार लूंगा और माफी मांग लूंगा। तो आज के दिन आपके स्कूल में भी 'बाल दिवस' मनाया जाता होगा, 'चाचा नेहरू जिन्दाबाद' के नारे लगते होंगे। आपने भी लगाए होंगे। खैर आप सच मत बोलना। आपकी 'प्रतिष्ठा' को धक्का लगेगा। आपकी कीर्ति दुनिया भर में धूमिल पड़ जाएगी। आपकी पहचान को क्षति पहुंचेगी। हम तो साहेब, नेहरू जी की मृत्यु पर रोये थे। रोये तो शायद आप भी होंगे। हो यह भी सकता है, तब तक आप शाखा में जाने लगे हों और हंसे हों।मिठाई खाई हो। 'गांधी वध' की मिठाई के वक्त तो आपका जन्म नहीं हुआ था। उस मिठाई को तो आपने बुरी तरह 'मिस' किया होगा!
अब आप अपने राज में नेहरू जी के प्रति नफरत उगलते और उगलवाते हो। आज भी फेसबुक, ट्विटर वगैरह पर यही सब ट्रेंड करेगा। यही आपके लिए 'हिन्दू पहचान' है। प्रचार करो कि नेहरू के दादा गयासुद्दीन गाज़ी थे। वे मुगलों के कोतवाल थे। अरे हां आपके बंधुबांधव 'थे' भी तो नहीं कह सकते, 'था' कहेंगे। उन्होंने को उसने कहेंगे। कहेंगे कि उसने अपना नाम गंगाधर नेहरू रख लिया था। यही आपके लिए 'हिन्दू संस्कार' हैं, यही आपकी संघी संस्कृति है।
साहेब आप और आपके संघ ने सबको पचाने की भरपूर कोशिश की मगर नेहरू को तो आप पचाने की सोच भी नहीं पाए। वे इतने कड़े, इतने मजबूत निकले कि ऐसा करते तो आपके पितृसंगठन के दांत टूट जाते मगर आप उन्हें छोड़ भी नहीं सकते थे। वही तो थे, जिन्होंने आजाद भारत में आपका खेल शुरू करने से पहले ही बिगाड़ दिया था और इतना अधिक बिगाड़ दिया थां कि संभलते-संभलते 2014 आ गया। आज उन्हें गालियां देते हो। जाने क्या-क्या झूठ फैलाते हो!
चाहे जितनी कोशिश करके देख लो। चाहे जितने साल सत्ता-सुख भोग लो, चाहे जितना नेहरू जी को गरिया लो, चाहे जितना गंगाधर को गयासुद्दीन बना लो पर यह खेला ज्यादा चलेगा नहीं। कल महाशयों आपका कोई नामलेवा न होगा। सूने घर में दीपक जलाने वाला न होगा। आपकी तरह के सूरमा भारत ने न जाने कितनी बार देखे हैं। वे आए। उन्होंने आपकी तरह सब नष्ट किया, लूटा और चले गए। लोगों ने उन्हें उनके असली रूप में ही याद किया। वे चाहे आपके खैरख्वाह अंग्रेज रहे हों, जिनकी गुलामी आप और आपकी मातृसंस्था आज तक करती आ रही है। बस मुसलमान-मुसलमान, मुगल-मुगल तोते की तरह रटते रहते हो!
नेहरू जी को आप माफ करोगे भी कैसे, उन्होंने भारत को 'हिन्दू पाकिस्तान' बनाने की संघ की कोशिशों को नाकाम कर दिया। भारत विभाजन से फैली नफरत भी आपके काम नहीं आई।उन्होंने भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाया और आज 2021 में भी आप सारा जोर लगाकर भी इसे 'हिन्दू राष्ट्र' बना नहीं पा रहे हो। यह आपकी सबसे बड़ी दुखती रग है।
नेहरू जी के इस 'गुनाह' को आप माफ कर नहीं पाओगे, मगर आपकी सारी नफरत, सारा दुष्प्रचार उनके व्यक्तित्व को खरोंच तक नहीं लगा पाएगा। ओछापन साहेब, कभी बड़प्पन पर जीत नहीं पाया है। नफरत की जीत कभी कहीं भी स्थायी नहीं हुई है।
फिर आपकी नजर में नेहरू का यह कोई अकेला 'गुनाह' तो था नहीं। भारत तब 'हिन्दू पाकिस्तान' नहीं बना और यहां लोकतंत्र जड़ें पकड़ने लगा। आपको भी लोकतंत्र की हत्या करते हुए झूठमूठ लोकतंत्र की माला जपनी पड़ती है। फिर उन्होंने एक मजबूत आर्थिक ढांचा खड़ा किया, जिस पर यह गरीब देश खड़ा हो सका। उस ढांचे को नष्ट करने का सुख आज ले रहे हो, मगर कल यही सुख अपने जहरीले डंक से आप सबको मारेगा!
और साहेब, नेहरू जी ने एक भी फर्जी डिग्री नहीं ली। कभी 'एंटायर पोलिटिकल साइंस' में एमए नहीं किया। कभी झूठ को आदर्श नहीं बनाया। नफरत को औजार नहीं बनाया। यही नहीं, आपकी पूरी संघी बिरादरी से हजार गुना ज्यादा भारत, उसके लोगों, उसकी संस्कृति की समझ उन्हें थी। 'भारत एक खोज' और 'विश्व इतिहास की एक झलक' जैसी किताबें कोई संघी सात जन्म में भी नहीं लिख सकता, न लिखवा सकता है!
नौ बरस वह अंग्रेजों की जेल में रहे थे। नेहरू जी के तीन मूर्ति हाउस में कुल एक एसी था और वह भी मेहमानों के लिए। उनके लिए खटर-खटर आवाज करने वाले पंखे थे। आपके घर में कितने एसी हैं साहेब? बीस या तीस या चालीस या सौ? नेहरू जी का सीना पता नहीं कितने इंच का था। हो सकता है, 56 इंच का नहीं हो मगर साहेब, दंगाइयों के सामने सीना तानकर खड़े होने की हिम्मत गांधी और नेहरू में ही थी, छप्पन इंची में यह साहस कहां? क्यों साहेब, कुछ गलत तो नहीं कहा?
तो साहेब आप लोगों की तकलीफ समझ में आती है। आप कहते हो, नेहरू अय्याश थे। जिसे दिन भर में छह ड्रेस बदलने को चाहिए, जिसे लाखों का चश्मा चाहिए, जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति जैसा विमान चाहिए, जिसे रेसकोर्स रोड पर बनी कोठी से संतोष नहीं, जिसे अकेली जान के लिए बड़ा सा राजमहल चाहिए। जिसे अपने अलावा कुछ सूझता नहीं। जिसे अपनी फोटो के अलावा कुछ दिखता नहीं। वह सादगी से जीने वाले पहले प्रधानमंत्री के बारे में ऐसा झूठ फैलाए तो शर्म के अलावा क्या आएगी? साहेब,आप ही ईमानदारी से बताओ!
साहेब, ओ साहेब, क्या आपको नींद आ गई साहेब! क्या तबियत बिगड़ गई साहेब! क्या सुषेण वैद्य को बुलाएं, साहेब!
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