बिहार में एनडीए हारे या जीते, लेकिन नीतीश के पर कतरने में कामयाब हो गई बीजेपी
बिहार में किसकी सरकार बनेगी, अभी तय नहीं है, और मौजूदा रुझाने के मुताबिक महागठबंधन और एनडीए के बीच कड़ी टक्कर चल रही है। लेकिन एक बात तय है कि इस चुनाव के जरिए बीजेपी ने नीतीश कुमार के पर जरूर कतर दिए हैं।
बिहार में वोटों की गिनती जारी है और फिलहाल तेजस्वी यादव की अगुवाई वाले महागठबंधन और एनडीए के बीच कड़ा मुकाबला दिख रहा है। अंतिम नतीजे देर रात तक साफ होने की उम्मीद है क्योंकि कोरोना की एहतियातों के चलते मतगणना धीमी हो रही है। लेकिन एक बात साफ हो गई है कि एनडीए जीते या हारे, नीतीश का कद छोटा करने में बीजेपी कामयाब हो गई है।
अगर शाम 6 बजे तक के रुझानों को देखें तो बीजेपी 72 सीटों पर और जेडीयू 42 सीटों पर बढ़त बनाए हुए थी। ध्यान रहे कि इस चुनाव में बीजेपी ने 110 और जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा है। इन आंकड़ों के अनुसार ही अंतिम नतीजे होंगे अभी कहा नहीं जा सकता, लेकिन बीजेपी के साथ प्यार और नफरत का रिश्ता रखने वाले नीतीश कुमार का सियासी कद जरूर छोटा हो गया है। हालांकि बीजेपी ने घोषित किया है कि नतीजा कुछ भी हो अगर एनडीए की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री नीतीश ही होंगे, लेकिन जेडीयू इस दया को कितना बरदाश्त कर पाएगी, ये देखने वाली बात होगी, क्योंकि अभी तक तो बिहार में नीतीश कुमार बड़े भाई की भूमिका में रहे हैं और पहली बार उन्हें छोटे भाई की भूमिका में आना होगा।
इतना ही नहीं मौजूदा रुझानों वाले ही नतीजे रहे तो बीजेपी और जेडीयू के बीच एलजेपी को लेकर तनाव बढ़ सकता है, क्योंकि एलजेपी एनडीए का तो हिस्सा है और बीजेपी से उसकी दोस्ती भी है, लेकिन उसने बिहार में नीतीश कुमार की जेडीयू को अपना दुश्मन नंबर एक घोषित कर रखा है। एलजेपी अध्यक्ष चिराग पासवान तो यहां तक कह चुके हैं कि वे नीतीश कुमार को जेल भेज देंगे और वे पीएम मोदी के हनुमान हैं क्योंकि उनके दिल में पीएम मोदी बसते हैं।
बिहार में यह चर्चा खूब रही है कि बीजेपी का एक धड़ा हमेशा ही एनडीए में नीतीश कुमार की ही चलने पर खासा नाराज रहा है, खासतौर से मोदी के साथ उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव और 2015 के विधानसभा चुनाव में जो बरताव किया उसे बीजेपी भूली नहीं है। इस धड़े को लगता है कि नीतीश की लोकप्रियता का ग्राफ नीचे आते ही जेडीयू में टूट हो जाएगी क्योंकि पार्टी में नीतीश के बाद कोई दूसरा नेता नजर ही नहीं आता। माना जा रहा है कि जेडीयू से छिटकने वाले ज्यादातर नेता बीजेपी का ही दामन थामेंगे।
चुनावी विश्लेषकों का हमेशा से मानना रहा है कि राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियां राज्यों में हमेशा कमजोर क्षेत्रीय दलों को अपना साझीदार बनाती है। बीजेपी ने महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ बड़े भाई की भूमिका में आने की कोशिश की, ऐसा ही कुछ पंजाब में अकालियों के साथ हुआ, और नतीजा अंतत: यह हुआ कि दोनों ही दल एनडीए से अलग हो गए।
हालांकि यह सब कहना अभी जल्दबाजी भी हो सकती है क्योंकि पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और फिर उसके बाद उत्तर प्रदेश के चुनावों के मद्देनजर बीजेपी शायद नीतीश की जेडीयू के फिलहाल डम्प न करे। यूं भी बीजेपी पर एक ऐसी पार्टी होने के आरोप लगते रहे हैं कि वह भरोसे लायक गठबंधन साथी नहीं है।
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