प्रधानमंत्री जी, ‘फिटनेस चैलेंज’ तो ठीक है, लेकिन बाहर की हवा साफ-सुथरी होगी तभी तो योग और टहलने से होगा फायदा
दिल्ली-एनसीआर की हवा में प्रदूषण का स्तर खतरनाक की सीमा भी लांघ चुका है। सरकार आंखें बंद किये बैठी है और लोग सांस लेने में भी दिक्कत महसूस कर रहे हैं। पर प्रधानमंत्री को वायु प्रदूषण कभी नहीं महसूस होता है और न ही उनका इस पर कोई वक्तव्य आता है।
जब रोम जल रहा था (वायु प्रदूषण तब भी हो रहा होगा) तब नीरो बांसुरी बजा रहा था और जब पूरा देश वायु प्रदूषण की चपेट में है तब हमारे प्रधानमंत्री मीडिया और पूरे देश को फिटनेस टेस्ट दिखा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि योग और टहलने से वे स्वस्थ रहते हैं और इससे पूरा देश स्वस्थ रह सकता है। योग और टहलना दोनों ही खुली हवा में किये जाते हैं। यदि बाहर की हवा साफ सुथरी है तो इससे फायदा होगा, पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यदि हवा प्रदूषित है तब इससे नुकसान होगा। प्रधानमंत्री ने यह सब ऐसे समय में किया है जब दिल्ली-एनसीआर की हवा में प्रदूषण का स्तर खतरनाक की सीमा भी लांघ चुका है। सरकार आंखें बंद किये बैठी है और लोग सांस लेने में भी दिक्कत महसूस कर रहे हैं। पर प्रधानमंत्री को वायु प्रदूषण कभी नहीं महसूस होता है और न ही उनका इस पर कोई वक्तव्य आता है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास कोई योजना नहीं है, वह तो केवल इतना बताता है कि प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है। दिल्ली की जो हालत है उसमें आप आंकड़े न भी दें तब भी लोगों को प्रदूषण के स्तर का पता चल जाता है। जहां प्रदूषण नियंत्रण की बात आती है, वहां सभी सरकारी संस्थाएं चुप्पी साध लेती हैं। केंद्रीय बोर्ड लगातार मॉनिटरिंग नेटवर्क बढ़ाने की बात करता है, पर प्रदूषण को नियंत्रित करने की बात कभी नहीं करता। अब उपग्रहों से प्रदूषण के आकलन की बात की जा रही है, पर हालत में कभी सुधार होगा ऐसा नहीं लगता। ऐसा नहीं है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पहले कभी उपग्रह का इस्तेमाल नहीं किया हो। जोनिंग एटलस नामक परियोजना में इसके चित्रों का भरपूर इस्तेमाल किया गया था, पर प्रदूषण नियंत्रण की जिम्मेदारी कभी इस संस्थान ने उठायी ही नहीं।
मॉनिटरिंग नेटवर्क की जो हालत है उसे भी सारा देश देख रहा है। केंद्रीय बोर्ड के वायु गुणवत्ता इंडेक्स को देखने पर इस नेटवर्क की लीपापोती समझी जा सकती है। 29 मई को दिल्ली में कुल 24 मॉनिटरिंग स्टेशन के आंकड़ों के आधार पर बताया गया कि यहां की हवा खराब है, जबकि 3 जून को महज 4 स्टेशन के आंकड़ों के आधार पर बताया गया कि हवा में प्रदूषण मध्यम श्रेणी का है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि 3 जून को कुल 24 स्टेशन में से मात्र 4 ही काम कर रहे थे। अब ऐसे नेटवर्क का क्या फायदा है, यह तो केंद्रीय बोर्ड ही बता सकता है। यह भी संभव है कि 3 जून को विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) की तैयारियों के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर समेत सभी बड़े अधिकारी दिल्ली में मौजूद थे, ऐसे में वायु प्रदूषण का स्तर मध्यम दिखाने की सरकारी मजबूरी रही होगी और ऐसा 20 स्टेशन के आंकड़े हटाने के बाद ही संभव हो पाया होगा। यह मजबूरी आंकड़ों में दिखती भी है। 1 जून से 5 जून तक दिल्ली में विश्व पर्यावरण दिवस के कार्यक्रम चलते रहे और इन दिनों दिल्ली की वायु गुणवत्ता मध्यम बनी रही। इसके ठीक एक दिन पहले तक वायु गुणवत्ता खराब रही थी, और कार्यक्रम खत्म होने के अगले दिन से फिर खराब स्तर तक पहुंच गयी।
विश्व स्तर पर भारत और चीन की वायु गुणवत्ता सबसे खराब मानी जाती थी, पर अब चीन ने शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर 30 से 40 प्रतिशत तक कम कर लिया है। हमारे देश में तो बस दावे ही दावे हैं और प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। चीन ने समस्या को स्वीकार किया और फिर पूरे जोश के साथ इसे नियंत्रित करने में जुट गया, अब परिणाम सामने हैं। हमारे देश में समस्या को स्वीकार करने के बदले पर्यावरण संरक्षण में 5000 साल के परंपरा की दुहाई दी जाती है, वसुधैव कुटुम्बकम बताया जाता है और प्रदूषण के घातक स्तर को बताने वाली रिपोर्टों को सिरे से खारिज किया जाता है।
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