मनोवैज्ञानिक विकार से जूझ रही देश की आधी से अधिक आबादी, आने वाले वर्षों में हम सभी होंगे मानसिक रोगी!
सत्ता के समर्थन में देश की आधी से अधिक आबादी है। समर्थक होना मनोविज्ञान के सन्दर्भ में सामान्य प्रक्रिया है, पर अंध-भक्त होना एक मनोवैज्ञानिक विकार है। इससे देश की आधी से अधिक आबादी जूझ रही है, और यह इनके व्यवहार से भी स्पष्ट होता है।
यदि देश का यही हाल रहा और सत्ता निरंकुश ही रही तो निश्चित तौर पर आने वाले वर्षों में देश की पूरी आबादी मानसिक रोगों की चपेट में होगी। देश की सत्ता जिन हाथों में है, वे सभी मानसिक रोगों से ग्रस्त हैं। सत्ता का आधार विपक्ष, विकास, इतिहास और व्यवस्था पर लगातार बोला जाने वाला धाराप्रवाह झूठ है। इसमें से अधिकतर झूठ ऐसे होते हैं, जिनकी तालियों और नारों से परे कोई उपयोगिता नहीं होती, पर झूठ उगलने की ऐसी लत है कि संसद से लेकर चुनावों तक झूठ ही झूठ बिखरा पड़ा है। बचपन, शिक्षा, परिवार, कामकाज– सब में केवल झूठ। मनोवैज्ञानिक मानते है कि लगातार जाने-अनजाने झूठ बोलना महज झूठ नहीं है बल्कि एक गंभीर मानसिक रोग है। जब झूठ बोलने की ऐसी लत लगी हो जिसमें सच खोजना भी कठिन हो तब उसे पैथोलोजिकल लाइंग कहा जाता है और हमारे सत्ता के शीर्ष पर बैठे आकाओं में यही लक्षण हैं।
सत्ता में जितने मंत्री-संतरी हैं, प्रवक्ता हैं, उन्हें अपना अस्तित्व ख़त्म कर बस एक ही नाम की माला जपनी है। संभव है कुछ निकम्मे लोग सही में अपना अस्तित्व मिटा देना चाहते हों, पर अधिकतर लोगों के लिए अपना अस्तित्व मिटाकर केवल एक नाम की माला जपना और हरेक समय उसे सही साबित करना निश्चित तौर पर एक मानसिक तनाव वाला काम होगा। महंगाई और बेरोजगारी जैसी सर्वव्यापी समस्या पर भी सत्ता के शिखर पर बैठे लोगों की तारीफ़ में कसीदे गढ़ना निश्चित तौर पर बहुत सारे नेताओं को मानसिक तौर पर कमजोर कर रहा होगा। देश की मीडिया में बैठे अधिकतर पत्रकार भी ऐसी मानसिक समस्या से जूझ रहे होगें और अपना अस्तित्व तलाश रहे होंगे।
मानसिक दिवालिया की सबसे बड़ी पहचान है कि वह अपने आपको सर्वज्ञानी समझता है, हरेक विषय का विशेषज्ञ समझता है। सांख्यिकी विशेषज्ञों से अधिक ज्ञानी, अर्थशास्त्रियों से अधिक ज्ञानी, वैज्ञानिकों से अधिक जानकार, सेना के प्रमुखों से बड़े रक्षा विशेषज्ञ, पर्यावरणविदों से बड़ा और पूरे देश से भी बड़ा समझने वाला एक मानसिक दिवालिया है जो अपने आप को स्वयंभू मसीहा मानता है। मसीहा तो हमें भी मानना पड़ेगा क्योंकि इतने के बाद भी जनता विश्वास कर रही है और उसे भी विश्वास है कि गद्दी तो उसी की है। एक सामान्य आदमी जितने झूठ जिन्दगी भर में बोल पाता होगा, उतने झूठ तो स्वयंभू मसीहा एक दिन में ही बोल जाता है। दरअसल जब वह बोलना शुरू करता है तब पूरे भाषण में से सच को खोजना पड़ता है, जैसे बादलों के बीच से राडार वायुयान को खोजता है या फिर नहीं खोज पाता। वैज्ञानिकों, समाजशास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों को भी हैरानी होती होगी कि झूठ बोलने की कोई सीमा है भी या नहीं।
मानसिक दिवालिया की पूरी एक फ़ौज है। इस फ़ौज के पास भी कोई काम नहीं है सिवाय इसके झूठ को और आगे फैलाने का। अभी तो ज्ञान केवल राडार तक ही पंहुचा है, इन्हें अगले पांच साल और दे दीजिए। चंद्रयान की कोई पहेली यदि ईसरो के वैज्ञानिक नहीं बूझ पाएंगे तो हमारे स्वयंभू इस पहेली को चुटकियों में हल करने की क्षमता रखते है। अगली बार तक तो समस्या से पहले ही हल निकल आएगा, आखिर इंटायर पोलिटिकल साइंस जैसे विषय के दुनियाभर में अकेले छात्र जो ठहरे। नेहरु खानदान को जो अपने बारे में जो जानकारी नहीं है, वह इनके भाषणों से प्रचारित की जाती है। दरअसल, कभी-कभी तो महसूस होता है कि नेहरु खानदान को अपना इतिहास इसी मानसिक दिवालिया से लिखवाना चाहिए। ये महान वैज्ञानिक भी हैं। शंकर जी को भले ही न पता हो कि गणेश जी प्लास्टिक सर्जरी की देन हैं पर इन्हें यह भी खबर है। डीएनए के बारे में तो ये शक्ल देख कर ही बता देते हैं कि खराब है या अच्छा। जब कोई नेता कोई और दल छोड़कर इनकी शरण में आ जाता है तब ये अपनी रहस्यमयी शक्तियों से उसके खराब डीएनए को अच्छा भी कर देते हैं।
झूठ, फरेब और बंटवारा करने के बाद शासन कैसे चलाना है, यह इनसे सीखा जा सकता है। देश की जनता महान है, झूठ सहने की क्षमता भी अद्भुत है। झूठे गढ़े गए नारों पर जयकारा लगाने लगी है। अपने और देश का विकास इसी झूठ में खोजने लगी है। पड़ोस में मरता किसान नहीं दिखाई देता पर किसानों का स्वयंभू मसीहा दिखता है। अपने बेरोजगार बच्चे नहीं दिखते पर मनगढ़ंत रोजगार के आंकड़े दिखते हैं। नोटबंदी की मार नहीं दिखती पर इसके झूठे फायदे दिखते हैं। जनता को ही बदलना होगा, नहीं तो मानसिक विकलांग ही हमपर शासन करेंगे और अगले पांच वर्षों में हम सब ऐसे ही हो जायेंगे।
सत्ता के समर्थन में देश की आधी से अधिक आबादी है। समर्थक होना मनोविज्ञान के सन्दर्भ में सामान्य प्रक्रिया है, पर अंध-भक्त होना एक मनोवैज्ञानिक विकार है। इससे देश की आधी से अधिक आबादी जूझ रही है, और यह इनके व्यवहार से भी स्पष्ट होता है। देश की सामान्य अंध-भक्त आबादी पहले से अधिक उग्र और हिंसक हो चली है। व्यवहार में हिंसा के साथ ही भाषा भी लगातार हिंसक होती जा रही है। भाषा के साथ ही भीड़ की हिंसा मनोविज्ञान के तौर पर सामान्य नहीं है। सामान्य मस्तिष्क किसी भी विषय पर खुद विश्लेषण कर किसी भी सन्दर्भ का खुद निष्कर्ष निकालता है और उसके अनुसार व्यवहार करता है। आज के दौर में देश की आधे से अधिक आबादी के मस्तिष्क ने विश्लेषण करना बंद कर दिया है, और यह आबादी सही मायने में मनुष्य नहीं बल्कि भेंड़ जैसी हो गयी है जिसके बारे में विख्यात है कि झुण्ड का एक सदस्य जिस दिशा में चलना शुरू करता है, बाकी सभी सदस्य उसी दिशा में जाने लगते हैं।
जो सत्ता के काम का, नीतियों का और इसके नेताओं के वक्तव्यों और फरेब का विश्लेषण करने लायक बचे हैं – ऐसे लोग अलग मानसिक यातनाएं झेल रहे हैं। ऐसे लोग जो सोच रहे हैं वे कहीं लिख नहीं सकते, किसी से बोल नहीं सकते, उसपर व्यंग्य नहीं कर सकते, उसपर गाने नहीं बना सकते और इसे किसी कार्टून या चित्र में ढाल नहीं सकते। ऐसी आबादी घने धुंध से घिर गयी है और कभी भी ऑन-लाइन से लेकर शारीरिक हमले का शिकार हो सकती है, मारी जा सकती है, या फिर घर को बुलडोजर से ढहाया जा सकता है। अभिव्यक्ति पर तमाम पाबंदियों के साथ मारे जाने का डर हम सभी को मानसिक यातनाएं दे रहा है। जरा सोचिये एक लेखक को हरेक शब्द लिखते हुए यह डर सताए कि इसका क्या असर होगा, किसी स्टैंड-अप कॉमेडियन को हरेक शब्द बोलने से पहले सोचना पड़े कि इसके बाद कहीं जेल तो नहीं होगी, फिल्म बनाते समय यह सोचना पड़े कि किसी गाने में नायिका ने भगवा तो नहीं पहना है, फिल्म का पोस्टर रिलीज़ करने के पहले सोचना पड़े कि कितने शहरों में मुकदमा झेलना पड़ेगा–जाहिर है ऐसे माहौल में आपका दम घुटने लगेगा और हरेक तरह की अभिव्यक्ति जकड जायेगी। यही आज देश का माहौल है। हम जो सोच रहे हैं उसे सार्वजनिक तौर पर अभिव्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। इस घुटन में सबकी अभिव्यक्ति मर रही है, दम तोड़ रही है और हमें मानसिक रोगों से घेर रही है।
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia