मोदी, ट्रम्प और इमरान: आने वाले तूफान की निशानी है लोकतंत्र को कमजोर करने वाले शासकों की बढ़ती फेहरिस्त

इन दिनों हर देश में भ्रष्टाचार के नाम पर चलने वाले राजनीतिक आंदोलन एक ‘खास ताकत’ के द्वारा खड़े किये गए फर्जी आंदोलन होते हैं। ऐसे हर आंदोलन का उद्देश्य उस शख्स या पार्टी को सत्ता से बेदखल करना होता है जो उस ‘ताकत’ की मर्जी के खिलाफ काम करने लग जाती है।

फोटोः सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

पाकिस्तान के चुनावी नतीजों ने इमरान खान को क्रिकेट कप्तान से मुल्क का कप्तान बना दिया। हालांकि, इमरान खान को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है लेकिन वो छोटी पार्टियों के समर्थन से जल्द ही सरकार बना लेंगे। लेकिन सियासी हकीकत तो ये है कि पाकिस्तान में चुनाव से पहले ही चुनाव के नतीजे आ गए थे। क्योंकि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार हो या फौजी सरकार, वहां शासन और आदेश फौज का ही चलता है। पाकिस्तानी जनरलों ने काफी पहले ही ये फैसला कर लिया था कि मुल्क का अगला वज़ीर-ए-आज़म इमरान खान होगा और आखिर वही हुआ। अब इमरान खान का डंका बज रहा है और वो जल्द ही शपथ लेकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री होंगे।

पाकिस्तान वह बदनसीब मुल्क है जहां लोकतंत्र पनप ही नहीं पाता है। या तो वहां लोकप्रिय राजनेता मारे जाते हैं या फिर उनको कैद का दंश झेलना पड़ता है। जुल्फिकार अली भुट्टो झूठे कत्ल के इल्जाम में सूली पर चढ़ा दिए गए। उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो को रैली के दौरान गोली मार दी गई। नवाज शरीफ को एक नहीं, दो बार जेल हुई। अभी भी वो खुद और उनकी बेटी दोनों जेल में हैं। इस वक्त इमरान फौज के हीरो हैं और पाकिस्तान के बादशाह हैं। इमरान को वहां की सेना ने बाकायदा सत्ता तक पहुंचाने की व्यवस्था की। जैसे भारत में मनमोहन सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के नाम पर अन्ना हजारे का आंदोलन चला था, वैसे ही फौज की मदद से पाकिस्तान में इमरान की पार्टी ने नवाज शरीफ के खिलाफ भ्रष्टाचारी हटाओ आंदोलन चलाकर नवाज सरकार को पंगु कर दिया। जिस तरह हिन्दुस्तान में 2014 से पहले मीडिया के जरिये कांग्रेस और यूपीए सरकार की साख भ्रष्टाचार की आड़ में खत्म की गई थी, वैसे ही पाकिस्तानी मीडिया ने मियां नवाज शरीफ की साख मिट्टी में मिला दी। बस फिर जिस तरह यहां मोदी, मीडिया और ईवीएम मशीन की मदद से प्रधानमंत्री बन गए थे, वैसे ही वहां इमरान खान भी जीत गए।

याद रखिये, हर देश में भ्रष्टाचार के नाम पर चलने वाले राजनीतिक आंदोलन एक ‘खास ताकत’ के द्वारा खड़े किये गए फर्जी आंदोलन होते हैं। ऐसे हर आंदोलन का उद्देश्य उस शख्स या पार्टी को सत्ता से बेदखल करना होता है जो उस ‘ताकत’ की मर्जी के खिलाफ काम करने लग जाती है। हिंन्दुस्तान में अन्ना आंदोलन आरएसएस द्वारा खड़ा किया गया फर्जी आंदोलन था। संघ सोनिया गांधी से सख्त नाराज था। उन्होंने मनरेगा जैसी योजना से करोड़ों गरीब, पसमांदा और दलित वर्ग के लोगों का भला किया था। फिर मनमोहन सरकार ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के जरिये मुस्लमानों की बेहतरी के लिए बहुत सारी योजनाएं भी बनाई थीं। भला ऊंची जाति की सामाजिक व्यवस्था के ठेकेदार संघ को ये बात कहां बर्दाश्त हो सकती थी ! इसीलिए अन्ना आसमान से आए और यूपीए सरकार की जमीन हिला कर चले गए और इसका फायदा उठा कर मोदी को मीडिया की मदद से प्रधानमंत्री बना दिया गया।

ऐसा ही सियासी खेल पाकिस्तान में भी हुआ। पाकिस्तान की फौज को हिन्दुस्तान से अमन और शांति बर्दाश्त नहीं है। नवाज शरीफ का गुनाह ये था कि हिन्दुस्तान से संबंध बेहतर करने की नीयत से पहले वो खुद हिन्दुस्तान आ गए और फिर एक बार नरेंद्र मोदी को पाकिस्तान बुला लिया। बस फौज का हाथ नवाज पर से उठ गया। देखते-देखते इमरान खान ने नवाज शरीफ के खिलाफ भ्रष्टाचार का डंका बजा दिया। बिलकुल अन्ना आंदोलन में जिस तरह भीड़ ने दिल्ली को घेर कर मनमोहन सरकार को पंगु बना दिया था, वैसे ही इमरान खान ने फौज की मदद से इस्लामाबाद घेर कर नवाज शरीफ सरकार को बेअसर कर दिया। साथ ही टीवी ने इमरान के गुणगान करना और नवाज शरीफ की बुराई करना शुरू कर दिया। माहौल बनता चला गया और आखिर में जैसे यहां मोदी आए वैसे ही वहां इमरान आ गए।

लोकतंत्र के लिए इस इक्कीसवीं सदी में ये बड़ा खतरा पैदा हो गया है। अब दुनिया के अलग-अलग कोनों में शासक वर्ग ने लोकतंत्र को हाईजैक करने के नए-नए तरीके निकाल लिए हैं। जैसे, मुल्क के बहुसंख्यक वर्ग के दिमाग में अल्पसंख्यक के खिलाफ नफरत फैलाकर जज्बात के बहाव में बहुसंख्यक वर्ग का वोट हासिल कर लो। ये खेल हिन्दुस्तान में मोदी और संघ ने खेला और यही खेल अमरीकी समाज के एक बड़े वर्ग और ट्रम्प ने मिलकर खेला और लोकतंत्र की आत्मा को कुचलकर ऐसी सरकारें बनाईं जो जनता की बजाय उसी शासक वर्ग की सेवा कर रही हैं। हिन्दुस्तान में मोदी उच्च जाति वाली शासन व्यवस्था के पिट्ठू हैं तो अमरीका में ट्रम्प गोरे अमरीकी शासक वर्ग की उंगलियों पर नाच रहे हैं। इसी तरह पाकिस्तान में इमरान खान फौजी ताकत की कठपुतली हैं।

इस वक्त दुनिया भर में नफरत की सियासत की एक लहर चल पड़ी है। यूरोप में प्रवासियों के खिलाफ नफरत की सियासत का इस्तेमाल कर ना जाने कितनी सरकारें सत्ता हासिल कर चुकी हैं। इसी तरह तुर्की में इस्लाम का नारा बुलंद कर वहां की इंसाफ पसंद ताकतों को लगभग कुचल दिया गया है। इस खतरनाक सियासत को कामयाब बनाने के लिए असल शासक वर्ग की मदद से अलग-अलग राजनीतिक शख्सियतें और संगठन तरह-तरह के पैतरों का इस्तेमाल करते हैं। उनमें भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन खड़ा करना, अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत का सैलाब पैदा करना और धर्म, रंग, नस्ल और मुहाजिरों के दबाव के नाम पर नफरत की राजनीति करने का चलन चल रहा है। इस तरह की नई राजनीति ने लोकतांत्रिक शासन की आत्मा के लिए बड़ा खतरा पैदा कर दिया है। इस रूढ़ीवादी सोच की राजनीति को कामयाब बनाने में मीडिया, सोशल मीडीया, संघ, फौजी शासन और नस्लीय शासन व्यवस्था हर तरह का काम कर रहे हैं।

यानी लोकतंत्र को सत्ता के फायदे के लिए और इस हासिल सत्ता के वर्चस्व को कायम रखने के लिए शासक वर्ग हर वह हथकंडा अपना रहा है जो आम लोगों की भावनाओं को भड़काकर उन लोगों को गद्दी तक पहुंचने में मदद करते हैं, जो सिर्फ नारों और भाषणों से इस शासक वर्ग का सत्ता पर आधिपत्य बरकरार रखें। जैसे हिन्दुस्तान में ईवीएम का गलत इस्तेमाल हो रहा है। सोशल मीडिया पर फेक न्यूज का सैलाब जारी है। मतलब इक्कीसवीं सदी में लोकतंत्र को खोखला कर लोकतांत्रिक शासन को जनता की बजाय शासक के फायदे के लिए इस्तेमाल करने की एक बड़ी कामयाब साजिश चल रही है, जो मोदी, ट्रम्प और इमरान खान जैसे नेता पैदा कर रही है।

ये साजिश अभी तो पूरी तरह सफल है लेकिन कोई भी साजिश हमेशा कामयाब नहीं रह सकती है। इतिहास गवाह है कि जब-जब जनता की आवाज को पूरी तरह से कुचल दिया जाता है, तब-तब क्रांति पैदा होती है। इक्कीसवीं सदी का इतिहास भी कुछ ऐसा ही मोड़ ले रहा है। आने वाला वक्त क्या रंग लेता है, ये अभी कहना मुश्किल है। लेकिन मोदी, ट्रम्प और इमरान खान जैसे लोकतंत्र के कठपुतली नेताओं का नेतृत्व निश्चित तौर पर आने वाले तूफान की निशानी है।

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