विष्णु नागर का व्यंग्यः मोदी जी दुस्वप्नों से परेशान, पीएम होकर भी कभी बंगाल, कभी असम का सीएम बन जाते हैं!

वह कितनी ही बार यह याद करके सोते हैं कि नहीं अब वह मुख्यमंत्री नहीं रहे, प्रधानमंत्री हैं मगर कभी भूले से ही सपने में दिखता है कि वह प्रधानमंत्री हैं। प्रधानमंत्री दिखना भी उनके लिए समस्या है। तब करोड़ों लोग उनसे पंद्रह लाख और नौकरियां मांगने लगते हैं।

फाइल फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

लगता होगा आपको कि पचास साल हो गए मगर नहीं, मोदी जी को अभी सात साल भी पूरे नहीं हुए हैं। हमें लगता कि वह प्रधानमंत्री हैं, मगर उन्हें सपने में लगता है कि वह गुजरात के मुख्यमंत्री हैं।वह भी केवल साल 2002 के। जब देखो, तब सपने में दीखता है- 2002, 2002। जैसे मुख्यमंत्री बन कर उन्होंने 'विकास' का एक यही काम किया हो। इस वजह से बेचारे देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री होने का श्रेय प्राप्त कर चुके हैं, जो संवाददाता सम्मेलन तक नहीं कर पाते। छुटभैया से छुटभैया भाजपाई प्रेस कांफ्रेस करता है, मगर जिसकी प्रेस कांफ्रेस में सबसे ज्यादा संवाददाता आने को उत्सुक हैं, वह प्रेस कांफ्रेस नहीं कर पाता। कारण वही- 2002।

वह कितनी ही बार यह याद करके सोते हैं कि नहीं अब वह मुख्यमंत्री नहीं रहे, प्रधानमंत्री हैं मगर कभी भूले से ही सपने में यह दिखता है कि वह प्रधानमंत्री हैं। प्रधानमंत्री दिखना भी उनके लिए समस्या है। तब करोड़ों लोग उनके सामने खड़े हो जाते हैं कि मोदी जी मेरे पंद्रह लाख लाओ। वह जवाब देते हैं कि जाओ, मैंने तुम्हारे 15 लाख अडानी-अंबानी को दे दिए हैं, उनसे ला सको तो लाओ!

लोग यह सुनकर भड़क जाते हैं कि दिए आपने उन्हें और लाएं हम! इनका चुनाव आपने किया था, हमने तो आपको चुना था। दो और आज ही दो। आप हमें हर साल दो करोड़ नौकरियां देने वाले थे, वो भी दो। सात साल हो गए। 14 करोड़ नौकरियां दो। फिर धांय-धांय होती है। उसके बाद भी शांति नहीं होती। किसी को गोली नहीं लगती। कोई नहीं मरता। लोग पीछे नहीं हटते!

कभी सपना यह आता है कि नोटबंदी के 50 दिन ह़ो चुके हैं। लोग पूछ रहे हैं कि आपने कहा था कि मेरी नीयत में किसी को खोट नजर आए तो आप मुझे किसी भी चौराहे पर ...। अपना यह वायदा पूरा करो। एक तो कोई वायदा पूरा करो! कभी किसान सपने में उनके पीछे पड़ जाते हैं, तीनों काले कानून वापिस लो वरना हम तीन जनम में भी आपका पीछा नहीं छोड़ने वाले!

पहले ऐसे दु:स्वप्न के समय उनका फास्ट फ्रेंड ट्रंप उन्हें बचाने आ जाता था। कहता था, खबरदार, जो मेरे दोस्त को किसी ने जरा भी तंग किया, एक-एक को निबटा दूंगा। आजकल ट्रंप ने सपने में आना बंद कर दिया है और उधर अमेरिका सेवंथ फ्लीट भेजकर भारत को निबटाने में लगा हुआ है।उसे मालूम होना चाहिए, पहले इंदिरा गांधी थीं, अब 56 इंची है। पाकिस्तान और चीन को निबटा चुका है, अमेरिका को भी यूं चुटकियों में निबटा देगा। समझता क्या है वह अपने आप को!

इधर कई दिनों से उन्हें यह सपना आने लगा है कि वह पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री हैं। दीदी को हराने की खुशी में कोलकाता की सड़कों पर भांगड़ा कर रहे हैं। उसके बाद दीदी को फोन कर रहे हैं, दीदी, ओ दीदी, अब मुझे चार्ज सौंप दो, दीदी। यू नो, आई एम चीफ मिनिस्टर आफ वेस्ट बंगाल नाऊ। दीदी उनकी तबीयत हरी कर देती हैं!

उधर उनका सपना टूटता है कि अरे मैं तो प्रधानमंत्री हूं, मुख्यमंत्री कैसे बन गया, वह भी इस राज्य का? वह प्रार्थना करते हैं कि हे हनुमान जी, मुझे इन दु:स्वप्नों से बचाओ। जितने का कहोगे, उतने का प्रसाद चढ़ाऊंगा। मैं सवा पांच लाख का प्रसाद तो सांसद फंड से चढ़ा सकता हूं। सवा पांच सौ करोड़, सवा पांच खरब का प्रसाद भी सरकारी तिजोरी से चढ़ा सकता हूं, मगर हनुमान जी निर्विकार बने रहते हैं। फिर मोदी जी सोते हैं तो कभी असम का, कभी तमिलनाडु का, कभी केरल का मुख्यमंत्री बनने का सपना आता है। एक दिन तो हद हो गई, पुडुचेरी के उपमुख्यमंत्री बनने का सपना आ गया!

सार यह है कि मोदी जी सपने में तो साल में दो-चार बार ही प्रधानमंत्री रह पाते हैं। आजकल तो फिर भी कुछ गनीमत है वरना वही मुख्यमंत्री, गुजरात! फिर वह सब भी दीखता है- चीरे हुए गर्भ,आग में फेंके गए मासूम बच्चे, बलात्कारियों का शिकार औरतें, मां-पिता की आंखों के सामने बलात्कृत बच्चियां, स्तन कटी औरतें। जलते हुए घरों से उठते धुएं में घुटकर, चीखते-मरते इनसान, जली हुई, बदबू मारती लाशें। धू-धूकर जलती गुलबर्गा सोसायटी। नंगी औरतों की परेड। बचाओ, बचाओ के करुण क्रंदन। जलते धार्मिक स्थल, कांपते-भागते लोग। शायर की मटियामेट कब्र। हा-हा करता मुख्यमंत्री!

आप चाहें तो मोदी जी की साइट पर जाकर उन्हें इन दु:स्वप्नों से मुक्ति दिलाने के लिए उपयुक्त सुझाव दे सकते हैं। जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, यज्ञ, सत्यनारायण की कथा आदि उपायों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी। आधुनिक चिकित्सा का कोई उपाय बताएंगे तो भी सजा नहीं मिलेगी। मैं अपने मनोवैज्ञानिक मित्रों से विशेष निवेदन करूंगा कि वे उनकी मदद करें। हम उनकी सहायता इस मामले में तो निश्चित रूप से कर सकते हैं, बल्कि हम चाहें तो इसे राष्ट्रीय और मानवीय कर्तव्य मान कर प्रधानमंत्री को फिर-फिर गुजरात, 2002 का मुख्यमंत्री बनने से बचा सकते हैं। वैसे प्रधानमंत्री केवल एक कॉल की दूरी पर हैं। आप उन्हें कॉल कर सकते हैं!

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