खरी-खरीः कमजोर हो रहे हैं मोदी, धूल चटाने के लिए विपक्ष को होना होगा एकजुट

हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावी नतीजे बताते हैं कि वोटरों को उत्साहित करने के लिए सूबाई चेहरा जरूरी है। विपक्षी दलों के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नेताओं का गठबंधन विपक्ष में लोगों का भरोसा फिर पैदा कर सकता है। लेकिन इसमें मुख्य भूमिका कांग्रेस को ही निभानी होगी।

फोटोः सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

किसने सोचा था कि विपक्ष विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हरियाणा में बहुमत जुटाने के लिए नाको चने चबवा देगा और महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को इस तरह का कड़ा संघर्ष देगा! लेकिन दोनों राज्यों के परिणामों ने सबको आश्चर्य में डाल दिया। उदारवादियों ने राहत की सांस ली, जबकि मोदी भक्त निराश हो गए।

महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के लिए जश्न मनाने का कोई कारण नहीं है। एक तो, वह अपनी ही अपेक्षाओं से काफी कम सीटें पा सकी और अगर ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम और प्रकाश आंबेडकर के नेतृत्व वाली वंचित बहुजन अघाड़ी ने कांग्रेस-एनसीपी के वोट शेयर में सेंधमारी न की होती, तो बीजेपी-शिवसेना को महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाने के लिए जूझना होता। इन दोनों पार्टियों ने 30 से अधिक सीटों पर धर्मनिरपेक्ष दलों को नुकसान पहुंचाया। वैसे, तब भी, बीजेपी-शिवसेना ने आपस में जिस तरह तलवारें खींच रखी हैं, वह कम रोचक नहीं है।

खैर। बीजेपी हरियाणा और महाराष्ट्र में सरकारें फिर भी बना ले जाएगी। लेकिन इन दो राज्यों के संदेश बहुत साफ हैंः नरेंद्र मोदी अजेय नहीं रह गए हैं। मोदी मैजिक साफ तौर पर उतार पर है। 2019 का लोकसभा चुनाव हर तरह से मोदी-शो था। बालाकोट हमलों के बाद राष्ट्रवाद का शोर मचाकर अकेले बीजेपी ने 300 से ज्यादा सीटें जीत लीं। लेकिन बमुश्किल चार माह बाद ही नरेंद्र मोदी को हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी को स्पष्ट बहुमत दिलाने में मुश्किल दिखने लगी। कमजोर बीजेपी दोनों राज्यों में सत्ता में भले ही आ गई है, लेकिन उसे अपने सहयोगियों- हरियाणा में दुष्यंत चैटाला और महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की शरण में हर वक्त रहना होगा।

यह बीजेपी के लिए, और व्यक्तिगत तौर पर मोदी के लिए मुश्किलें पैदा करने वाली बात है। लेकिन इन चुनावों में मोदी के साथ ऐसा हुआ क्या? दूसरी बात यह भी महत्वपूर्ण है कि क्या विपक्ष अपने हाल के चुनाव परिणाम को बेहतर करने के लिए तैयार है? ये दोनों सवाल हर व्यक्ति के मन में हैं। हम पहले वाले को देखें- आखिर, किस बात ने मोदी को बैकफुट पर आने को विवश कर दिया!


दरअसल मोदी ने उसी तरह के कोहरे वाली राजनीतिक चाल चली, जिसके बल पर उन्हें चार महीने पहले जीत मिली थी। पाकिस्तान की लानत-मलामत करने की वही पटकथा फिर दोहराई गई। चतुर जादूगर की तरह मोदी वास्तविक मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए इस तरह का खेल खेलते रहे हैं। आप ही देखिए, पिछले पांच साल के दौरान नोटबंदी और बिना सोचे-विचारे लागू किए गए जीएसटी- जैसे गंभीर मुद्दों से उपजे गुस्से को भूलकर लोगों ने लोकसभा चुनाव में बालाकोट हमले पर वोट कर दिए। बालाकोट के आतंकी शिविरों पर भारतीय वायुसेना के एयर स्ट्राइक का लोकसभा चुनावों में राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़काने के लिए उपयोग किया गया। यह नुस्खा काम कर गया और एक तरह से, पूरा विपक्ष हैरान-परेशान रह गया।

मोदी को लगा कि यह तो आजमाया हुआ दांव है, सो हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में जीत के लिए भी इसका ही इस्तेमाल कर लिया जाए। दोनों राज्यों में फिर उसी किस्म का पाकिस्तान-राग वह आलापने लगे। हरियाणा में उन्होंने चेतावनी दी कि वह हरियाणा से पाकिस्तान जाने वाला नदी का पानी रोक देंगे। ऐसा लगता है कि मोदी अपने चुनावी भाषण सलीम-जावेद के फिल्मी डायलाॅग की तर्ज पर तैयार करते हैं। हरियाणा में उन्होंने छाती ठोंकने के साथ हाथ उठाकर कहाः “मोदी जो ठान लेता है, वो कर दिखाता है”। वह सामने खड़ी भीड़ को यकीन दिलाना चाह रहे थे कि वह बाॅलीवुड फिल्मों की तरह पाकिस्तान जाने वाले पानी की धारा रोक देंगे। महाराष्ट्र में भी वह यही सब करते रहे- कभी पाकिस्तान की बातें, तो कभी विपक्षी नेताओं के भ्रष्टाचार की बातें। लेकिन इस बार यह ट्रिक उस तरह काम नहीं आई जैसी यह लोकसभा चुनावों में काम दे गई थी।

असलियत समझ गए लोग

दरअसल, इस बार, हरियाणा और महाराष्ट्र के मतदाताओं के बड़े वर्ग ने इसके पीछे की असलियत समझ ली। आर्थिक मंदी लोगों को इस बुरी तरह चुभ रही है कि वोटर अब पाकिस्तान-राग सुनने से इनकार कर रहा है। इसलिए मोदी की राजनीति चल नहीं पाई। आखिर, जब बेरोजगारी निरंतर बढ़ रही, व्यापार घटता जा रहा, खरीद-बिक्री कम होती जा रही है, ग्रामीण अर्थव्यवस्था ढहती जा रही है, तो ऐसा हो भी क्यों नहीं। आप ही देखिए, बिस्किट- जैसी बिल्कुल सस्ती चीजें भी उस तरह नहीं बिक रहीं जैसे वे पहले बिक रही थीं। पारले जी ने दस हजार कर्मचारियों को हटा दिया और यही बताता है कि आम आदमी बिस्किट जैसी चीज तक खरीदने से कतराने लगा है। दूसरी तरफ, कार जैसी महंगी चीजों की बिक्री भी निरंतर घटती गई है। मारुति, टाटा मोटर्स, होंडा वगैरह ने अपना उत्पादन कम कर दिया है और बड़ी संख्या में कर्मचारियों की छुट्टी कर दी है।

दीपावाली में भी बाजार में रौनक नहीं लौट पाई। बैंकिंग व्यवस्था से लोगों का यकीन जिस तरह खत्म हुआ है, वैसा कभी नहीं हुआ। पीएमसी बैंक घोटाले ने बैंकों पर भी लोगों का विश्वास डगमगा दिया। आर्थिक स्थिति ऐसी हो गई है कि मोदी सरकार को भारतीय रिजर्व बैंक के रिजर्व से पैसे लेने पड़े। साफ-साफ कहें, तो भारत हाल के वर्षों के सबसे बुरे आर्थिक दौर से गुजर रहा है। खाली पेट भावनाओं से नहीं भरते। हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के परिणाम साफ-साफ बता रहे हैं कि वोटर परेशान है और वह सिर्फ भावनाओं की नाव पर सवार होने को कतई तैयार नहीं है।


आगे क्या है रास्ता

निश्चित तौर पर यह विपक्ष के लिए अवसर है। लेकिन क्या विपक्ष मोदी का सामना करने को तैयार है? यह तो सच्ची बात है कि हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों का डंका बजने के समय विपक्ष पराजित, असंगठित और दिशाहीन था। अगर हरियाणा में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और महाराष्ट्र में शरद पवार न होते, तो विपक्ष उसी हालत में होता, जैसा वह लोकसभा चुनावों के बाद था। इसलिए, अगले साढ़े चार साल में विपक्ष के लिए रास्ता क्या होना चाहिए?

आर्थिक बदहाली ने भगवा खेमे में खलखली मचाई हुई है। लोग इस बदहाली की चुभन महसूस करने लगे हैं और बेचैन होने लगे हैं। विपक्ष को इस बढ़ती आर्थिक बदहाली का लाभ उठाने के लिए तुरंत उठ खड़े होने की जरूरत है। लेकिन विपक्ष का काम आसान नहीं है। मोदी जरा दूजे किस्म के राजनीतिज्ञ हैं! पिछले लोकसभा चुनावों से पहले भी बीजेपी अच्छी स्थिति में नहीं थी। फिर भी, मोदी ने मई में अच्छे परिणाम लाने की जुगत निकाल ली। इसलिए विपक्ष के पास चुपचाप बैठे रहने और एंटी-इन्कम्बैंसी का इंतजार करने का अवसर नहीं है। उसके लिए स्पष्ट योजना बनाना जरूरी है।

यह योजना क्या हो सकती है? पहली, उसे अपना नैरेटिव तैयार करना होगा। सिर्फ सरकार की नादानियों पर प्रतिक्रिया जताकर मोदी की साख नहीं गिराई जा सकती। तो, ऐसे में, विपक्ष का नैरेटिव क्या हो सकता है! अभी के लिए तो यह अर्थव्यवस्था हो सकती है। मोदी के पास ऐसा कोई मनमोहन सिंह नहीं है जो चुनौतियों से जूझ सके, इसलिए आने वाले महीने बदतर ही होंगे। निर्मला सीतारमण बिल्कुल विफल दिख रही हैं। लोग जिस तरह की दुश्वारियां झेल रहे हैं, उसमें मोदी-विरोधी नैरेटिव पर फोकस करना जरूरी है। उसे लोगों की भावनाओं को समझना और उन्हें आसान भाषा में अभिव्यक्त करने की जरूरत है। विपक्ष को अर्थव्यवस्था की परतें खोलनी होंगी।

दूसरी बात। विपक्ष को कमर कसनी होगी। कांग्रेस को निश्चित तौर पर आगे आकर सामने से लड़ने और नेतृत्व स्वीकार करने की जरूरत है। जिस तरह 2004 में सोनिया गांधी ने सभी पीढ़ियों को मिलाकर शक्ति खड़ी की थी, उसी प्रकार का प्रयास करना होगा। तब, उन्होंने सभी राज्यों के प्रमुख नेताओं को तब की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के खिलाफ लड़ने के लिए एकजुट कर लिया था। जैसा कि एक अनुभवी कांग्रेस नेता कहते भी हैं, ‘इस तरह की एकजुटता कांग्रेस में हर किस्म का भ्रम दूर कर देगी।’


एक बार कांग्रेस का अपना घर व्यवस्थित हो गया, तो फिर, बीजेपी-विरोधी वोट शेयर को एकजुट करने की जरूरत होगी, क्योंकि यह बीजेपी के वोट शेयर से अब भी अधिक है। यूपीए जैसा बड़ा प्लेटफाॅर्म भी तैयार करने की जरूरत है, जहां 2004 की तरह कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियां एक साथ जुट सकें। हरियाणा और महाराष्ट्र- दोनों के चुनाव परिणाम बताते हैं कि वोटरों को उत्साहित करने के लिए सूबाई चेहरा जरूरी है। विभिन्न विपक्षी दलों के राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नेताओं का गठबंधन विपक्षी राजनीति में लोगों के भरोसे को फिर से पैदा कर सकता है। लेकिन इसमें शक नहीं कि इस मामले में मुख्य भूमिका कांग्रेस को ही निभानी होगी।

विपक्षी राजनीति खास तौर पर सड़क पर लड़ी जाने वाली लड़ाई है। सिर्फ चुनावों के वक्त रैलियों में नेताओं के जाने से जनता में उत्साह नहीं जगता। यही वक्त है जब विपक्षी नेताओं को लोगों के मुद्दों को लेकर सड़क पर उतरना होगा। संभवतः इस ओर ध्यान देने के खयाल से ही कांग्रेस ने नवंबर में बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों की रूपरेखा बनाई है। इसमें सिविल सोसाइटी को साथ लेना भी जरूरी है, क्योंकि उनके पास राजनीतिक एक्टिविस्टों की बड़ी जमात है।

बिल्कुल जमीनी लड़ाई लड़ने के अलावा विपक्ष के पास कोई रास्ता नहीं है। सफल विपक्षी राजनीति का कोई शाॅर्टकट हो भी नहीं सकता। किसने सोचा था कि 2004 लोकसभा चुनावों में अटल बिहारी वाजपेयी हार भी सकते हैं! हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम साफ बताते हैं कि मोदी कमजोर हुए हैं। यही समय है जब विपक्ष को उन्हें धूल चटाने को एकजुट होकर आगे आना होगा।

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