सरकार यह भी तो बताए कि अडानी पर लगे पर्यावरणदंड का क्या हुआ?
पर्यावरण मंत्रालय की एक समिति ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए मोदी के करीबी उद्योगपति अडानी की कंपनी पर वर्ष 2012 में पर्यावरण दंड लगाया था। लेकिन मोदी सरकार आने के बाद यह मामला कहीं गुम हो गया।
हाल में गुजरात के उद्योगपतियों की कर्ज माफी पर जेटली की अगुवाई में अनेक मंत्री बयानबाजी करते रहे, पर कोई कर्ज माफी नहीं हुई है, इसका सबूत नहीं पेश कर सके। तथ्यहीन बयानबाजी इस सरकार की विशेषता रही है और इसी बीच अडानी को और कर्ज देने की तैयारी भी चल रही है। इस मुद्दे से अलग, अडानी की कंपनी पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का एक मामला अभी भी सर्वोच्च न्यायालय में चल रहा है। यह मामला गुजरात के कच्छ जिले के मुंदड़ा में पोर्ट और स्पेशल इॅकानामिक जोन के निर्माण से संबंधित है।
23 अक्टूबर, 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक विशेष समिति को अध्ययन कर यह बताने को कहा कि अडानी की कंपनी द्वारा सागर तट पर रेत के टीलों को समतल करने से पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा है। पर्यावरण के मुद्दे पर अडानी की कंपनी का ट्रैक रिकार्ड बहुत खराब रहा है। भारत में तो विरोध होता है जिसे दबा दिया जाता है, पर हाल ही में आस्ट्रेलिया में भी मानव श्रृंखलाएं बनाकर उनकी कंपनी के खिलाफ भारी विरोध प्रकट किया गया था।
अडानी पोर्ट एंड सेज लिमिटेड से पर्यावरण पर पड़े प्रतिकूल प्रभावों का अध्ययन करने के लिए वर्ष 2012 में पर्यावरण मंत्रालय ने सुनीता नारायण की अगुवाई में एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया था। इस समिति ने कंपनी द्वारा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के अनेक उदाहरण अपनी रिपोर्ट में प्रस्तुत किये थे और साथ ही 200 करोड़ रूपये के आर्थिक दंड वसूलने की संस्तुति भी की थी।
यह मामला अभी चल ही रहा था, तभी नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्र में बीजेपी सरकार में आ गई। जाहिर है, इसके बाद अडानी की कंपनी से कोई भी दंड वसूलना नामुमकिन हो गया। जुलाई 2016 में खबर आई कि अडानी की कंपनी पर लगाए गए जुर्माने को पर्यावरण मंत्रालय ने माफ कर दिया है। इस सरकार की आदत के अनुसार इस खबर के आते ही, तत्कालीन पर्यावरण मंत्री ने कई बयान दे डाले। उन्होंने अपने बयानों में कहा, जुर्माना माफ नहीं किया गया है, जुर्माना गैर-कानूनी था, इससे भी बड़ा जुर्माना लगाया जाएगा, अडानी की कंपनी तो पर्यावरण का संरक्षण कर रही है, गैर-कानूनी जुर्माना को कानूनी जामा पहनाया जाएगा।
इसके बाद सारा मामला फाइलों में कहीं खो गया और अडानी की कंपनी के 200 करोड़ रुपये बच गए। अब कोई इसके बारे में चर्चा भी नहीं करता और अडानी की कंपनी आवाज उठाने वालों को खामोश करना अच्छी तरह से जानती है। खबरों में तो यहां तक बताया गया कि जुर्माना माफ करने के साथ ही पर्यावरण मंत्रालय ने इस तरह के प्रावधान भी कर दिये जिससे कंपनी को उल्टा आर्थिक लाभ मिल जाए।
वर्तमान सरकार के लिए अडानी बेहद महत्वपूर्ण हैं तो फिर सागर तट, वहां की जैव विविधता, वहां का पर्यावरण, प्रभावित लोग और पर्यावरण एक्टिविस्ट क्या मायने रखेंगे?
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