मोदी सरकार ने दावे तो बहुत किए, लेकिन अपने पांच बजट में भी नहीं दे सकी सामाजिक न्याय के मंत्रालय को इंसाफ
देश के पिछड़े समुदाय की भलाई से जुड़ी अनेक योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की प्रमुख जिम्मेदारी है। दुख की बात है कि इस संदर्भ में तमाम बड़े वादों के बावजूद मंत्रालय की योजनाओं को मोदी सरकार के पांच बजट में न्याय नहीं मिला।
केंद्र की मौदी सरकार द्वारा हाल ही में पेश अंतरिम बजट की तुलना अगर हम पिछले साल के संशोधित बजट से करें तो सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के साथ अन्याय स्पष्ट रूप में उभरता है। साल 2018-19 में इस मंत्रालय के बजट का संशोधित अनुमान 11033 करोड़ रुपए था। साल 2019-20 के अंतरिम बजट में इसे घटाकर इस मंत्रालय के बजट अनुमान को मात्र 8945 करोड़ रुपए रखा गया है।
वहीं इससे पहले वित्त वर्ष 2014-15, 2015-16, 2016-17 और 2017-18 के दौरान छार वर्षों में लगातार देखा गया कि इस मंत्रालय पर वास्तव में जितना खर्च हुआ वह बजट अनुमान से कम था। इनमें से पहले दो वित्तीय साल में तो कटौती बहुत बड़ी थी। वहीं 2018-19 में संशोधित अनुमान बजट अनुमान से अधिक था, लेकिन इसके अगले ही साल पिछले वर्ष के संशोधित अनुमान की तुलना में बड़ी कटौती कर दी गई है।
सामान्य बजट में कुछ वृद्धि तो हर साल होती ही है, लेकिन पिछले 5 साल में जितनी वृद्धि केंद्र सरकार के कुल बजट में हुई है, उसकी तुलना में लगभग आधी वृद्धि ही सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण विभाग में हुई है। दूसरे शब्दों में सामाजिक न्याय विभाग से अन्याय हुआ है, इसे अपेक्षाकृत उपेक्षित रखा गया है।
इस विभाग के अंतर्गत आने वाली अनुसूचित जातियों के शैक्षिक विकास की विभिन्न योजनाओं को जोड़ कर देखा जाए तो इसके लिए साल 2018-19 का संशोधित बजट 6425 करोड़ रुपए था जबकि साल 2019-20 के अंतरिम बजट में इसे 3715 करोड़ रुपए कर दिया गया। मैट्रिक के बाद की छात्रवृत्ति योजना को लें तो इसके लिए पिछले पांच वर्षों में प्रायः धन का अभाव रहा है और बकाया राशि बढ़ती रही है।
इस समस्या को दूर करने के लिए 2018-19 में विभाग ने 11022 करोड़ रुपए के पहले से कहीं बड़े बजट की मांग की थी, लेकिन संशोधित बजट प्रस्ताव में 6000 करोड़ रुपए तक ही स्वीकृत हुए, जो मूल बजट अनुमान से तो अधिक था, लेकिन पर्याप्त नहीं था। अब 2019-20 के अंतरिम बजट में बड़ी कटौती पर इसे मात्र 2927 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
अब अनुसूचित जातियों के लिए मैट्रिक से पहले की छात्रवृत्ति की बात करें तो साल 2014-15 के बजट में इसका अनुमान 834 करोड़ रुपए रखा गया था, जबकि 2019-20 के अंतरिम बजट में इसका बजट अनुमान 355 करोड़ रुपए रखा गया है। इस छात्रवृत्ति में सबसे बड़ी कटौती साल 2017-18 में हुई थी जब बजट अनुमान में इसे मात्र 50 करोड़ रुपए कर दिया गया था।
इसी तरह मैला ढोने के कार्य में लगे परिवारों के पुनर्वास और रोजगार के कार्यक्रम की भी उपेक्षा होती रही है। कुछ साल तो इसके लिए स्वीकृत राशि जारी ही नहीं हुई। इस योजना के लिए पिछले साल का संशोधित अनुमान 70 करोड़ रूपए था जिसे 2019-20 के आरंभिक बजट के बजट अनुमान में कटौती कर 30 करोड़ रुपए कर दिया गया।
इन आंकड़ों से बिल्कुल स्पष्ट है कि कई स्तरों पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की कुछ महत्त्वपूर्ण योजनाओं से लगातार अन्याय होता रहा है।
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