मोदी सरकार की आधी-अधूरी विदेश नीति और ‘डोभाल दुविधा’!

अजीत डोभाल भारत के उन खुफिया अधिकारियों में से हैं जिन्होंने 1999 में पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट आईसी 814 को हाईजैक किए जाने के बाद हालात से निपटने में गलतियां कीं और अफसोस की बात है कि उन्होंने इसका दोष दूसरों पर मढ़ दिया।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल (फोटो : Getty Images)
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल (फोटो : Getty Images)
user

आशीस रे

‘प्रचारक’ हाल ही में अमेरिका में थे जहां क्वाड देशों की बैठक में जब उनका परिचय देने की बारी आई तो अमेरिकी राष्ट्रपति जोसेफ बाइडेन उनका नाम भूल गए। अगर यह शर्मनाक था, तो संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में संबोधन में उनका यह दावा कि ‘मानवता की सफलता हमारी सामूहिक शक्ति में निहित है, युद्ध के मैदान में नहीं’ विशुद्ध अविश्वसनीय। 

जैसा कि कांग्रेस के पूर्व मंत्री मणिशंकर अय्यर ने एक लेख में कहा है, ‘नरेन्द्र मोदी पहले ऐसे भारतीय प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने परमाणु निरस्त्रीकरण पर स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा है। उनका ध्यान वैश्विक निरस्त्रीकरण का मुद्दा उठाए बिना हमारी परमाणु क्षमताओं और वितरण प्रणालियों के विकास पर रहा है।’ 

मोदी इस बार अपने ‘हमसाया’, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल के बिना विदेश यात्रा पर गए थे। खालिस्तानी ऐक्टिविस्ट गुरपतवंत पन्नू के इस आरोप के बाद कि मोदी सरकार ने उनकी हत्या की साजिश रची थी, डोभाल को न्यूयॉर्क की एक अदालत ने पेश होने के लिए बुलाया है। इस मामले में आरोपी भारतीय निखिल गुप्ता पहले से अमेरिका की हिरासत में हैं। रायसीना हिल ने अमेरिकी धरती पर डोभाल को भेजकर खतरा मोल लेने की जगह विवेक को चुना। लेकिन भारत के लिए यह अपमान की बात है कि उसकी सरकार में कैबिनेट रैंक वाला एक व्यक्ति देश से बाहर स्वतंत्र रूप से यात्रा नहीं कर सकता। 

डोभाल के अब तक के 10 साल के कार्यकाल में भारतीय नौसेना के पूर्व कर्मचारी कुलभूषण जाधव को 2016 में पाकिस्तान ने पकड़ लिया था और वह अब भी वहां कैद है; कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने मोदी प्रशासन पर वैंकूवर के पास कनाडाई धरती पर एक कनाडाई सिख (भारतीय अधिकारियों का संदेह है कि वह खालिस्तानी है) की हत्या का आरोप लगाया है; कतर की एक अदालत ने इजरायल के लिए जासूसी के आरोप में आठ पूर्व भारतीय नौसेना अधिकारियों को मौत की सजा सुनाई थी जिसके बाद उन्हें भारतीय खजाने पर भारी बोझ डालकर रिहा कराया गया और भारत की बाहरी जासूसी एजेंसी रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) के कई अधिकारियों को अवांछित व्यक्ति घोषित किए जाने को झेलना पड़ा। यह बात समझनी होगी कि जासूसी का मतलब गिरफ्तार होना नहीं है और अगर आप पकड़े भी जाते हैं तो आपके पास आरोपों को खारिज करने के सबूत तैयार होने चाहिए। इस बात पर अभी फैसला नहीं हुआ है कि मोदी और डोभाल इस अग्निपरीक्षा में पास होते हैं या नहीं। 

डोभाल भारत के उन खुफिया अधिकारियों में से हैं जिन्होंने 1999 में पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट आईसी 814 को हाईजैक किए जाने के बाद हालात से निपटने में गलतियां कीं और अफसोस की बात है कि उन्होंने इसका दोष दूसरों पर मढ़ दिया। विदेश में भारतीय मिशनों में उनका कार्यकाल किसी राजनयिक क्षमता में नहीं था। फिर भी आज वह एनएसए हैं- ऐसा पद जिसके लिए विदेशी मामलों की व्यापक समझ की जरूरत होती है। इसके अलावा सवाल तो यह भी है कि क्या 79 वर्ष की उम्र में उन्हें इस तरह की बड़ी जिम्मेदारी निभाते रहना चाहिए? 

पिछले हफ्ते उन्हें ‘गहरे पानी’ में फेंक दिया गया था और ‘तैरने’ में अपनी अक्षमता के कारण वह लगभग डूब ही गए थे। डोभाल को मास्को भेजा गया था कि वह पुतिन को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की के साथ हुई मोदी की बैठक के बारे में उन्हें जानकारी दें। दोनों की बैठक का जो वीडियो उपलब्ध है, उसमें डोभाल बेहद दयनीय दिखाई दिए। ऐसा लग रहा है कि बिना तैयारी वह बोल नहीं पा रहे थे, इसलिए उन्होंने नोट्स का सहारा लिया। यहां तक कि वह जेलेंस्की का नाम भी ठीक से नहीं बोल पाए। पुतिन ने अपने वार्ताकार की बातों को ध्यान से सुना, जबकि वह कुछ बोल ही नहीं पा रहा था।

यह आश्चर्यजनक था कि डोभाल और भारत को इतने खराब तरीके से पेश करने वाली बैठक का वीडियो सार्वजनिक किया गया। जाहिर तौर पर रूस की सरकारी समाचार एजेंसी ‘स्पुतनिक’ ने ऐसा किया। अगर मास्को की मंशा पश्चिम को यह संकेत देना था कि मोदी पुतिन के ‘पिट्ठू’ हैं, तो जरूर उसने बहुत अच्छा काम किया। इस विफलता ने बहु-पक्षीय व्यवस्था में खरगोश के साथ दौड़ने और शिकारी कुत्तों के साथ शिकार करने के बीच के अंतर को भी स्पष्ट कर दिया। 


पश्चिम एशिया में मोदी अलग-थलग 

1989 में शीत युद्ध के समय से ही अपने भरोसेमंद दोस्त सोवियत संघ के पतन के साथ ही भारत ने महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता के मामले में गुटनिरपेक्षता बनाए रखते हुए वाशिंगटन की संभावित शत्रुता को रोकने के लिए बहुरेखीय-जुड़ाव की रणनीति अपनाई। इसलिए 1992 में भारत ने इजरायल के साथ संबंधों को पूर्ण राजनयिक संबंधों में बदल दिया। हालांकि फिलिस्तीन के प्रति इजरायल के असंयम को देखते हुए भारत ने सावधानीपूर्वक उच्चतम सरकारी स्तर पर एक हाथ की दूरी बनाए रखने का विकल्प चुना।

मोदी ने न केवल 2017 में इजरायल का दौरा किया बल्कि केन्द्र में अपने पूरे कार्यकाल के दौरान उन्होंने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ काफी घनिष्ठता दिखाई जो एक यहूदी कट्टरपंथी हैं, जिनकी लिकुड पार्टी के गठबंधन सहयोगियों में धुर दक्षिणपंथी धार्मिक जायोनी पार्टी शामिल है। पिछले अक्तूबर में मोदी ने हमास द्वारा इजरायल पर हमला करने और 200 से अधिक लोगों को बंधक बनाए जाने के कुछ ही घंटों के भीतर तेल अवीव के पक्ष में अपना बिना शर्त समर्थन जताने वाला ट्वीट किया। हमास गाजा पट्टी से संचालित होता है जो फिलिस्तीनी प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र में आता है। 23 सितंबर को भारत द्वारा गाजा और पश्चिमी तट पर इजरायल के कब्जे को खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव से दूर रहने के कुछ ही दिनों बाद, मोदी ने न्यूयॉर्क में महासभा सत्र के दौरान फिलिस्तीनी प्राधिकरण के अध्यक्ष महमूद अब्बास से मुलाकात की और उनकी नाराजगी को दूर करने की कोशिश की। मोदी के बारे में अंतरराष्ट्रीय धारणा एक ढुलमुल व्यक्ति के रूप में और अधिक गहरी होती जा रही है।

ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज लूला डा सिल्वा ने गाजा पट्टी में फिलिस्तीनियों के खिलाफ इजरायली कार्रवाई की तुलना एडोल्फ हिटलर द्वारा यहूदियों की सामूहिक हत्या से की है। दक्षिण अफ्रीका इस मामले को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आईसीसी) में ले गया जिसके बाद उसके मुख्य अभियोक्ता करीम खान ने युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराध के संदर्भ में नेतन्याहू और इजरायल के रक्षा मंत्री योआव गैलेंट के अलावा तीन हमास नेताओं- याहिया सिनवार, मोहम्मद देफ और इस्माइल हनीयेह के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी करने की मांग की। फिलहाल इस मामले में आईसीसी के न्यायाधीशों के फैसले का इंतजार है।

अब स्थिति यह है कि इजरायल की ज्यादतियों के मुद्दे पर ब्रिक्स के संस्थापक सदस्यों में से ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका एक ओर हैं जबकि नई दिल्ली दूसरी ओर। हाल ही में इजरायल ने अपनी ‘आत्मरक्षा’ (संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिकतर सदस्य देशों की नजर में पूर्व-आक्रमण) का विस्तार लेबनान तक करने का फैसला किया जहां इजरायल विरोधी एक और उग्रवादी संगठन हिजबुल्लाह का मुख्यालय है। लेबनान के विभिन्न हिस्सों में पेजर और वॉकी-टॉकी के साथ छेड़छाड़ करके उनमें विस्फोट किए गए जिसमें कई लोग मारे गए। हिजबुल्लाह ने विस्फोटों के पीछे इजरायल का हाथ होने का आरोप लगाया है। भारतीय मूल के नॉर्वेजियन रिनसन जोस का पता नहीं चल पाया है जो कथित तौर पर उस बुल्गेरियाई शेल कंपनी के मालिक हैं जिसने पेजर प्राप्त करने के लिए इजरायली जासूसी संगठन मोसाद द्वारा किए गए कथित सौदे के तहत हंगरी की एक फर्म को 13 लाख पाउंड का भुगतान किया था। इस हमले में आम नागरिकों का मारा जाना युद्ध अपराध के दायरे में आता है। 

इजरायल ने लेबनान पर बमबारी करके और हिजबुल्लाह कमांडर को मार गिराकर अपने आक्रमण का दायरा बढ़ा दिया है। हिजबुल्लाह ने इसका जवाब इजरायल पर मिसाइल हमलों से दिया। पश्चिम एशिया में बड़े पैमाने के क्षेत्रीय संघर्ष की आशंकाएं बड़ी तेजी से बढ़ी हैं क्योंकि अलोकप्रिय नेतन्याहू ने हमास द्वारा बंधक बनाए गए इजरायली बंधकों को सकुशल छुड़ाने पर ध्यान केन्द्रित किए बिना सत्ता में बने रहने के कथित प्रयास में युद्ध की आग में घी डाल दिया है। 

एनबीसी पोल में हैरिस को बढ़त 

अमेरिका में 5 नवंबर को मतदान होना है। 23 सितंबर को जारी ‘न्यूयॉर्क टाइम्स/सिएना कॉलेज’ के पोल के मुताबिक, गुंडागर्दी समेत चार मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद भी ट्रंप को एरिजोना, जॉर्जिया और उत्तरी कैरोलिना राज्यों में थोड़ी बढ़त मिल सकती है। हालांकि 22 सितंबर को ‘एनबीसी न्यूज’ के पोल ने हैरिस को राष्ट्रीय स्तर पर ट्रंप के 44 फीसद के मुकाबले 49 फीसद की बढ़त दी। जाहिर है कि ऐसे में इस मुकाबले का नतीजा मोटे तौर पर इस बात पर निर्भर करेगा कि पेंसिल्वेनिया, मिशिगन और विस्कॉन्सिन राज्य किसके पक्ष में रहते हैं। 

वैसे, अमेरिकी खुफिया और सुरक्षा सेवाओं के लिए यह रोमांचक समय है। ट्रंप की सुरक्षा के उनके प्रयासों में चूक न केवल उन पर दो जानलेवा हमलों के कारण गंभीर हो जाती है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि ईरान ने 2020 में ट्रंप के राष्ट्रपति रहते हुए अपने इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या का बदला लेने की कसम खाई हुई है। 10 सितंबर को पाकिस्तानी व्यवसायी आसिफ रजा मर्चेंट पर एक अमेरिकी सरकारी अधिकारी की हत्या के लिए अग्रिम के रूप में अंडरकवर अमेरिकी कानून प्रवर्तन अधिकारियों को 5,000 डॉलर नकद देने का आरोप लगाया गया था। अमेरिकी अटॉर्नी-जनरल मेरिक गारलैंड ने कहा, ‘जैसा कि आसिफ मर्चेंट के खिलाफ आतंकवाद और हत्या के लिए भाड़े के आरोपों से पता चलता है, हम उन लोगों को जवाबदेह ठहराना जारी रखेंगे जो अमेरिकियों के खिलाफ ईरान की घातक साजिश को अंजाम देने की कोशिश करेंगे।’ 13 जुलाई को पेंसिल्वेनिया की रैली में ‘हत्या के प्रयास’ के बाद 16 सितंबर को 58 वर्षीय रयान वेस्ले राउथ को फ्लोरिडा में उस गोल्फ कोर्स की परिधि के बाहर झाड़ियों से असॉल्ट राइफल के साथ पकड़ा गया जहां ट्रंप गोल्फ खेल रहे थे। अमेरिकी सीक्रेट सर्विस के शार्पशूटरों द्वारा देखे जाने और गोली चलाने के बाद वह घटनास्थल से भाग गया लेकिन एक घंटे के भीतर ही उसे गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में आग्नेयास्त्र अपराधों के लिए अदालत में उसे आरोपित किया गया। हालांकि, सीक्रेट सर्विस के कार्यवाहक निदेशक रोनाल्ड रोवे ने पत्रकारों को बताया कि संदिग्ध व्यक्ति ट्रंप पर ‘नजर नहीं रख रहा था’। 


भारत के एक और हितैषी की हार 

अगस्त में बांग्लादेश में शेख हसीना के निष्कासन और इस सप्ताह श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में रानिल विक्रमसिंघे की हार के बाद भारत खुद को उदासीन या शत्रुतापूर्ण पड़ोसियों (भूटान के अपवाद को छोड़कर) से घिरा हुआ पाता है।

श्रीलंका के नए राष्ट्रपति जनता विमुक्ति पेरमुना पार्टी के 55 वर्षीय अनुरा दिसानायके हैं। बेशक यह भारत विरोधी जनादेश नहीं है लेकिन श्रीलंका के लिए आज के समय में निवेश बेहद जरूरी है और इसके लिए दिसानायके नई दिल्ली और बीजिंग को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने का प्रयास कर सकते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि धनबल के मामले में भारत क्या चीन से मुकाबला कर सकता है?

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia