अर्थव्यवस्था और निर्यात में मामूली वृद्धि पर उछलने लगती है सरकार, लेकिन गिरावट पर क्यों साध लेती है मौन!
जब भी कोई अच्छी खबर आती है तो सरकार बल्लियों उछलने लगती है, भले ही उसका सरकार की नीतियों से कुछ लेना देना न हो, और जब कोई बुरी खबर होती है या कहने को कुछ नहीं होता तो सरकार चुप्पी साधकर मुंह छिपा लेती है।
2004 में, जब मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता संभाली थी, तो उस समय देश बाहर जाने वाले माल निर्यात करीब 63 अरब डॉलर था। 2014 में, जब मनमोहन सिंह ने सत्ता से बाहर गए, उस समय भारत का व्यापारिक निर्यात 312 अरब डॉलर पहुंच चुका था। इस तरह देखें तो यूपीए सरकार के 10 साल के शासन में निर्यात में हर साल 17 फीसदी की वृद्धि हुई।
आंकड़ों से पता चलता है कि मार्च 2020 में यानी कोविड से एक साल पहले, व्यापारिक निर्यात 314 अरब डॉलर था। इसका सीधा अर्थ है कि 2014 से 2020 के 6 साल में व्यापारिक निर्यात में कोई वृद्धि नहीं हुई। लेकिन व्यापारिक निर्यात में स्थिरता या गतिरोध पूरी तरह से भारत की नीतियों और शासन की कमी के कारण नहीं था। हकीकत यह है कि यूपीए शासन के एक दशक के दौरान जो वैश्विक व्यापार बढ़ा था, वह इस अवधि में स्थिर हो गया।
वैसे मामला यह भी है कि अन्य देशों ने इन वर्षों के दौरान काफी अच्छा प्रदर्शन किया। उदाहरण के लिए, बांग्लादेश और वियतनाम अपने निर्यात और वैश्विक व्यापार में अपनी भागीदारी को उसी अवधि में काफी बढ़ाया जिस दौरान हम स्थिर रहे। इस स्थिरता और व्यापारिक निर्यातके गतिरोध के इस लंबे दौर में बीच-बीच में कुछ महीनों में जब भी भारत ने हल्की वृद्धि दर्ज की, तब-तब मोदी सरकार के मंत्रियों ने सामने आकर खूब ढिंढोरा पीटा। वाणिज्य और उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु ने 13 अक्टूबर 2017 को ट्वीट किया कि "भारत की विकास की कहानी वापस आ गई है! सितंबर 2017 में सितंबर 2016 के मुकाबले निर्यात 25.6 फीसदी बढ़ा है।“ उन्होंने इस ट्वीट में हैशटैग #लीडरशिप का इस्तेमाल करते हुए नरेंद्र मोदी को टैग किया।
तो फिर उस पूरे वर्ष के लिए कुल निर्यात क्या था? उस साल कुल निर्यात 302 अरब डॉलर का रहा था, जो 2014 की तुलना में भी कम था, लेकिन मंत्री ने इस तथ्य का जिक्र नहीं किया। क्योंकि इससे पता चल जाता कि मोदी के सत्ता संभालने के बाद से निर्यात में गिरावट आई है। अगस्त 2018 में, उन्होंने वादा किया कि सरकार निर्यात को अगले पांच साल में दोगुना कर देगी, लेकिन ऐसा करने के लिए सरकार क्या कर रही है, इसका कोई खुलासा उन्होंने नहीं किया।
महामारी की पहली लहर के बाद, 2021 में वैश्विक व्यापार में तेजी आई। वर्षों के ठहराव के बाद इसमें एक चौथाई की वृद्धि हुई। कमोडिटी और तेल की कीमतों में भी तेजी आई। इस वजह से पहली बार 2021 में भारत का माल निर्यात 400 अरब डॉलर को पार कर गया।
इस साल 4 अप्रैल को, प्रेस सूचना ब्यूरो ने एक विज्ञप्ति जारी की, जिसका शीर्षक था: “भारत ने वित्त वर्ष 2021-22 में 417.81 अरब अमेरिकी डालर का आंकड़ा छुआ जोकि पिछले वित्त वर्ष के 291.81 अरब अमेरिकी डालर की तुलना में 43.18 फीसदी की वृद्धि के साथ एक अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचा है।" गौरतलब है कि मोदी के सत्ता संभालने के पहले सात साल के बाद 2020-21 में, माल का निर्यात 2014 के मुकाबले कम ही रहा। और, एक बार फिर, सरकार प्रधानमंत्री की कथित जादुई नीतियों को श्रेय देते हुए ढोल-ताशे पीटने लगी।
न्यूज एजेंसियों ने पीयूष गोयल के हवाले से खबर दी कि, "भारत ने 2030 तक एक खरब अमेरिकी डॉलर निर्यात का लक्ष्य तय किया है। बता दें कि एक खरब डॉलर में 1000 अरब डॉलर होते हैं। खबर में गोयल का बयान दिया गया जिसमें उन्होंने कहा था, “अब हम बीते कई साल से हर साल करीब 100 अरब डॉलर के मोड में हैं जो बीते 6-7 साल से जारी है। हम कम से कम 250 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार में हैं। मैं चाहूंगा कि हमारे सभी उद्योग के लोग समयरेखा निर्धारित करें। मुझे लगता है कि यह संभव है और मैं पहली बार भारत के 400 अरब डॉलर से अधिक के निर्यात के ऐतिहासिक उच्च स्तर को हासिल करने के बाद नए उत्साह में हूं।”
गोयल ने अपनी बात में वजन डालने के लिए और भी जोश दिखाया। उन्होंने कहा, "हम सार्वजनिक निवेश पर बहुत ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इस साल हमारा बजट काफी हद तक सरकारी वित्त पोषित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के बारे में रहा, जिसके पीछे हम मांग में बढ़ोत्तरी को देखते हैं और इससे मदद मिलती है और हमारा निर्यात अधिक बढ़ रहा है। आपूर्ति बाधाओं को पूरा करने के लिए निवेश।"
यहां ध्यान दिया जाना चाहिए कि आखिर यह वृद्धि क्यों हुई। और इसका उल्लेख करने से भी बचा गया कि आखिर महामारी से पहले के वर्षों में वृद्धि क्यों नहीं हुई। साथ ही यह भी नहीं बताया गया कि जिस वृद्धि के दावे किए जा रहे हैं उसे कैसे हासिल किया जाएगा। 2030 तक $417 अरब से 1000 अरब तक जाने का मतलब सालाना 13 फीसदी की दर से निर्यात बढ़ाना होगा। गोयल ने यह बात मार्च के अंत में कही थी, लेकिन जब पिछले वित्तीय वर्ष के आंकड़े आए। उसके बाद से क्या हुआ है?
अभी कुछ दिन पहले, 3 अक्टूबर को, पीआईबी ने एक विज्ञप्ति जारी की जिसमें उसने खुलासा किया कि सितंबर 2022 में माल का निर्यात एक साल की तुलना में कम रहा। अगस्त में भी निर्यात 2021 की तुलना में कम था। दुनिया की स्थिति, यूक्रेन में युद्ध और विकसित दुनिया, विशेष रूप से अमेरिका में मंदी और यहां तक कि मंदी के डर को देखते हुए, इस जानकारी से किसी को आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए।
लेकिन इस रहस्योद्घाटन पर सरकार की क्या प्रतिक्रिया थी कि एक वर्ष पहले निर्यात में जो उछाल था वह क्यों रुक गया? जाहिर है सरकार इस पर खामोश ही रही। और, वैसे भी ऐसी स्थिति में उससे कोई उम्मीद भी नहीं थी, क्योंकि यह सरकार तो इसी तरह काम करती है। जब भी कोई अच्छी खबर आती है तो सरकार बल्लियों उछलने लगती है, भले ही उसका सरकार की नीतियों से कुछ लेना देना न हो, और जब कोई बुरी खबर होती है या कहने को कुछ नहीं होता तो सरकार चुप्पी साधकर मुंह छिपा लेती है।
विश्व व्यापार संगठन ने 2023 के अपने वैश्विक व्यापार के अपने विकास पूर्वानुमान को 1 फीसदी घटा दिया है और कहा है कि यूक्रेन युद्ध के कारण हालात और खराब हो सकते हैं। इसका मतलब यह है कि जब तक भारत सक्रिय रूप से कुछ ऐसा नहीं करता है जो हमारे निर्यात को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, व्यापार वृद्धि में गिरावट आएगी क्योंकि कोविड आने के कई वर्षों पहले से इसमें गिरावट का ही रुख रहा है।
इस पूरे लेख में मूल विषय निर्यात है, लेकिन इससे उन तरीकों का खुलासा होता है जिनसे सरकार कामकाज करती है, खासतौर से अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दों को लेकर। किसी कारण के चलते देश का मीडिया, बिजनेस की खबरों का विशेषज्ञ मीडिया भी अर्थव्यवस्था को लंबी अवधि में प्रभावित करने वाले मुद्दों की बात नहीं करता है। इससे सरकार को वह सब करने की छूट मिल जाती है जो वह करती रही है और जरूरी मुद्दों से उसी तरह आंखें मूंद लेती है, जिस तरह अर्थव्यवस्था को लेकर की हैं।
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