बच्चों को लेकर भी असंवेदनशील है मोदी सरकार, लगातार जारी है बाल कल्याण की योजनाओं में कटौती

साल 2019-20 के संशोधित अनुमानों में बाल कल्याण की कई योजनाओं में बड़ी कटौतियां की गई। किशोरियों के स्वास्थ्य और भलाई की योजना सबला का बजट आधा कर दिया गया। अब साल 2020-21 का बजट तैयार हुआ तो इसमें भी इन कटौतियों का असर दूर करने का प्रयास नहीं हुआ।

फोटोः सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

मोदी सरकार विशेष तौर बच्चों के लिए केंद्र सरकार के बजट में कितना आवंटन होता है, यह बाल बजट दस्तावेज या चाईल्ड बजट स्टेटमैंट से पता चलता है। इसके आकलन से पता चलता है कि साल 2019-20 के बजट-अनुमान में बच्चों पर केन्द्रित आवंटन कुल बजट का 3.29 प्रतिशत हिस्सा था, जबकि इस वित्त वर्ष 2020-21 में यह प्रतिशत गिर कर 3.16 हो गया।

साल 2016 में नैशनल प्लान फाॅर एक्शन ऑफ चिल्ड्रन ने संस्तुति की थी कि यह हिस्सा कम से कम 5 प्रतिशत होना चाहिए। इतना ही नहीं, बच्चों की भलाई से जुड़े अनेक कार्यक्रमों में कटौती हुई या इसमें कमी आई। यहां तक कि ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना जैसी योजना की भी यही स्थिति है। निम्न विवरण से यह चिंताजनक स्थिति और उभर कर सामने आती है।

बाल-विकास की विभिन्न योजनाओं, जैसे- बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के लिए 2019-20 में 280 करोड़ का आवंटन हुआ था, जिसे संशोधित अनुमान में घटाकर 200 करोड़ कर दिया गया। अब 2020-2021 के आम बजट में भी इस योजना के लिए 200 करोड़ का आवंटन हुआ है। इसी तरह राष्ट्रीय बाल मजदूर परियोजना के लिए 2019-2020 के बजट में 100 करोड़ आवंटन को संशोधित अनुमान में 79 करोड़ कर दिया गया। अब ताजा आम बजट में इस योजना के लिए 120 करोड़ का आवंटन किया गया है।

इसी तरह बालिकाओं को माध्यमिक शिक्षा के लिए प्रोत्साहन की राष्ट्रीय स्कीम के लिए पिछले बजट में 100 करोड़ का आवंटन था, जो संशोधित अनुमान में घटकर 88 करोड़ हो गया। ताजा बजट में इश योजना के लिए 110 करोड़ दिया गया है। उसी तरह मिड-डे मील के लिए पिछले साल 11000 करोड़ का बजट था, जो घटकर 9912 करोड़ हुआ। अब इस साल इसके लिए 11000 करोड़ का प्रावधान किया गया है।


वहीं सबला (किशोरी योजना) के लिए 2019-2020 में 300 करोड़ का आवंटन बाद में घटकर 150 करोड़ रह गया था। इस हार के बजट में 250 करोड़ का आवंटन हुआ है। इसी तरह कोर आईसीडीएस आंगनवाड़ी सेवाओं के लिए पिछले बजट में 19834 करोड़ का आवंटन संशोधित अनुमान में घटकर 17705 करोड़ रह गया। साल 2020-2021 के बजट में 20532 करोड़ का आवंटन हुआ है। उसी तरह अनुसूचित जाति होस्टल (छात्र/छात्राएं) योजना का भी हाल है।

इससे स्पष्ट होता है कि साल 2019-20 के संशोधित अनुमानों में बाल कल्याण की कई महत्त्वपूर्ण योजनाओं में बड़ी कटौतियां की गई। किशोरियों के स्वास्थ्य और भलाई की योजना सबला का बजट आधा कर दिया गया। राष्ट्रीय बाल मजदूर परियोजना में 21 प्रतिशत की कटौती हुई। अब साल 2020-21 का बजट तैयार हुआ तो इसमें भी इन कटौतियों का असर दूर करने का प्रयास नहीं हुआ। कहीं वृद्धि भी है तो मामूली सी, जिससे शायद महंगाई का असर भी दूर न हो।

मिड-डे मील में अधिक छात्रों को शामिल करने (कक्षा नौ व दस) की बात प्रायः हो जाती है, पर इसके बजट से कटौती या स्थिरता नजर आती है। महंगाई का असर दूर करने लायक भी वृद्धि नहीं है। तो फिर कैसे अन्य कक्षाओं के छात्राओं को जोड़ा जाएगा। इस तरह बाल विकास और बच्चों की जरूरतों से हाल में प्रस्तुत बजट में न्याय नहीं हुआ है और इस बजट को बढ़ाना जरूरी है।

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