सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में मोदी सरकार के पास नहीं कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि
सामाजिक सुरक्षा के एनडीए सरकार के अब तक के खर्च और बजट प्रावधानों को देखें तो अभी तक कोई भी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि नजर नहीं आती है।
भारत की गिनती उन देशों में होती है जहां अधिकांश नागरिकों के लिए सरकारी स्तर पर प्रदान होने वाला सामाजिक सुरक्षा का कवच बहुत कमजोर है। अधिकांश नागरिकों को या तो ऐसी सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध ही नहीं है, उपलब्ध है भी तो बहुत कमजोर है।
इस दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि क्या हाल के समय में सरकारी स्तर पर इस व्यवस्था को मजबूत करने के प्रयास किए गए हैं? यह प्रयास कितने व्यापक हैं और कितने सफल रहे हैं? उपलब्ध आंकड़ों और जानकारियों से पता चलता है कि कुल मिलाकर यह प्रयास बहुत कम स्तर पर किए गए हैं और इन्हें और व्यापक बनाना बहुत जरूरी है।
सामाजिक सुरक्षा का एक मुख्य स्रोत पेंशन है। असंगठित क्षेत्र व निर्धन गैर-वेतनभोगी वर्ग के लिए पेंशन का मुख्य स्रोत केन्द्रीय सरकार का राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम है। इसकी पहुंच अभी मात्र 3.2 करोड़ व्यक्तियों तक है। भारत जैसे बड़े देश और अधिक निर्धन परिवारों वाले देश के लिए यह बहुत कम पहुंच है।
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के अंतर्गत वर्ष 2016-17 के अंतर्गत 8854 करोड़ रुपए खर्च किया गया जो भारत जैसे बड़े देश के लिए बहुत कम है। वर्ष 2017-18 के बजट में इसमें मामूली सी वृद्धि कर इसे 9500 करोड़ रुपए तक पंहुचाया गया था, पर जब संशोधित बजट तैयार हुआ तो इस पहले से कम बजट में लगभग 800 करोड़ रुपए की कटौती कर इसे 8744 करोड़ रुपए पर पहुंचा दिया गया। दूसरे शब्दों में 2017-18 का जो संशोधित बजट था, वह वर्ष 2016-17 के वास्तविक खर्च (8854 करोड़ रुपए) से भी कम था।
सामाजिक सुरक्षा का एक अन्य पक्ष यह है कि देश के असंगठित मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है और कितना खर्च कर रही है। इसके लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं आरंभ की हैं जो विभिन्न मंत्रालयों में बंटी हुई हैं।
वित्त मंत्रालय में इसके लिए एक योजना है स्वावलंबन। इस पर वर्ष 2015-16 में 250 करोड़ रुपए खर्च किया गया, पर वर्ष 2016-17 के बजट में इसे 50 करोड़ तक सिमटा दिया गया। वर्ष 2018-19 के बजट में तो इसका जिक्र ही नहीं मिलता है। इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि क्या इसे किसी अन्य योजना में मिला दिया गया है या इसे समाप्त ही कर दिया गया है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना आरंभ में श्रम और रोजगार मंत्रालय के अंतर्गत थी। वर्ष 2014-15 में इस पर 551 करोड़ रुपए खर्च हुए।
इसे वर्ष 2016-17 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में हस्तांतरित कर दिया गया और इसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना का नाम दिया गया। इस हस्तांतरण प्रक्रिया में वर्ष 2015-16 में इस पर कुछ खर्च ही नहीं किया। वर्ष 2016-17 में इस पर 466 करोड़ रुपए खर्च किए गए जो पहले से कम राशि थी।
वर्ष 2017-18 के बजट के मूल आवंटन में इसे तेजी से बढ़ाकर 1000 करोड़ रुपए तक पहुंचाया तो गया, पर संशोधित अनुमान में इसमें भारी कटौती कर फिर 470 करोड़ रुपए तक पंहुचा दिया गया।
वर्ष 2018-19 के बजट में फिर से इसके लिए पुराना नाम राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना वापस लाया गया है। बजट में इसके लिए आवंटन फिर बढ़ा कर 2000 करोड़ रुपए किया गया है, पर साथ में जो विशाल लक्ष्य 50 करोड़ व्यक्तियों को 5 लाख रुपए तक के इलाज की बीमा सुरक्षा का घोषित किया गया है, उसकी तुलना में देखें तो यह बहुत ही कम राशि है। अब केन्द्रीय सरकार नीति आयोग की सहायता से और राज्य सरकारों के सहयोग से इस तैयारी में जुटी है कि किसी तरह इसे कुछ व्यवहारिक रूप दिया जा सके।
यह आने वाले महीनों में ही पता चलेगा कि सरकार इस प्रयास में कितनी सफल होती है, पर यदि सामाजिक सुरक्षा के एनडीए सरकार के अब तक के खर्च और बजट प्रावधानों को देखें तो अभी तक कोई भी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि नजर नहीं आती है।
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