अहम विधेयकों को ताबड़तोड़ तरीके से पारित करवाकर संसदीय समितियों की प्रासंगिकता खत्म कर रही मोदी सरकार

17 वीं लोकसभा में विभिन्न मंत्रालयों से संबंधित समितियों का गठन अभी नहीं हुआ है। लेकिन उनके गठन से पहले ही विवादास्पद विधेयकों को बहुमत की आड़ में पारित करवाने की हड़बड़ी ने सरकार के मंसूबों पर सवाल खड़े किए हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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उमाकांत लखेड़ा

अपने दूसरे कार्यकाल के शुरुआत से ही मोदी सरकार ने कई अहम विधेयकों को पारित करवाने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है। लोकसभा में भारी बहुमत होने के बावजूद सरकार की यह हड़बड़ी संसदीय विशेषज्ञों को आश्चर्यचकित कर रही है।

17 वीं लोकसभा की पहली बैठक शुरू होते ही बजट तैयारियों को तरजीह देने और ज्वलंत मामलों पर चर्चा की पहल के बजाय मोदी सरकार ने सबसे पहले तीन तलाक को लोकसभा की मंजूरी दिलाना ज्यादा जरूरी समझा। राज्यसभा में सरकार का संख्याबल इतना नहीं है कि वो लोकसभा की तर्ज पर वहां विवादित विधेयकों को अपने बल पर पारित कर सके। इसलिए महीना भर बीतने के बाद इस विधेयक को राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सका। इस बीच राज्यसभा में दूसरी पार्टियों से सांसदों का दल बदल करवाकर बहुमत जुटाने का बंदोबस्त करने की प्रकिया शुरू कर दी गई। टीडीपी के 4 सांसद एक झटके में बीजेपी में शामिल कर लिए गए। इसके अलावा कई और दलों के सांसदों को बीजेपी में शामिल कर बहुमत जुटाने का काम तेजी से चल रहा है।


तीन तलाक के अलावा सूचना अधिकार संशोधन और मानवाधिकार संशोधन जैसे विधेयकों की संसदीय कमेटियो के जरिए समीक्षा किए बिना पारित करने की जल्दबाजी पर विपक्ष के साथ-साथ बीजेपी की सहयोगी दल बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस और टीआरएस और दूसरे दल सवाल खड़े कर रहे हैं।

मोदी सरकार की मनमानी को रोकने के लिए राज्यसभा में विपक्षी दलों की गोलबंदी तेज हो गई है। विपक्षी दलों की कोशिश है कि विवादित विधेयकों को गहन समीक्षा के लिए स्क्रूटनी कमेटी के सुपुर्द किया जाए। सरकार ने संसद की कार्यसमिति के समक्ष 16 ऐसे विधेयकों को सूचीबद्ध किया है, जिन्हें सरकार इसी सत्र में पारित करवाने पर अमादा है। संसदीय मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि नई संसदीय समितियां चूंकि अभी गठित नहीं हुईं ऐसी सूरत में मोदी सरकार उन्हें बाईपास करने की नीयत से इतनी जल्दबाजी में है।


मोदी सरकार पर सूचनाअधिकार कानून में संशोधन के जरिए सूचना आयुक्तों के सेवाकाल और वेतन भत्तों को तय करने का अधिकार अपने हाथ में लेने से विपक्षी दलों के अलावा सूचना अधिकार आंदोलन से जुड़े लोगों ने गंभीर चिंता प्रकट की है। उनका मानना है कि सरकार एक सोची समझी नीयत से सूचनाएं मांगने के आम जनता के अधिकार का हक छीन रही है।

नई लोकसभा के गठन के बाद संसदीय समितियों का गठन करने में मोदी सरकार की ओर से कोई सक्रियता नहीं दिखाई दी। इससे विपक्ष दलों का यह अंदेशा और मजबूत हो गया कि मोदी सरकार अहम और विवादित विधेयकों को संसदीय कमेटियों की स्क्रूटनी के बगैर ही पारित करवाने की हड़बड़ी में है। लोकसभा का यह सत्र 26 जुलाई के बाद 9 अगस्त तक बढ़ा दिया गया है, इससे सरकार की मंशा साफ हो गई है। सरकार की कोशिश है कि उन तमाम विधेयकों जिन पर विपक्षी दल ससंदीय कमेटियों की स्क्रूटनी की मांग कर रहे हैं, उन्हें भी राज्यसभा में बहुमत जुटाकर पारित करवा लिया जाय।


संसदीय समितियां जिन्हें मिनी संसद कहा जाता है का गठन अभी तक नहीं हुआ है। ऐसी चर्चा है कि मोदी सरकार तीन तलाक, सूचना अधिकार समेत बाकी विवादित विधेयकों को संसदीय कमेटियों के सुपुर्द करने से बचने के लिए इसी सत्र में इन्हें किसी भी सूरत में पारित करवाने के लिए कमर कस चुकी है।

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