मुंबई पुलिस में जो कुछ चल रहा है, उसकी कई परतें, खाकी वर्दी के पीछे के खेल की शरारतों को समझने की जरूरत

मशहूर कारोबारी मुकेश अंबानी के मुंबई स्थित निवास एंटीलिया के पास विस्फोटक से लदी एसयूवी के लावारिस हालत में पाए जाने के मामले में पुलिस अधिकारी सचिन वजे की गिरफ्तारी के बाद मुंबई पुलिस में जो कुछ चल रहा है, उसकी कई परतें हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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सुजाता आनंदन

मशहूर कारोबारी मुकेश अंबानी के मुंबई स्थित निवास एंटीलिया के पास विस्फोटक से लदी एसयूवी के लावारिस हालत में पाए जाने के मामले में पुलिस अधिकारी सचिन वजे की गिरफ्तारी के बाद मुंबई पुलिस में जो कुछ चल रहा है, उसकी कई परतें हैं।

मुंबई के पुलिस आयुक्त-पद से हटाए गए परमबीर सिंह इस वक्त जो आरोप लगा रहे हैं, उसकी पहली वजह तो यही है कि उन्हें आशंका थी कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) उन तक पहुंचने ही वाली है। इसी वजह से सिंह ने सीधे गृह मंत्री अनिल देशमुख पर ही आरोप लगा दिए कि उन्होंने मुंबई के लगभग 1,700 बार और रेस्टोरेंट से 100 करोड़ रुपये हर माह की अवैध वसूली करने को कहा था। परमबीर पहली गलती तो यहीं कर बैठे। पिछली कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने डांस बारों और हुक्का पार्लरों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की थी और इनकी संख्या इस महानगर में पहले ही काफी कम हो चुकी है। जो बचे हुए हैं, कोविड- 19 महामारी के दौरान लॉकडाउन की वजह से उनकी आमदनी बमुश्किल इतनी ही है कि वे किसी तरह अपना कारोबार चला सकें। ऐसे में उनसे इन दिनों इस तरह की भारी-भरकम राशि की वसूली के बारे में किसी के लिए सोचना भी तर्कसंगत नहीं लगता।

मसला इतना ही नहीं है। परमबीर जिस वक्त देशमुख के जूनियर अफसरों से मिलने का दावा कर रहे हैं, उस वक्त देशमुख कोविड से ग्रस्त होने की वजह से आईसीयू में थे। वह उस समय अपने ऑफिस या आवास पर मिल ही नहीं सकते थे। वैसे भी, जब डांस बारों का कारोबार खुद संकट में हो, तो गृह मंत्री-पद पर बैठा कोई भी व्यक्ति उद्योगपतियों, बिल्डरों, अंडरवर्ल्ड और न कुछ होतो, ट्रांस्फर-पोस्टिंग से इस तरह की राशि उगाहना बेहतर समझेगा। यह मोटी बात कोई भी समझ सकता है।

इस प्रकरण में भाजपा की बेचैनी समझी जा सकती है। यह कोई छिपी बात नहीं है कि वह उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी सरकार को गिराने का हरसंभव प्रयत्न करती रही है। दरअसल, पिछली भाजपा सरकार में गृह विभाग मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के पास ही था और सत्ता बदलने के इतने दिनों बाद भी कई अफसर फडणवीस से अपनी नजदीकी बनाए हुए थे। देशमुख ने ऐसे लोगों की पहचान कर ली थी और वह इन्हें काबू में भी रख रहे थे। ऐसे अफसरों और फडणवीस की इससे छटपटाहट समझी जा सकती है।


फडणवीस के समय किस तरह काम हो रहा था, उसे भी जानने की जरूरत है। वैसे, बीच में एक छोटी-सी बात। सब जानते हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के समय से नरेंद्र मोदी की आदत पार्टीवालों से लेकर किसी भी महत्वपूर्ण आदमी के फोन टैप कराने की रही है। इसे लेकर तमाम घटनाएं आम रही हैं। हाल यह है कि गुजरात तो क्या, अब तो देश भर में कहीं भी कोई बड़ा भाजपा या सरकार में शामिल किसी दल का कोई महत्वपूर्ण नेता फोन पर खास बात करने से कतराता है। फडणवीस ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में मोदी की इस परंपरा का ही पालन किया।

कई अफसर इस मामले में फडणवीस के चहेते थे। इस तरह के गुड बुक में पुणे पुलिस आयुक्त-पद पर रहे एक अफसर का नाम लिया जाता रहा है। उन्होंने खुफिया आयुक्त का पद भी संभाला। कहा जाता है कि उन्होंने ऐसी व्यवस्था तक की थी कि नई दिल्ली में नए महाराष्ट्र सदन का शायद ही कोई कमरा था जिसमें छिपे हुए माइक्रोफोन न लगा दिए गए हों। इस अधिकारी की बदौलत ही भीमा कोरेगांव मामले में तत्कालीन भाजपा सरकार ने मनमाफिक जांच करवा ली थी। इस अधिकारी को पूरा यकीन था कि फडणवीस दोबारा मुख्यमंत्री बन गए तो उन्हें मुंबई के पुलिस आयुक्त-पद पर पहुंचने से कोई नहीं रोक पाएगा और यह एक किस्म का इतिहास ही होगा। उनके मुतमईन होने का यह आलम था कि उन्होंने एनसीपी प्रमुख शरद पवार तक से एक मर्तबा ऐसा व्यवहार किया, मानो उनके मन में यह भाव हो कि पवार के दिन तो लद गए। समझा जा सकता है कि इस सरकार में उनके साथ क्या हुआ होगा।

वैसे, पुलिस के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप का आरोप सिर्फ पूर्व मुंबई पुलिस आयुक्त परमबीर ने ही नहीं लगाया है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रश्मि शुक्ला ने भी इसी किस्मका आरोप लगाया है। यह बात दूसरी है कि पुलिस में ही कई लोग ऐसे हैं जो शुक्ला कोअपने गिरेबां में झांकने की बात कहते हैं। उद्धव सरकार में कई मंत्री अब मानते हैं कि उनका यह विश्वास गलत था कि अधिकारी अपने पद की मर्यादा का ध्यान रखते हुए सरकार की नीतियों के अनुरूप चलेंगे। कई अधिकारी सरकार की जगह पार्टी विशेष या नेता विशेष के इशारे पर चल रहे हैं।


महाराष्ट्र पुलिस का ताजा घटनाक्रम इस बात का सबूत है कि केंद्र में अगर कभी गैर भाजपा सरकार बनी तो उसे एक खास विचारधारा वाले नौकरशाहों तथा पुलिस वालों से निबटने में कितनी दिक्कत होगी। कुछ अधिकारी पहले भी कुछ खास नेताओं के निकट रहे हैं लेकिन भाजपा ने तो अधिकतर लोगों में यह भाव पैदा कर दिया लगता है, मानो वे सब दिन के लिए सत्ता में हैं। लेकिन यह भाव दोधारी तलवार की तरह है।

(लेखिका मुंबई की कॉलमिस्ट हैं। ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं।)

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