कोरोना लॉकडाउन के खिलाफ दुनिया के कई बड़े वैज्ञानिक आए सामने, वैश्विक स्तर पर बेहतर नीतियों की मांग

वैज्ञानिक और चिकित्सीय समुदाय से डॉ भाकडी अकेले नहीं हैं जिन्होंने कोविड-19 से लड़ने के लिए उठाए गए कुछ अति कठोर कदमों की आलोचना की है। उनके साथ अनेक अन्य प्रतिष्ठित साथी हैं जिनकी आवाज इन अति कठोर कदमों के विरुद्ध उठ रही है। वे वैश्विक स्तर पर बेहतर नीतियों की मांग कर रहे हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

दुनिया में कोरोना वायरस से अब तक 1 लाख 65 हजार 56 की मौत हो चुकी है। जबकि 24 लाख 6 हजार 868 लोग संक्रमित हैं। वहीं, 6 लाख 17 हजार चार ठीक भी हुए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बताया की दुनियाभर में 24 घंटे में 81 हजार 153 मामलों की पुष्टि हुई है। साथ ही 6,463 लोग मारे गए हैं। कोरोना संकट को देखते हुए दुनिया के कई हिस्सों में लॉकडाउन जारी है। हालांकि इस लॉकडाउन के खिलाफ विश्व के अनेक बड़े वैज्ञानिक सामने आए हैं।

जर्मनी के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी एंड हाइजीन के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक डॉ सुचरित भाकडी ने हाल ही में जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल को एक खुला पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने कोविड 19 के संक्रमण से निबटने के उपायों पर अति शीघ्र पुनः विचार करने की जरूरत पर जोर दिया है। उन्होंने अपने पत्र में कहा है कि बहुत घबराहट की स्थिति में जो बहुत कठोर कदम उठाए गए हैं उनका वैज्ञानिक औचित्य ढूंढ पाना कठिन है। मौजूदा आंकड़ों पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा है कि किसी मृत व्यक्ति में कोविड-19 के वायरस की मात्र उपस्थिति के आधार पर इसे ही मौत का कारण मान लेना उचित नहीं है।


इससे पहले वैश्विक संदर्भ में बोलते हुए उन्होंने कहा कि कोविड-19 के विरुद्ध जो बेहद कठोर कदम उठाए गए हैं उनमें से कुछ कदम बेहद असंगत, विवेकहीन और खतरनाक हैं जिसके कारण लाखों लोगों की अनुमानित आयु कम हो सकती है। इन कठेर कदमों का विश्व अर्थव्यवस्था पर बहुत प्रतिकूल असर हो रहा है जो अनगनित व्यक्तियों के जीवन पर बहुत बुरा असर डाल रहा है। स्वास्थ्य देखभाल पर इन कठोर उपायों के गहन प्रतिकूल प्रभाव पड़े हैं। पहले से गंभीर रोगों से त्रस्त मरीजों की देखभाल में कमी आ गई है या उन्हें बहुत उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है। उनके पहले से तय ऑपरेशन टाल दिए गए हैं और ओपीडी बंद कर दी गई हैं।

वैज्ञानिक और चिकित्सीय समुदाय से डॉ भाकडी अकेले नहीं हैं जिन्होंने कोविड-19 से लड़ने के लिए उठाए गए कुछ अति कठोर कदमों की आलोचना की है। उनके साथ अनेक अन्य प्रतिष्ठित साथी हैं जिनकी आवाज इन अति कठोर कदमों के विरुद्ध उठ रही है। वे वैश्विक स्तर पर बेहतर नीतियों की मांग कर रहे हैं।


येल यूनिवर्सिटी प्रिवेंशन रिसर्च सेंटर के संस्थापक-निदेशक डॉ डेविड काट्ज ने कहा (न्यूयार्क टाईम्स, 20 मार्च 2020 ‘इज अवर फाइट अगेंस्ट कोरोना वायरस वर्स देन द डीजीज’ - क्या हमारी कोरोना वायरस के विरुद्ध लड़ाई इस बीमारी से भी ज्यादा बुरी है), “मेरी गहन चिंता है कि सामाजिक और आर्थिक स्तर पर और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बहुत गंभीर प्रभाव पड़ रहा है और सामान्य जीवन लगभग समाप्त हो गया है, स्कूल और बिजनेस बंद हैं, अनेक कार्यों पर प्रतिबंध हैं। इसका कुप्रभाव लंबे समय तक ऐसा नुकसान करेगा जो वायरस से होने वाली मौतों से बहुत ज्यादा होगा। बेरोजगारी, निर्धनता और निराशा से जनस्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा।”

सामाजिक कार्यकर्ता जब इस जमीनी हकीकत की बात करते हैं तो पूर्वाग्रह से ग्रस्त अधिकारियों द्वारा उनकी आलोचना की जाती है। अब यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि अनेक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक आगे आएं और चेतावनियां जारी करें। वास्तव में कुछ वैज्ञानिक न केवल चेतावनियां जारी कर रहे हैं बल्कि कुछ वैकल्पिक समाधान भी दे रहे हैं। सेंटर फॉर इन्फैक्शियस डिजीज रिसर्च एंड पॉलिसी, मिनेसोटा विश्वविद्यालय के निदेशक मिशेल टी आस्टरहोम ने कहा (वाशिंगटन पोस्ट, 21 मार्च 2020- ‘फेसिंग कोविड-19 रियलिटी-ए नेशनल लॉकडाऊन इज नो क्योर’ - कोविड-19 का सामना करने की सच्चाई-देश को लॉकडाउन करना समाधान नहीं है) “यदि हम सब कुछ बंद कर देंगे तो बेरोजगारी बढ़ेगी, डिप्रेशन आएगा, अर्थव्यस्था लड़खड़ाएगी। वैकल्पिक समाधान यह है कि एक ओर संक्रमण का कम जोखिम रखने वाले व्यक्ति अपना कार्य करते रहें, व्यापार एवं औद्योगिक गतिविधियों को जितना संभव हो चलते रहने दिया जाए पर जो व्यक्ति संक्रमण की दृष्टि से ज्यादा जोखिम की स्थिति में हैं वे सामाजिक दूरी बनाए रखने जैसी तमाम सावधानियां अपना कर अपनी रक्षा करें। इसके साथ स्वास्थ्य व्यवस्था की क्षमताओं को बढ़ाने की तत्काल जरूरत है। इस तरह हम धीरे-धीरे प्रतिरोधक क्षमता का विकास भी कर पाएंगे और हमारी अर्थव्यवस्था भी बनी रहेगी जो हमारे जीवन का आधार है।”


जर्मन मेडिकल एसोशिएसन के पूर्व अध्यक्ष डॉ फ्रेंक उलरिक मोंटगोमेरी ने कहा है, “मैं लॉकडाऊन का प्रशंसक नहीं हूं। जो कोई भी इसे लागू करता है उसे यह भी बताना चाहिए कि पूरी व्यवस्था कब इससे बाहर निकलेगी। चूंकि हमे मानकर यह चलना है कि यह वायरस तो हमारे साथ लंबे समय तक रहेगा, इसलिए यह सोच मुझे परेशान करती है कि हम कब सामान्य जीवन की ओर लौट सकेंगे।”

वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ लियोनिद इदेलमैन ने हाल ही में वर्तमान संकट के संदर्भ में कहा कि सम्पूर्ण लॉकडाऊन से फायदे की अपेक्षा नुकसान अधिक होगा। यदि अर्थव्यवस्था बाधित होगी तो बेशक स्वास्थ्य रक्षा के संसाधनों में भी कमी आएगी। इस तरह समग्र स्वास्थ्य व्यवस्था को फायदे की जगह नुकसान ही होगा। इन जाने माने वैज्ञानिकों के इन बयानों का एक विशेष महत्त्व यह है कि अति कठोर उपायों के स्थान पर यह हमें संतुलित समाधान की राह दिखाते हैं।

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Published: 20 Apr 2020, 11:59 AM