मध्य प्रदेशः बांध विस्थापितों के दर्द पर कमलनाथ सरकार का मरहम, लेकिन आंदोलन को व्यापक समर्थन की जरूरत
जरूरी है कि नर्मदा बचाओ आंदोलन ने विस्थापितों की समस्याओं पर जो सवाल उठाए हैं और अचानक से जल स्तर बढ़ाने का जो विरोध किया है उसपर सरकारी स्तर पर समुचित ध्यान दिया जाए और साथ में विभिन्न नागरिकों और नागरिक संगठनों को भी इन मांगों के समर्थन में आगे आना चाहिए।
मध्य प्रदेश सरकार की उचित समय पर की गई पहल से प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और विस्थापन प्रभावितों का अनिश्चितकालीन उपवास 2 सितंबर को समाप्त हो सका। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने राज्य के पूर्व मुख्य सचिव एस.सी. बेहर को आंदोलनकारियों के विशेष संदेशवाहक के रूप में भेजा। एस सी बेहर ऐसे पूर्व वरिष्ठ अधिकारी हैं जिन्हें अनेक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं का विश्वास प्राप्त है। आशा के अनुरूप उनके जाने से उपवास समाप्त करवाने में मदद मिली। उनके जरिये सरकार ने विस्थापितों के हितों की रक्षा के लिए सक्रियता बढ़ाने का अपना फैसला आंदोलनकारियों तक पहुंचाया।
यह बहुत जरूरी भी है क्योंकि बार-बार विस्थापितों की मांगों को उठाए जाने के बावजूद अभी तक उनका संतोषजनक पुनर्वास नहीं हुआ है। पहले के निर्णयों और निर्देशों के अनुसार डूब क्षेत्र में पानी तभी भरा जा सकता है जब संतोषजनक पुनर्वास पूरा हो जाए। लेकिन इस साल सरदार सरोवर बांध के जल-स्तर को तेजी से बढ़ते देने का निर्णय लिया गया, जिससे बिना उचित पुनर्वास के हजारों परिवारों की भूमि डूबने का खतरा उत्पन्न हो गया।
सरदार सरोवर बांध विस्थापितों का पुनर्वास विभिन्न राज्यों का मिला-जुला मुद्दा है। केवल मध्य प्रदेश सरकार अपने स्तर पर इसे नहीं सुलझा सकती है। इसके लिए गुजरात सरकार और केंद्र सरकार का सहयोग जरूरी है। नर्मदा बचाओ आंदोलन का कहना है कि 32000 परिवार ऐसे हैं जिन्हें न्यायसंगत पुनर्वास का अभी इंतजार है। आंदोलन की मांग है कि जब तक इन परिवारों को न्याय नहीं मिलता है, तब तक जल-स्तर नहीं बढ़ाना चाहिए। अपनी मांगों के पक्ष में नर्मदा बचाओ आंदोलन ने कहा है कि मूल योजना में विस्थापितों को भूमि मिलने और अन्य न्यायसंगत पुनर्वास की कार्यवाहियों की समुचित व्यवस्था थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी न्यायसंगत पुनर्वास के लिए स्पष्ट निर्देश दिए थे।
एक लोकतांत्रिक आंदोलन के रूप में नर्मदा बचाओ आंदोलन ने सरदार सरोवर बांध के बहुपक्षीय असर पर अपने विचार और प्रभावित लोगों की आवाज समाज और सरकार के सामने रखी है। आंदोलन ने इससे संबंधित अनेक अध्ययन और सर्वेक्षण भी किए हैं या इनमें सहयोग किया है। नर्मदा बचाओ आंदोलन के प्रयासों के फलस्वरूप ही सरदार सरोवर परियोजना के स्वतंत्र आकलन के लिए मोर्स समिति का गठन किया गया। इस समिति की रिपोर्ट में आंदोलन द्वारा उठाई गई अनेक आलोचनाओं और समस्याओं की पुष्टि हुई। समिति ने स्वीकार किया कि मौजूदा परिस्थितियों में संतोषजनक पुनर्वास संभव नहीं है। इसके अतिरिक्त अनेक अन्य स्वतंत्र और निष्पक्ष आकलनों ने भी सरदार सरोवर परियोजना के विस्थापितों की समस्याओं पर चिंता व्यक्त की है।
अतः इस समय यह जरूरी है कि नर्मदा बचाओ आंदोलन ने विस्थापितों की समस्याओं पर जो सवाल उठाए हैं, या अत्यधिक जल्दबाजी से जल स्तर बढ़ाने का जो विरोध किया है उस पर सरकारी स्तर पर समुचित ध्यान दिया जाए और साथ में विभिन्न नागरिकों और नागरिक संगठनों को भी इन मांगों के समर्थन में आगे आना चाहिए।
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