मध्य प्रदेश: पिछले दरवाजे से खेल करने के फिराक में अमूल, स्कूल में भी घोटाले!

सवाल यह उठता है कि अगर निर्वाचित निकाय इसे पांच साल तक नहीं चलाता है और राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है, तो पांच साल बाद सहकारी समितियों का प्रबंधन और इसकी परिसंपत्तियों और देनदारियों को कौन संभालेगा?

फोटो: सोशल मीडिया
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काशिफ काकवी

पिछले महीने नाटकीय यूटर्न में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने घोषणा की कि राज्य में दुग्ध सहकारी समितियों को अगले पांच वर्षों के लिए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) को सौंपा जा रहा है। अमूल और गुजरात दुग्ध सहकारी विपणन संघ की कुछ शर्तों पर कथित तौर पर आपत्ति जताने वाले पशुपालन सचिव गुलशन बामरा को रातोंरात हटा दिया गया। बामरा पिछले नौ महीनों से अमूल के साथ हो रही बातचीत में मुख्य भूमिका अदा कर रहे थे और अचानक यह घोषणा कि दुग्ध सहकारी समितियों का प्रबंधन और संचालन एनडीडीबी द्वारा किया जाएगा, लोगों को हैरान कर गई। बामरा ने इसी साल मई में टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा था कि ‘दूध उत्पादक किसानों के फायदे के लिए मध्य प्रदेश में अमूल की भूमिका पर सरकार जल्द ही फैसला करेगी।’ 

भोपाल सहकारी दुग्घ संघ मर्यादित के पूर्व निदेशक गिरीश पालीवाल ने कहा, ‘सरकार क्या चाहती है, कुछ नहीं पता।’ पिछले महीने तक सरकारी अधिकारी कह रहे थे कि मध्य प्रदेश संघ के ब्रांड ‘सांची’ का अधिग्रहण अमूल द्वारा किया जाएगा। अब सरकार ने राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के साथ एमओयू कर लिया है। मुख्यमंत्री मोहन यादव दुग्ध संघ को छोड़कर सबसे बात कर रहे हैं। मध्य प्रदेश सहकारी डेयरी संघ के चुनाव 2017 से ही लंबित हैं। यह वैसा ही है जैसे दूल्हे से सलाह किए बिना शादी तय कर दी जाए।’ 

सरकार के इस फैसले पर गहरा असंतोष है। भोपाल सहकारी दुग्ध संघ के घनश्याम बारस्कर ने कहा, ‘सांची के पास एक मजबूत बुनियादी ढांचा है जिसे सालों से सरकार की मदद के बिना विकसित किया गया था। बीजेपी सरकार पिछले 20 सालों से सो रही थी और अब जागने पर उसने ब्रांड को दूसरों को सौंप दिया।’ आलोचकों का कहना है कि एनडीडीबी ने 2008 में पांच साल के लिए झारखंड में दुग्ध सहकारी समितियों के प्रबंधन और संचालन का काम अपने हाथ में लिया था लेकिन अनुभव संतोषजनक नहीं रहा। उनका कहना है कि सांची ब्रांड अमूल के बजाय एनडीडीबी को सौंपने का फैसला इसलिए किया गया क्योंकि अमूल को देने पर इसके खिलाफ ‘राजनीतिक-सामाजिक’ प्रतिक्रिया शुरू हो जाती। सवाल यह उठता है कि अगर निर्वाचित निकाय इसे पांच साल तक नहीं चलाता है और राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है, तो पांच साल बाद सहकारी समितियों का प्रबंधन और इसकी परिसंपत्तियों और देनदारियों को कौन संभालेगा?

कांग्रेस नेता विवेक तन्खा ने एक्स पर पोस्ट किया, ‘गुजरात के प्रसिद्ध ब्रांड अमूल द्वारा पिछले दरवाजे से ‘सांची’ का अधिग्रहण किया जा रहा है। कर्नाटक की ‘नंदिनी’ के साथ भी ऐसी ही कोशिश की गई थी। मध्य प्रदेश सरकार भले झुक जाए लेकिन मध्य प्रदेश के 7.5 करोड़ लोगों के लिए सांची एक घरेलू ब्रांड है और वे इसका विरोध करेंगे।’ इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘लंबे समय से अमूल सांची डेयरी संघ के अधिग्रहण की कोशिश कर रहा है। अमूल गुजरात की कंपनी है और बहुत अच्छा काम कर रही है... हर राज्य को अपना दूध ब्रांड रखने का अधिकार है। हम सांची को अधिग्रहित नहीं होने देंगे और अगर सरकार हमारी बात नहीं सुनती है, तो संसद, विधानसभा में इस मामले को उठाएंगे और अदालतों का दरवाजा भी खटखटाएंगे।’

राज्यसभा सांसद के एक्स पर पोस्ट के तुरंत बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव ने दिल्ली में केन्द्रीय सहकारिता मंत्री और गृह मंत्री अमित शाह से भेंट की। सीएम ने मीडिया को बताया कि राज्य में दूध उत्पादन और डेयरी किसानों की आय बढ़ाने में केन्द्र सरकार की मदद हासिल करने के मामले में एनडीडीबी के साथ किया गया एमओयू सहायक होगा।

मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के एक महीने से भी कम समय में मोहन यादव 10 जनवरी को अमूल के अधिकारियों के साथ देर रात हुई बैठक के लिए अहमदाबाद गए थे और कहा जाता है कि इस बैठक को कराने के पीछे अमित शाह थे। इस बैठक में गुलशन बामरा और गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ के प्रबंध निदेशक जयन मेहता मौजूद थे।

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, राज्य में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 644 ग्राम प्रतिदिन है जो राष्ट्रीय औसत 459 ग्राम से अधिक है। सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि राज्य में 5,941 डेयरी सहकारी समितियां सक्रिय हैं। उत्तर प्रदेश और राजस्थान के बाद तीसरे सबसे बड़े दूध उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश में सहकारी समितियों ने 2022-23 में 201.22 लाख टन दूध इकट्ठा किया था जो पिछले साल की तुलना में 26 फीसद ज्यादा है। इस मामले में लोगों का पहला सवाल यही है कि जब राज्य की डेयरी सहकारी समितियां इतना अच्छा काम कर ही रही हैं, तो अमूल की विशेषज्ञता लाने की जरूरत ही क्या थी? अन्य लोगों का सवाल है कि भला अमूल एक संभावित प्रतिद्वंद्वी ब्रांड को विकसित करने में क्यों मदद करेगा? अमूल की मध्य प्रदेश में पहले से ही उपस्थिति है और इसका बड़ा बाजार उसके हिस्से में है। लोगों का सवाल है कि क्या यह संभव है कि अमूल जिसने हाल ही में भारतीय प्रवासियों को प्रसंस्करण उत्पाद उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ताजा दूध की आपूर्ति करने के लिए अमेरिका में मिशिगन स्थित एक डेयरी के साथ समझौता किया है, मध्य प्रदेश में भी कुछ ऐसा ही करना चाहता है? 


स्कूली घोटाला  

राज्य सरकार ने पिछले 10 सालों में प्रदेश के 94 हजार सरकारी स्कूलों की सेहत ठीक करने पर करीब दो लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इसलिए शिक्षा विभाग की हाल ही में हुई एक बैठक में साझा किए गए चौंकाने वाले आंकड़े तुरंत सुर्खियों में आ गए। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, बैठक में बताया गया कि इस साल 5,500 सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा में कोई दाखिला नहीं हुआ है। 25,000 स्कूलों ने पहली कक्षा में एक या दो दाखिले की सूचना दी जबकि 11,345 स्कूलों ने पहली कक्षा में 10 से कम छात्रों को दाखिला दिया है। दूसरे शब्दों में कहें तो राज्य के 40 फीसदी सरकारी स्कूलों में या तो कोई छात्र नहीं है या फिर गिनती के छात्र हैं। 

इसी बैठक में स्पष्ट रूप से बताया गया कि छिंदवाड़ा जिले में 299 स्कूलों में कोई नामांकन नहीं है और 805 स्कूलों में सिर्फ एक या दो छात्र हैं। राज्य के स्कूली शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह का गृह जिला नरसिंहपुर भी पहली कक्षा में शून्य नामांकन रिपोर्ट करने वाले शीर्ष पांच जिलों में शामिल है। इससे भी बुरी बात यह है कि सिर्फ एक जिले में अनुमानित 40,000 छात्रों ने सरकारी स्कूल छोड़ दिया। इसकी दो ही वजह हो सकती है। या तो सरकारी स्कूलों से निकलने वाले छात्रों ने पढ़ाई ही छोड़ दी हो या फिर उन्होंने निजी स्कूलों में दाखिला ले लिया हो। इसका जवाब पाना मुश्किल है क्योंकि निजी स्कूलों के बारे में कोई ठोस आंकड़ा उपलब्ध नहीं। वैसे, यह जानी हुई बात है कि नेताओं, मंत्रियों, विधायकों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा प्रचारित निजी स्कूलों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। 

2023 में स्कूली शिक्षा पर एएसईआर की रिपोर्ट चौंकाने वाली है क्योंकि यह 2018 से नामांकन में आई वृद्धि की बात करती है। राष्ट्रीय स्तर पर 2010 से 2014 के दौरान सरकारी स्कूलों में नामांकन में गिरावट देखी गई। रिपोर्ट के मुताबिक, इसके बाद यह ग्राफ 2014-2018 के दौरान समतल रहा और फिर 2018 से 2022 की अवधि में ऊपर चढ़ता हुआ सरकारी स्कूलों में नामांकन में 7.3 फीसद का इजाफा हुआ। इन आंकड़ों से हंगामा मच गया और शिक्षाविदों ने कहा कि इसका बड़ा कारण यह है कि तमिलनाडु जैसे राज्य स्कूली छात्रों को मुफ्त नाश्ता, दोपहर का भोजन, वर्दी, स्कूल बैग, ज्योमेट्री बॉक्स, किताबें, क्रेयॉन, नक्शे, साइकिल, जूते और यहां तक ​​कि बस पास भी देते हैं। राज्य शिक्षक संघ के अध्यक्ष उपेंद्र कौशल ने दावा किया कि स्कूलों में पढ़ाने के लिए 1.7 लाख अतिथि शिक्षक नियुक्त किए गए हैं और 46 जिलों में कम-से-कम 1,275 स्कूलों में कोई भी स्थायी शिक्षक नहीं है। इन अतिथि शिक्षकों को बहुत कम वेतन दिया जाता है और हर चंद महीनों में उनका अनुबंध रिन्यू किया जाता है। सेना में अग्निवीरों के बाद, क्या मध्य प्रदेश में इस प्रयोग को शिक्षावीर कहा जा सकता है? 

काम कर रहे बुलडोजर

वह 70 साल की हैं और उनके पास पक्का घर बनाने के पैसे नहीं हैं। हालांकि तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2008 में उसे रहने के लिए जमीन का एक छोटा टुकड़ा आवंटित करते हुए इसका ‘पट्टा’ उसे सौंपा। उनके दामाद का कहना है कि वह 40 साल से उसी भूखंड पर रह रही थीं। हालांकि पिछले महीने जब बरकत बाई बीमार पड़ गईं और उनकी बेटी उन्हें इलाज के लिए गुजरात ले गई, तो नीमच नगरपालिका के अधिकारी सुबह 6 बजे बुलडोजर लेकर पहुंचे और टिन शेड वाली झुग्गी को ध्वस्त कर दिया। नगरपालिका का दावा है कि यह खाली जमीन फायर स्टेशन के लिए आरक्षित थी और बुलडोजर का इस्तेमाल उस क्षेत्र को साफ करने के लिए किया गया था और वहां कोई ‘स्थायी’ निवासी या संरचना नहीं थी जबकि सरकारी दस्तावेज ने अधिकारियों को झूठा करार दिया है और इस बात को लेकर संदेह ही है कि उस महिला को उसकी झुग्गी में वापस बसने की अनुमति दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट क्या कहता है, इस पर न जाएं। बुलडोजर अब भी अपना काम कर रहे हैं। 

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