खरी-खरीः ‘लव जिहाद’ तो एक बहाना है, चुनाव जीतना असली निशाना है

अब जब सारे देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ी हुई है तो फिर योगी के प्रदेश का क्या होगा? रोजगार है नहीं, किसान रो रहा है और काम-धंधे ठप हैं। ऐसी स्थिति में यदि सामान्य मुद्दों पर चुनाव हो जाए तो फिर योगी क्या, मोदी जी को भी पसीने आ जाएंगे।

फोटोः नवजीवन
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ज़फ़र आग़ा

मिर्जा गालिब का एक बहुत ही मशहूर शेर कुछ इस तरह से है-

इश्क पर जोर नहीं, है ये वो आतिश ‘गालिब’

कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।

गालिब की इस गजल को सुरैया ने गाया भी खूब है। लेकिन इन दोनों को यह पता नहीं था कि यदि वे योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश में रह रहे होते और ऐसा कोई शेर लिखते तथा गाते तो उनको दस वर्ष तक की कैद हो सकती थी। जी हां, योगी जी के शासन में उत्तर प्रदेश में आप एक छोटे-मोटे ट्वीट पर जेल जा सकते हैं। यदि आप पत्रकार हों और हाथरस बलात्कार-जैसे कांड की छानबीन के लिए वहां जाने का प्रयास करें तो आप को देशद्रोह के आरोप में जेल जाना ही पड़ेगा। और प्रदेश के ताजा कानून के अनुसार, आप उत्तर प्रदेश में यदि चचा गालिब की इस गजल से प्रभावित होकर इश्क करने का जुर्म कर बैठें तो अब जेल की हवा खानी ही पड़ेगी।

भाई, ‘लव जिहाद’ पर उत्तर प्रदेश सरकार ने जो काननू पास किया है, उसके अनुसार, अब प्रदेश में इश्क पर भी पाबंदी है। कहने को तो यह कानून दो अलग-अलग समुदायों के बीच विवाह रोकने के लिए बनाया गया है। परंतु हमारे देश की परंपराओं के तहत दो अलग-अलग समुदाय के लड़के-लड़कियों के बीच विवाह तब ही होता है जब दोनों के बीच गहरा इश्क हो जाए। अर्थात उत्तर प्रदेश में अब इश्क ‘हराम’ ठहरा।

मैंने ‘हराम’ शब्द का प्रयोग इसलिए किया कि मुसलमानों में किसी चलन को रोकने के लिए मुल्ला-मौलवी उसके खिलाफ फतवा देकर उस चलन को ‘हराम’ अर्थात अवैध करार देते हैं। ऐसे ही, अब योगी जी ने ‘लव जिहाद’ की आड़ में इश्क को अवैध घोषित कर दिया है। और ठीक भी है! योगी जी मुल्ला तो नहीं परंतु एक मठ के मठाधीश तो हैं ही। मठाधीशों का यह चलन होता है कि जो बात उनको पसंद नहीं, वे उसको अमान्य घोषित कर देते हैं। अब एक मठाधीश के नाते योगी जी इश्क को अवैध घोषित नहीं करते तो और क्या करते!

लेकिन योगी जी यह भूल जाते हैं कि वह अब केवल मठाधीश ही नहीं हैं, बल्कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं। और मुख्यमंत्री को संविधान की परिधि में रह कर ही काम-काज करना होता है। योगी जी शायद यह भूल गए कि देश के संविधान के अनुसार, दो अलग-अलग आस्थाओं के लड़का-लड़की के बीच विवाह गैर-काननूी नहीं है। बेचारे योगी जी, वह मानसिकता से तो ठहरे मठाधीश और एक मठाधीश को केवल हुकम देने की आदत होती है।

यूं तो उसका हुकम उसके मठ तक सीमित होता है। परंतु योगी जी अब मुख्यमंत्री हैं और उनके लिए पूरा प्रदेश उनका मठ है। अतः उन्होंने संविधान की चिंता किए बिना ही इश्क को ‘लव जिहाद’ की परिधि में रख कर उस पर पाबंदी लगा दी। संविधान की चिंता उनको नहीं है। और हो भी तो क्यों! वह जिस संघ पाठशाला से राजनीति लिख-पढ़ कर आए हैं, उस पाठशाला में संविधान केवल सत्ता प्राप्ति का एक साधन मात्र है। संघ का असल संविधान तो ‘मनुस्मृति’ है। और उसके अनुसार, दो अलग समुदाय तो क्या, दो अलग जातियों के बीच भी शादी ‘हराम’ है।

पर योगी जी इतने भोले नहीं कि बकौल गालिब इश्क पर जोर नहीं होता। बस, यह तो एक आतिश (आग) है जो कभी भी दो दिलों में जल उठती है और फिर, किसी के बस में उस आग को बुझाए नहीं बनता है। भले ही योगी जी मठाधीश हों लेकिन उनको अब यह तो पता ही है कि इश्क क्या गजब चीज है। वह इस बात से भी अवगत हैं कि देश के संविधान के अनुसार, ‘लव जिहाद’ की आड़ में दो अलग समुदायों के बीच शादी-ब्याह अवैध नहीं है। तो फिर यह सवाल है कि यह सब जानते-बुझते हुए भी योगी जी ‘लव जिहाद’ के खिलाफ क्यों काननू पारित कर रहे हैं।

अरे भाई, ‘लव जिहाद’ केवल योगी जी की ही नहीं बल्कि यह तो नरेंद्र मोदी से लेकर संपूर्ण बीजेपी की राजनीति है। केवल एक योगी जी ही अकेले बीजेपी के मुख्यमंत्री नहीं हैं जो ‘लव जिहाद’ को रोकने का बीड़ा उठा रहे हैं। बीजेपी-शासित हरियाणा, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के मुख्यमंत्री भी ‘लव जिहाद’ विरोधी काननू पास करने की बात कह चुके हैं। बीजेपी की राजनीति का आधार ही भ्रम फैलाकर सत्ता में बने रहना है। और यह भ्रम एक फर्जी शत्रु के आधार पर उत्पन्न किया जाता है। भाजपा हिंदू वोट बैंक की राजनीति करती है। किसी एक समुदाय को अपने पक्ष में इकट्ठा करने के लिए किसी दूसरे समुदाय को शत्रु की छवि देना आवश्यक हो जाता है।

मोदी जी सन 2002 में गुजरात नरसंहार के बाद से इसी रणनीति पर चुनाव जीतते चले आ रहे हैं। कभी इस भ्रम को वैध करने के लिए ‘गोधरा कांड’, तो कभी मियां मुशर्रफ, तो कभी पाकिस्तान और देश का मुसलमान काम देता है। अब उत्तर प्रदेश में बीजेपी की स्थिति कमजोर है। योगी का शासन गुंडा राज बन चुका है। खुलेआम दिन-दहाड़े गुंडे जिसकी चाहे हत्या कर दें। बहू-बेटियों की इज्जत आए दिन के बलात्कारों ने खतरे में डाल दी है। उत्तर प्रदेश में हाल के वर्षों में किसी भी शासनकाल में आर्थिक उन्नति का चलन तो था ही नहीं। अब जब सारे देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ी हुई है तो फिर योगी के प्रदेश का क्या होगा।

आप समझ ही सकते हैं। रोजगार है नहीं, किसान रो रहा है और काम-धंधे ठप हैं। ऐसी स्थिति में यदि सामान्य मुद्दों पर चुनाव हो जाए तो फिर योगी जी क्या मोदी जी को भी पसीने आ जाएंगे। अतः भ्रम पैदा करो, हिंदू-मुसलमान की खाई पैदा करो ताकि हिंदू समाज मुसलमान को अपना शत्रु समझ कर अपनी समस्याएं भूल मोदी और योगी के संरक्षण के नाम पर अपना वोट डाल दे। अब यह भ्रम ‘लव जिहाद’ की आड़ में हिंदू समाज की लड़कियों पर मुसलमान लड़कों के इश्क से पैदा किया जा रहा है।

प्रश्न यह है कि घोर आर्थिक संकट में भी क्या जनता ‘लव जिहाद’ जैसे हथकंडों से भ्रमित हो सकती है? आपको उत्तर प्रदेश की स्थिति तो पता ही है। यह देश के अति पिछड़े प्रदेशों में से एक है। समाज का लगभग आधा वर्ग अशिक्षित है। जो पढ़े-लिखे हैं, वे भी रीति-रिवाजों में और जात-पात के भ्रम में जकड़े हुए हैं। उत्तर प्रदेश ऐसा प्रदेश है जहां आज तक समाज सुधार की कोई चेष्टा हुई ही नहीं। हद तो यह है कि प्रदेश में आर्य समाज प्रथा भी सफल नहीं हुई। ऐसे पिछड़े समाज में ‘लड़की की इज्जत का सवाल है’ जैसे मुद्दे पर भ्रमित करना कोई बड़ी कठिन बात नहीं है। अतः प्रदेश के अगले चुनावों से पहले योगी जी ‘लव जिहाद’ का बीज बोएंगे और चुनाव के समय मोदी जी अपनी चुनावी सभाओं में अपने भड़काऊ संवादों के माध्यम से चुनाव की फसल काट ले जाएंगे।

अब ऐसे में हो तो क्या! केवल एक रास्ता है। वह रास्ता जनता के मुद्दों पर संघर्ष का रास्ता है। राजनीतिक दलों को अब सड़क की राजनीति करनी होगी। केवल चुनाव के समय चुनावी भाषणों से अब विपक्ष का काम बनने वाला नहीं है। अभी बिहार में तेजस्वी यादव ने बड़ी-बड़ी सभाएं कीं। परंतु वहां भी अंततः ओवैसी कार्ड का इस्तेमाल कर मोदी और योगी- जैसों ने बिहार का चुनाव जीत लिया। जीत में जो थोड़ी-बहुत कसर बची थी, वह चुनाव लूट कर पूरी कर ली गई। यही हाल उत्तर प्रदेश का किए जाने की तैयारी है। अतः ‘लव जिहाद’ तो एक बहाना है, चुनाव जीतना निशाना है। पर योगी जी लाख राजनीति कर लें, इश्क तो इश्क ठहरा वह तो फिर भी होगा ही। क्योंकि बकौल गालिब है ये वो आतिश कि लगाए न लगे और बुझाए न बने

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