विष्णु नागर का व्यंग्यः कमल खिले हैं गुलशन-गुलशन, कीचड़ ब्रांड बना नेशनल ब्रांड!
इसकी मांग इतनी अधिक है कि लोग कमल कहीं भी खिला लेते हैं, कीचड़ ब्रांड के नाम से बेच देते हैं। लोग घर की छत पर, गमले में या सोफे पर भी उगा कर नेशनल ब्रांड के नाम से बेच देते हैं। जो कीचड़ में गहरे धंस कर इसे उगाते हैं, वे इसे 'सुपर नेशनल ब्रांड' कहते हैं।
पानी में तो खिलते ही थे पहले भी कमल। कीचड़ में भी खिलते थे कभी-कभी। अब कीचड़ में ही जल्दी और बढ़िया खिलते हैं। ऐसा एक कमल सात साल पहले अखिल भारतीय स्तर पर क्या खिला कि कीचड़ ब्रांड का ही बोलबाला हो गया। इसे कीचड़ वैरायटी उर्फ ब्रांड कहना चूंकि सभ्य समाज के नियमों के विपरीत है, इसलिए अब इसे नेशनल ब्रांड कहा जाता है। अधिक उत्साहीलाल इसे इंटरनेशनल ब्रांड कहते हैं। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह बताई जाती है कि इसमें से नाली से बनी गैस की 'मस्त खुशबू' आती है। आती होगी। अपनी नाक पिछले सात साल से खराब है। ससुरी ठीक ही नहीं होती। लगता है हनुमान मंदिर जाना पड़ेगा।
हां तो कीचड़ ब्रांड की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि लोग यही वैरायटी उगाने लगे, खरीदने-बेचने लगे। इससे पानी वैरायटी को ईर्ष्या हुई! उसने खिलना छोड़ दिया। कई लोगों ने इसके बाद भी पानी वैरायटी को खिलाने की कोशिश की मगर व्यर्थ। हार कर उन्हें भी कीचड़ ब्रांड में नाली की गैस की 'मस्त खुशबू' आने लगी। वे भी इसे नेशनल ब्रांड मानने लगे। ऐसी स्थिति है आजकल।
मांग इसकी इतनी अधिक है कि लोग कमल कहीं भी खिला लेते हैं, कीचड़ ब्रांड के नाम से बेच देते हैं। लोग घर की छत पर, गमले में, सोफे या डाइनिंग टेबल पर भी उगा कर नेशनल ब्रांड के नाम से बेच देते हैं। जो कीचड़ में गहरे धंस कर इसे उगाते हैं, वे इसे 'सुपर नेशनल ब्रांड' कहते हैं। उनका दावा है कि यही असली ब्रांड है। इसमें वह खुशबू है कि अहा! मेरे जैसे बेवकूफों पर जिस दिन अमीरी चढ़ी होती है, वे यही उठा लाते हैं। खासकर जब कोई खास मेहमान आने वाला होता है। उसे चार बार बताते हैं कि हमारी पसंद तो यही ब्रांड है। पत्नी इसमें जोड़ती है, हां हमारे बच्चे तक उस घटिया नेशनल ब्रांड को दूसरे के यहां देखकर पिनपिना जाते हैं। संस्कारी हैं न!
सिर पर खिलते कमल पिछले सात सालों में सबने देखे हैं। उनकी चर्चा करके क्यों समय खराब करना। अब तो नाक, कान, मुंह, पेट में भी कुछ लोग कमल खिलाने लगे हैं। मैंने इधर पत्थर की बेंच पर भी कमल खिलते देखे हैं। चार लोग मिलते हैं। एक बेंच पर सटकर बैठते हैं। बातों के कमल खिलाते जाते हैं, खिलाते जाते हैं। वे स्वार्थी नहीं, परमार्थी होते हैं। उन्हें घर नहीं ले जाते। वहीं छोड़ जाते हैं। चर्चा सिर्फ वैक्सीन और गेहूं फ्री देने की होती है। धन्यवाद मोदी जी उसके लिए होता है। मुफ्त कमल उपलब्ध हैं, इसकी चर्चा गोदी चैनल तक नहीं करते। धन्यवाद मोदी करना तो बहुत दूर की बात है।
एक ने अभी यह खुशखबरी बांटी है कि प्रभु की कुछ ऐसी कृपा हुई है कि हमारे शहर में तो अब डामर की सड़क के ऐन बीचोंबीच कीचड़ ब्रांड खिलने लगा है। एक ने कहा- जी, हमारे घर में तो जगह है नहीं, मगर कीचड़ ब्रांड पर घनघोर श्रद्धा है तो घर के सामने कूड़ाघर में इसे उगा लेते हैं। हमने वहां लिखवा दिया है- मदनलाल जी, एमलए साहब के सौजन्य से। यह जानकार एमएलए साहब भी प्रसन्न हैं। उनके डर से कोई इन्हें छूता तक नहीं, सब आराम से बिक जाते हैं। कोरोना में इसका बड़ा सहारा रहा। कुछ भी कहो, मोदी में है कुछ जादू। कमल खिला कर ऊपरी आमदनी करवा दी, इसीलिए जो बिडेन ने कहा कि भाई आ जा। नया हूं। कुछ ज्ञान दे जा वरना साहब कौन किसकी खातिरदारी करता है आजकल। वैसे ही कोरोना चल रिया है।
हां बताना भूल गया। कमल की दो वैरायटियां और सामने आई हैं। एक काली है। बिल्कुल काली टोपी जैसी। दूसरी केसरिया है। केसरिया झंडे के माफिक। हेडगेवार वैरायटी और दस नंबरी वैरायटी भी बाजार में आने वाली हैं। इस सबके बावजूद लोग कहते हैं कि जो बात कीचड़ वैरायटी उर्फ ब्रांड में है, वह किसी में नहीं। उसी प्रकार जैसे कुछ विद्वान गैस वैरायटी पर चूल्हा वैरायटी से बने भोजन को प्रिफरेंस देते हैं। उनका मत है कि जो आनंद मां की छाती में धंसते धुएं और आंखों व नाक से बहते पानी को देखने में आता था, वह बीवी के बनाए खाने में आ कैसे सकता है! उसके फेफड़ों में धुंआ ही नहीं जाता, खाना क्या खाक बनेगा? आनंद आएगा कहां से?
यह तो हुई मुख्य रूप से कमलों की बात। कमलेतर वैरायटीज भी आजकल बहुत हैं। उनकी चर्चा करके मैं सबसे चर्चित, सबसे पापुलर नेशनल उर्फ कीचड़ वैरायटी उर्फ ब्रांड के कमलों की उपेक्षा का दोषी बनना नहीं चाहता। इतिहास मुझे नेशनल ब्रांड के कमलों की घोर उपेक्षा का दोषी पाए और अदालत मरणोपरांत मुझे मौत की सजा सुनाए, यह मैं दिल से कभी माफ नहीं कर पाऊंगा।
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