विष्णु नागर का व्यंग्यः CAA लाने वाले जाहिलों की जमात पर हंसो कि इनके पांव के नीचे धड़-धड़ धड़क रही है धरती
ये खुलकर हंसे थे हम पर, जब हमने सोचा था कि हम इन्हें इसलिए ला रहे हैं कि ये हम सबके ‘अच्छे दिन’ लाएंगे, ये ‘सबका साथ, सबका विकास’ करेंगे। ये हंसे थे हम पर कि हम कितने भोले, कितने मूरख निकले कि हमने इन पर इतना भरोसा कर लिया। तो आइए इनकी हंसी की हवा निकालें।
थोड़ा हंस भी लिया करें यारोंं हम। हंसी का खजाना हमारे सामने खुला पड़ा है और हम हैं कि खुलकर हंस नहीं रहे हैं! हंसो यार, हंसो। अरे मैं सड़े हास्य सीरियलों की बात नहीं कर रहा, फिल्मों के हिंसक मनोरंजन की बात नहीं कर रहा, फर्जी डिग्रीधारी की बात कर रहा हूं। वह रोज हास्यास्पदता का कोई न कोई नया कारनामा पेश करता है। वह रुक ही नहीं सकता, जान ही नहीं सकता अपनी हास्यास्पदता। अब वह जल्दी ही छात्रों की परीक्षा का टेंशन दूर करने के उपाय बताने टीवी पर आने वाला है, इस पर आइए हम हंसें। हम इसकी इस हरकत पर पहली बार नहीं हंसें, दूसरी बार भी नहीं हंसें, अब तो हंसकर अपनी गलती सुधार लें! अब भी नहीं हंसे तो फिर तो यह जीवन ही बेकार है, युवा होना भी व्यर्थ है। हंसो भाई हंसो, हंसो छात्र-छात्राओं आप खूब हंसो।
जो तुम्हें जेएनयू, जामिया, एएमयू और तमाम कालेजों-विश्वविद्यालयों में पढ़ने नहीं दे रहे, जो तुम्हें देशद्रोही कहने की हद तक गए, जो सड़कों पर, विश्वविद्यालयों की लाइब्रेरी तक में पुलिस घुसवाकर पिटवा रहे हैंं, फर्नीचर तुड़वा रहे हैं, तुम्हें बदनाम करने के लिए वाहन तुड़वा और जलवा रहे हैं, उनके खिलाफ लड़ना भी है, और हंसना भी है। तुम्हारी हंसी, उनकी गोलियों और गालियों पर भारी पड़ेगी। अरे पड़ेगी क्या, पड़ रही है। मालूम है कि तुम दुष्टों वाली हंसी नहीं हंस सकते और उसकी जरूरत भी नहीं। उन्हें उनकी यह हंसी मुबारक हो। हमारी अपनी हंसी ही उनके लिए जानलेवा है। हंस लो, क्योंकि ये हंसी पर भी प्रतिबंध लगा सकते हैं, इसलिए आज तो हंसो ही, कल ऐसा करे तो भी इन पर इतना हंसो कि इनकी हुलिया टाइट हो जाए।
अगर तुम्हें लगता है कि एक फर्जी डिग्रीधारी भी परीक्षा का टेंशन दूर करने की सलाह देने की हिम्मत कर सकता है, इस पर तुम्हें हंसी नहीं, रोना आ रहा है, तो रो लो, मगर यह भी इस तरह हो कि यह भी हंसने का एक रूप लगे। एक शैली है, एक कला है, ऐसा लगे। हंसो कि ये हम पर साढ़े पांच साल से हंसते आ रहे हैं। ये हंसे थे हम पर, जब इन्होंने नोटबंदी के दौरान हमें घंटों लाइन में लगाया था, हममें से कुछ की जानें, इनकी इस बेहूदगी के कारण गईं। इन्होंने हमारे भाइयों-बहनों का रोजगार छीना, बेरोजगारी फैलाई। कहा था कि काला पैसा खत्म कर देंगे मगर इन्हें तो दरअसल अपना और अपनों का काला पैसा सफेद करना था! वह कर लिया। निबट गया इनका काम।
अब ये नागरिकता कानून और नागरिकता रजिस्टर लाकर रावणी हंसी हंसने आए थे, पर इस बार इन्हें इनकी यह हंसी महंगी पड़ी। हंसो इन पर क्योंकि ये देश के जाहिलों की सबसे बड़ी जमात के सबसे बड़े सरगना हैं। हंसो इन पर कि इनके नीचे की जमीन अब दरक रही है। हंसों कि इन्होंने नफरत को अपना हथियार बनाया, संविधान की एक-एक ईंट खिसकाने की कोशिश की और हंसे हम पर कि हमने यह समझने की गलती की थी कि ये संविधान की परवाह करेंगे!
ये सोचते हैं कि ये जो हिंदुस्तान 1947 में नहीं बना पाए, उसे 2024 तक बना लेंगे। हंसो कि ये समझते हैं कि हिंदुस्तान की जनता मुर्दा हो चुकी है और ये जो चाहेंगे, हो जाएगा। हंसो इनके झूठ, इनके घमंड, इनके ओछेपन, इनके दोमुंहेपन, इनके अज्ञान, इनकी कूपमंडूकता, इनके खाकी हिंदुत्व पर। इन्होंने चड्डी छोड़कर पैंट पहनना शुरू किया मगर ये चड्डी थे, चड्डी ही रहे, पैंट नहीं बन पाए। लोग आज इन्हें चड्डीवाला नहीं, सीधे चड्डी कहते हैं।
ये वही हैं, जो हंसे थे, मासूम आसिफा के बलात्कार और फिर उसकी हत्या पर। ये हंसे थे, इन्होंने झांकी निकाली थी, उस हत्यारे की जिसने 48 वर्षीय बंगाली मुसलमान मजदूर की हत्या राजस्थान में कर दी थी। ये हंसे थे जब तबरेज अंसारी की मार-मारकर हत्या कर दी गई थी। ये हंसे थे, जब यू आर अनंतमूर्ति जैसे बड़े लेखक की मौत हुई थी, जो सच कहने का साहस रखते थे। ये हंसे थे उन सब लेखकों पर, जिन्होंने साहित्य अकादमी के पुरस्कार लौटाए थे। उन लेखकों को इन्होंने अवार्ड वापसी गैंग कहा था। और अब ये हमें सांप्रदायिक कह रहे हैं, जो फैज की नज्म 'हम देखेंगे' गा रहे थे और अब और ज्यादा गा रहे हैं।
हंसना इनका प्रतिदिन का खेल बन चुका था। ये खुलकर हंसे थे हम पर, जब हमने सोचा था कि हम इन्हें इसलिए ला रहे हैं कि ये हम सबके 'अच्छे दिन' लाएंगे, ये सबका साथ, सबका विकास करेंगे। ये हंसे थे हम पर कि हम कितने भोले, कितने मूरख निकले कि हमने इन पर इतनी जल्दी भरोसा कर लिया। तो आइए इनकी हंसी की हवा निकालें। हंसेंं इन पर और इनकी हवा निकालें- सूंऊंऊंऊं!!
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