किरन पटेल और संजय शेरपुरिया BJP राज के नटवरलाल, मोदी सरकार में ऊंची पहुंच ऐसे तो नहीं बनी होगी
किरन पटेल और संजय शेरपुरिया की ऊंची पहुंच ऐसे ही तो नहीं हो गई होगी। आखिर, कौन-कौन हैं इसके पीछे?
एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया कि बहुत दिन नहीं हुए जब वह अहमदाबाद के एक रेस्तरां में वेटर था। एक अन्य ने दावा किया कि वह गुजरात में सेक्योरिटी गार्ड था। एक ने सूचना दी कि वस्तुतः, वह प्रधानमंत्री के गृह राज्य में ड्राइवर के तौर पर काम करता था। लेकिन इस बात पर तीनों सहमत थे कि उसका भाग्य तब जागा जब जिसके यहां वह नौकरी पर था, उसकी बेटी उसके प्रेम में पड़ गई और उसने अपने परिवार को शादी पर सहमत कर लिया।
यह परी कथा-जैसा विवाह ठीक चल रहा था और दोनों राजी-खुशी रह रहे थे कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने पिछले महीने तब खेल खराब कर डाला जब उसने नई दिल्ली से गाजीपुर की यात्रा कर रहे संजय राय उर्फ संजय शेरपुरिया को गिरफ्तार कर लिया। एफआईआर में उस पर प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्रियों, बीजेपी और आरएसएस में अन्य प्रमुख लोगों के साथ अपनी निकटता का झूठा दावा करते हुए व्यापारियों और नौकरशाहों को चूना लगाने का आरोप लगाया गया है।
हालांकि अपने सोशल मीडिया पेजों पर उसने जो फोटो पोस्ट किए हैं, वे नकली नहीं लगते। एक में वह हवाई पट्टी पर प्रधानमंत्री का स्वागत करता दिख रहा है। दूसरे में वह प्रधानमंत्री और छह अन्य लोगों के साथ किसी गंभीर मुद्दे पर विचार करता दिख रहा है। तीसरे में वह प्रधानमंत्री के साथ मंच पर है। कई फोटो में वह संघ प्रमुख मोहन भागवत, कुछ में बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर के साथ है। अनुराग ठाकुर को उसने अपना 'परम मित्र' बताया है।
बताया जाता है कि राष्ट्रीय राजधानी में उसके नाम कोई बंगला नहीं है लेकिन उसने दिल्ली राइडिंग क्लब के बड़े से घर के बाहरी हिस्से को किराये पर ले रखा था जिसकी महंगी फर्निशिंग करा रहा था। दिल्ली जिमखाना क्लब की उसे सदस्यता हासिल हो गई थी जबकि कहा जाता है कि इसकी सदस्यता पाने के लिए 20 साल की प्रतीक्षा सूची है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वह बीजेपी का सदस्य भी नहीं है। आम तौर पर मुखर रहने वाली पार्टी और इसके आईटी सेल ने न तो शेरपुरिया पर कुछ बोलने की जहमत उठाई है, न इन फोटो को नकली बताया है, संभवतः इसलिए वे असली हैं। शेरपुरिया आरएसएस और बीजेपी के बड़े-बड़े लोगों तक पहुंच और उनकी निकटता हासिल करने में कामयाब रहा है। पीएमओ, आईबी और एनएसजी से भी प्रधानमंत्री के पास जाने की उच्चस्तरीय क्लीयरेंस दी जाती रही है।
यूपी पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स का दावा है कि गुप्तचर एजेंसियों ने उसके गोरखधंधे के बारे में उसे सतर्क किया। क्या उन एजेंसियों ने पीएमओ को सतर्क नहीं किया? यह संभव नहीं लगता कि एजेंसियों को इन बातों का पता नहीं था कि राय के वाइ-फाइ नेटवर्क का पासवर्ड 'पीएमओ' था; कि उसने नई दिल्ली में लोधी रोड पर एक बंगला किराये पर लिया है लेकिन इसका पता 'रेस कोर्स रोड' के तौर पर बताता है या कि उसने सोशल मीडिया पर कई फैन पेज बनाने के लिए पीआर एजेंसी की सेवाएं ली हैं। और न ही उसके सोशल मीडिया पेज एजेंसियों की निगाह से न गुजरे होंगे। तो, ऐसे जालसाज को किसने पीएमओ तक पहुंच बनाने दी?
यूपी पुलिस ने काला धन वैध बनाने के लिए 56 शेल कंपनियां चलाने का उस पर आरोप लगाया है लेकिन लगता है, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) उसके छल-कपट को अब तक समझ नहीं पाई है। जांच के क्रम में समय-समय पर जिस-तिस के बारे में सूचनाएं लीक करते रहने वाली ईडी ने इस मामले में होठ सिल रखे हैं।
उसकी गिरफ्तारी की वजह यह आरोप लगता है कि उसने उद्योगपति गौरव डालमिया से अपने एनजीओ को डोनेशन के नाम पर छह करोड़ रुपये की वसूली की। पुलिस सूत्रों का कहना है कि डालमिया की एक केन्द्रीय एजेंसी जांच कर रही है और शेरपुरिया ने बड़े नेताओं और नौकरशाहों तक अपनी पहुंच का उपयोग कर इस मामले को निबटा देने का प्रस्ताव दिया था। वैसे, डालमिया परिवार ट्रस्ट ने इस किस्म के आरोपों का सिर्फ यह कहकर खंडन किया है कि डोनेशन सीएसआर (कॉरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी) से संबंधित उसके खर्चों का हिस्सा है।
गुजरात में शेरपुरिया की कंपनियां 2015 से ही संकट में रही हैं और उन्हें ब्लैकलिस्ट भी किया गया। 2015 में बनी कांडला एनर्जी एंड केमिकल्स लिमिटेड (केईसीएल) ने जनवरी, 2013 में स्टेट बैंक के 171.85 करोड़ रुपये नहीं चुकाए। जुलाई, 2014 में इसे एनपीए के तौर पर वर्गीकृत किया गया और मामले को राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) को भेज दिया गया। स्टेट बैंक ने शेरपुरिया को विलफुल डिफॉल्टर, मतलब जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाला घोषित किया और 31 दिसंबर, 2022 को कंपनी की देनदारी 349.12 करोड़ बताई।
शेरपुरिया ने जब दिल्ली में अपना ठिकाना बनाया, उससे पहले गुजरात में उसकी कई अन्य कंपनियां घिसटने लगी थीं। तब भी, वह अपने घर पर धार्मिक आयोजनों और 'पूजा' वगैरह के लिए नेताओं और नौकरशाहों को आमंत्रित करता था। ऐसे मौकों पर वह जल संरक्षण और शिक्षा से संबंधित कथित तौर पर अपनी लिखी किताबें- 'आई एम माधोभाईः अ पाकिस्तानी हिन्दू', 'हिन्दू धर्म की धरोहर', 'करता बंगल' भेंट करता था। इनका विमोचन मोहन भागवत समेत प्रमुख नेताओं ने किया है। वह प्रमुख हिन्दी अखबारों में नियमित तौर पर 'लिखता था' और अपनी काफी महंगी किताबें नौकरशाहों, व्यवसायियों और मदद चाहने वालों को बेचता था।
फोर्ब्स इंडिया ने गाजीपुर में उसके एनजीओ के काम, खास तौर से महामारी के दूसरे दौर में गरीबों की अंत्येष्टि के लिए उनके परिजनों की मदद के लिए 'लकड़ी बैंक' बनाने पर शानदार खबर की थी। टीवी चैनलों ने भी उसके बारे में खूब बाजा बजाया था। भले ही स्टेट बैंक ने उसे विल्फुल डिफॉल्टर घोषित किया हुआ था, उसे मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय से सब्सिडी या दो करोड़ रुपये का अनुदान हासिल करने में दिक्कत नहीं हुई। गुजरात के पुरुषोत्तम रुपाला इसके मंत्री थे। शेरपुरिया ने प्रधानमंत्री के मन की बात सुनते हुए रुपाला के साथ अपनी फोटो भी पोस्ट की थी।
उसका भतीजा और निकट सहयोगी प्रदीप कुमार राय सीबीआई की 'अवांछनीय संपर्कों' वाली सूची में है लेकिन 2019 में उसने जो एनजीओ बनाया, उसके सलाहकार मंडल में कई आईएएस और आईपीएस अधिकारी हैं। इनमें गुजरात के पूर्व मुख्य सचिव एस.के. नंदा और पूर्व सीबीआई अधिकारी ए.के. शर्मा भी हैं। खबरें हैं कि नंदा एक अन्य जालसाज किरन पटेल को भी जानते थे और उन्होंने उसकी मदद भी की। शेरपुरिया की गिरफ्तारी से एक महीने पहले किरन पटेल को कश्मीर से गिरफ्तार किया गया। पटेल अहमदाबाद में एक ऑडिट फर्म चलाता है।
किरन पटेल अपने को पीएमओ में अतिरिक्त निदेशक बताता था। उसने जम्मू-कश्मीर में जाली पहचान पत्र दिखाकर ठहरने के लिए सरकारी व्यवस्था करा लेने के साथ जेड प्लस सुरक्षा हासिल कर ली थी। इस केन्द्रशासित इलाके में सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों का जाल बिछा हुआ है और तिस पर भी उसने यह कर लिया। इसके लिए वह बड़े-बड़े नामों का इस्तेमाल अकड़ के साथ करता था।
अधिकांश लोगों का कहना है कि बड़े पदों पर बैठे लोगों के हाथ उसकी पीठ पर न होते, तो वह ऐसा नहीं कर पाता। वह तीसरी बार घाटी गया था, तब ही उसे गिरफ्तार किया गया। उस वक्त तो उसके बारे में काफी सारी सूचनाएं इधर-उधर से मिलीं लेकिन जांच में अब तक क्या पाया गया है, इसका पता नहीं चल पाया है। अन्य मामलों की जांच के सिलसिले में उसे गुजरात ले जाया गया है।
लगता है, अपने अतिआत्मविश्वास के कारण वह संदेह की जाल में फंसा। उसने कई अफसरों को अपने पास बुलाया और जब वे नहीं आए, तो उसने उन्हें तबादले की धमकी दी। उसे गिरफ्तार तो 3 मार्च को किया गया लेकिन यह खबर तब सामने आई जब उसे कोर्ट में पेश किया गया और उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। पुलिस का कहना था कि उसके तीन सहयोगी रहस्यमय तरीके से गायब हो गए। उनमें से दो- अमित पांड्या और जय सीतापारा को बाद में गुजरात से गिरफ्तार किया गया। पांड्या के पिता गुजरात सीएमओ में काम करते थे और अब उन्होंने इस्तीफा दे दिया है।
शेरपुरिया की तरह पटेल का इतिहास भी संदेहास्पद है लेकिन पता नहीं क्यों, अफसरों की आंखें देर से खुलीं। गुजरात में उस पर धोखाधड़ी के तीन मामले लंबित हैं। इनमें से सबसे पुराना 2017 का है जब वह अपने को पीएमओ में पदस्थ होने का दावा करता पाया गया था। किसी अमेरिकी यूनिवर्सिटी से वह अपने को पीएचडी बताता रहा है। वह भाजपा मुख्यालय में कई बार देखा गया। जी-20 सम्मेलन की तैयारी में उसने एक समारोह का आयोजन भी किया।
ये दोनों ही मामले पहेली हैं और सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के कामकाज को चुनौती भी।
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