‘सूट-बूट वाले’ प्रधानमंत्री जी, कुछ तो बोलिए...

मोदी जी, पानी सिर से ऊपर चला गया है, समय आ गया है कि राफेल सौदे के जो दाग आप पर लगे हैं उन पर आप कुछ तो बोलें, नहीं तो इतिहास आपको एक ऐसे सूट-बूट वाले पीएम के तौर पर याद रखेगा जो आपको वोट देने वाले करोड़ों गरीब भारतीयों के बजाए अंबानी, अडानी, चोकसी जैसे उद्योगपतियों के हितों की चिंता करता था।

फोटो : सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

झूठ, झूठ ही होता है और ज्यादा दिन नहीं चलता। भले ही कोई कितनी कोशिश कर ले, अंत में सच की ही जीत होती है। राफेल सौदे में भी ऐसा ही हो रहा है। राफेल विमान सौदा अब एक ऐसे घोटाले के रूप में सामने आया है कि इसे छुपाने की केंद्र सरकार की सारी कोशिशें और सच पर झूठ की पर्तें एक एक कर उतरने लगी हैं। द्रुत गति से जो खुलासे लगातार हो रहे हैं, उसे छिपाना अब मोदी सरकार के बस से बाहर हो गया है।

अब जो खुलासे हुए हैं उससे यह साफ होने लगा है कि फ्रांस की दसॉल्ट एविएशन से वायुसेना के लिए खरीदे जा रहे 36 राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे में भ्रष्टाचार हुआ है। जैसा कि हर संदिग्ध सौदे में होता है, राफेल सौदे में भी भ्रष्टाचार के सबूत सामने आने लगे हैं।

सबसे पहले यह समझ लीजिए की इस सौदे की घोषणा के सिर्फ 12 दिन पहले अस्तित्व में आई अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को लड़ाकू विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं है। फिर भी इस कंपनी को राफेल बनाने वाली दसॉल्ट एविएशन का भारतीय साझीदार बनाकर विमान बनाने का ठेका दे दिया गया। अनिल अंबानी की कंपनी को जो ठेका दिया गया, पहले वह काम सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल को मिलना था, लेकिन ऐन मौके पर एचएएल का पत्ता काटकर 58,000 करोड़ का ठेका अंबानी समूह को दिया गया।

मजेदार बात यह है कि जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस में राफेल विमान खरीदे जाने के सौदे का ऐलान किया, उसी दिन यानी 10 अप्रैल 2015 को अनिल अंबानी भी पेरिस में ही थे। इस सौदे में भारत सरकार ने तमाम बदलाव किए और यूपीए सरकार के समय जिस सौदे की बात हो रही थी, उसे पूरी तरह बदल दिया। यूपीए शासन के सौदे की खास बात यह थी कि दसॉल्ट के भारतीय साझीदार के रूप में एचएएल को शामिल किया जाना था।

जैसे ही मोदी सरकार द्वारा किए गए सौदे का यह सच सामने आया, अनिल अंबानी ने नेशनल हेरल्ड समेत तमाम मीडिया घरानों और इस मुद्दे को उठाने वाले नेताओं पर हजारों करोड़ का मुकदमा कर दिया। खेल था कि डरा-धमकाकर सच को खामोश करा दिया जाए। यह उस अपराध बोध से पैदा भय के पहले लक्षण थे।

ओलांद के विस्फोट को बेअसर नहीं कर सकती खामोशी

अनिल अंबानी की कंपनी को ठेका दिए जाने का सच सामने आने के बाद पैदा विवाद अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वां ओलांद ने अपने बयान से बम फोड़ दिया। फ्रांस के एक न्यूज पोर्टल को दिए इंटरव्यू में ओलांद ने कहा कि दसॉल्ट के भारतीय साझीदार के रूप में अनिल अंबानी की कंपनी का नाम भारत सरकार ने सुझाया था और इसे मानने के अलावा फ्रांस सरकार या दसॉल्ट के पास कोई विकल्प ही नहीं था।

ओलांद के इस बयान ने रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और दूसरे केंद्रीय मंत्रियों के उस झूठ का पर्दाफाश कर दिया जिसमें कहा जा रहा था कि 58,000 करोड़ के राफेल सौदे में दसॉल्ट के भारतीय ऑफसेट पार्टनर के रूप में अनिल अंबानी की कंपनी का नाम चुने जाने में भारत सरकार की कोई भूमिका नहीं थी।

ओलांद के बयान के बाद सरकार की तरफ से राफेल सौदे में बचाव करने में उतरी मंत्रियों की सेना से अरुण जेटली मैदान में आए। यहां तक कि मोदी सरकार ने फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन तक को सरकार का बचान करने के लिए मजबूर किया।

राफेल सौदे को लेकर इस सारे विवाद और धूम-धड़ाके के बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुप्पी साध रखी है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री से सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर वे इस सौदे पर मंडराते शक के बादलों को खत्म करने के लिए क्यों चुप हैं। वे पूछ रहे हैं कि आखिर पीएम बयान देकर पूरे मामले का सच क्यों सामने नहीं लाते? आखिर ऐसा क्या है जिसे छिपाने के लिए पीएम खामोश हैं?

दरअसल पीएम मोदी की दिक्कत यह है कि उन्हें बड़े-बड़े तमाशे करना पसंद हैं। 2014 के चुनाव प्रचार से लेकर विदेशों में उनकी जनसभाओं तक, उन्हें भव्य आयोजन करना पसंद हैं। इससे पहले तो कभी किसी ने ऐसा किया भी नहीं है। इन सारे भव्य आयोजनों के लिए बेशुमार पैसा भी चाहिए होता है, क्योंकि प्रचार-प्रसार, और वह भी छवि चमकाने के लिए किया गया तामझाम कोई सस्ता मामला तो है नहीं।

सरकार उनकी छवि चमकाने के लिए जितना पैसा खर्च करती है उससे तो स्वच्छ भारत और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं का खर्च चल सकता है। लेकिन, लोगों को चुंधिया देने वाले चुनावी प्रचार के लिए जो मोटा पैसा चाहिए, वह तो राफेल जैसे सौदों से ही आ सकता है। और, इसके लिए जरूरी है कि पीएम मोदी सूट-बूट वालों के साथ उठे-बैठें, बदले में उन्हें फायदा पहुंचाएं, तभी तो कांग्रेस अध्यक्ष उनकी सरकार को ‘सूट-बूट वाली सरकार’ कहते हैं।

मोदी जी, पानी सिर से ऊपर चला गया है, समय आ गया है कि राफेल सौदे के जो दाग आप पर लगे हैं उन्हें साफ किया जाए, नहीं तो इतिहास आपको एक ऐसे सूट-बूट वाले पीएम के तौर पर याद रखेगा जो आपको वोट देने वाले करोड़ों गरीब भारतीयों के बजाए अंबानी, अडानी, चोकसी जैसे उद्योगपतियों के हितों की चिंता करता था। बीते साढ़े चार वर्षों में आम लोग पहले ही ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

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