मानवाधिकार हनन और नरसंहार जैसे कृत्य पूरी दुनिया के लिए “न्यू नार्मल”, विश्व स्तर पर विलुप्त होने के कगार पर मानवाधिकार

75 वर्षों बाद दुनिया इस कदर बदल चुकी है कि मानवाधिकार हनन और नरसंहार जैसे कृत्य सत्ता की मुख्य धारा में शामिल हो चुके हैं और पूरी दुनिया के लिए “न्यू नार्मल” हैं।

प्रतीकात्मक फोटो
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महेन्द्र पांडे

अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ रोड़े आइलैंड के तहत ग्लोबल राइट्स प्रोजेक्ट के अंतर्गत वैश्विक मानवाधिकार के आकलन पर वार्षिक रिपोर्ट पिछले 40 वर्षों से प्रकाशित की जा रही है, और इस श्रृंखला के अंतर्गत इस वर्ष की रिपोर्ट हाल में ही प्रकाशित की गयी है। इसके अनुसार पूरी दुनिया में मानवाधिकार खतरे में है और इसका हनन उन देशों में भी व्यापक है जहां प्रजातंत्र है। इस शताब्दी के दौरान मानवाधिकार पर सत्ता का प्रहार पहले से अधिक घातक हो गया है। यह रिपोर्ट महत्वपूर्ण है क्योंकि दिसम्बर 2023 में, संयुक्त राष्ट्र के यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स के 75 वर्ष पूरे हो जायेंगें। यही नहीं, रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल-हमास युद्ध, ईरान और म्यांमार में नरसंहार जैसी परिस्थितियों के बीच नरसंहार की रोकथाम और सजा से संबंधित 1948 के समझौते का भी 75वां वर्ष है।

पेरिस में दिसम्बर 1948 में आयोजित संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन में बड़े तामझाम से 24 घंटे के भीतर ही मानवाधिकार घोषणा और नरसंहार रोकथाम समझौता सर्वसम्मति से पारित हो गया था। मानवाधिकार घोषणा दुनिया के हरेक व्यक्ति को बुनियादी अधिकार सुनिश्चित करता है, जबकि नरसंहार रोकथाम समझौता समाज को सुरक्षित रखता है – पर 75 वर्षों बाद दुनिया इस कदर बदल चुकी है कि मानवाधिकार हनन और नरसंहार जैसे कृत्य सत्ता की मुख्य धारा में शामिल हो चुके हैं और पूरी दुनिया के लिए “न्यू नार्मल” हैं।

ग्लोबल राइट्स प्रोजेक्ट के अनुसार पिछले वर्ष, यानी 2022 में दुनिया की कुल आबादी में से महज 19 प्रतिशत देशों में लगभग हरेक क्षेत्र में मानवाधिकार सुरक्षित है, 9 प्रतिशत आबादी में मानवाधिकार का कुछ हनन हुआ है जबकि शेष 72 प्रतिशत आबादी ऐसी सत्ता के अधीन है जहां मानवाधिकार का व्यापक हनन किया जा रहा है। इस रिपोर्ट में हरेक देश को मानवाधिकार के 25 पहलुओं पर 0 से 100 तक अंक दिए जाते हैं– 100 अंक का मतलब बेहतरीन मानवाधिकार और 0 का मतलब कोई मानवाधिकार नहीं है।

 इस रिपोर्ट के अनुसार प्रजातंत्र वाले देश में निरंकुश सत्ता की तुलना में औसतन 24-25 अंक अधिक रहते हैं। पर, इसके अपवाद भी हैं – भारत जीवंत प्रजातंत्र माना जाता है पर इस पैमाने पर इसके अंक महज 32 हैं, यह सभी प्रजातांत्रिक देशों में दूसरा सबसे कम अंक है, दूसरी तरफ राजशाही वाले मोनाको में मानवाधिकार इस हद तक प्रबल है कि उसे 90 अंक दिए गए हैं। दुनिया को प्रजातंत्र का पाठ पढ़ाने वाले अमेरिका को भी इस पैमाने पर महज 64 अंक दिए गए हैं।


मानवाधिकार के सन्दर्भ में सबसे आगे के देश क्रम से है– फ़िनलैंड, ऑस्ट्रेलिया, एस्तोनिया, स्वीडन, ऑस्ट्रिया, आइसलैंड, मोनाको और सैन मरीनो। मानवाधिकार हनन के सन्दर्भ में देशों का क्रम है– ईरान, सीरिया, यमन, वेनेज़ुएला, ईजिप्ट, इराक, साउथ सूडान, बुरुंडी, म्यांमार और सऊदी अरब। इस पैमाने पर फ़िनलैंड को 98 अंक दिए गए हैं, जबकि ईरान एकमात्र देश है जिसे 0 अंक दिया गया है।

ओशिनिया क्षेत्र में पहले स्थान पर 92 अंकों के साथ ऑस्ट्रेलिया है, जबकि 48 अंकों के साथ अंतिम स्थान पर पापुआ न्यू गिनी है। इस क्षेत्र में न्यूज़ीलैण्ड को 86 अंक मिले हैं। दक्षिण, मध्य और पूर्वी अफ्रीका क्षेत्र में 68 अंकों के साथ सबसे आगे नामीबिया और सबसे पीछे बुरुंडी है जिसे 16 अंक दिए गए हैं। दक्षिण अफ्रीका को 50 अंक मिले हैं। उत्तर और पश्चिम अफ्रीकी क्षेत्र में 84 अंकों के साथ काबोवेर्डे पहले स्थान पर और 14 अंकों के साथ इजिप्ट अंतिम स्थान पर है।

एशिया और मध्य-पूर्व क्षेत्र मानवाधिकार हनन के सन्दर्भ में सबसे आगे है, यही दुनिया का अकेला क्षेत्र है जहां अंतिम स्थान पर काबिज ईरान को 0 अंक मिले हैं, जबकि दो अन्य देशों – सीरियन अरब रिपब्लिक और यमन को 10 से भी कम अंक मिले हैं। इस क्षेत्र में सबसे आगे 78 अंको के साथ ताइवान है। एशिया और मध्य-पूर्व के 48 देशों में भारत 26वें स्थान पर है। इस सूची में भारत से आगे 16वें स्थान पर नेपाल और 19वें स्थान पर श्रीलंका है। भारत के बाद के देशों में पाकिस्तान 35वें स्थान पर, अफ़ग़ानिस्तान 39वें, चीन 40वें, बांग्लादेश 42वें और म्यांमार 44वें स्थान पर है। सबसे आगे ताइवान के बाद क्रम से भूटान, जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर हैं।

यूरोप में सबसे आगे 98 अंकों के साथ फ़िनलैंड और अंतिम स्थान पर 24 अंकों के साथ रूस है। यूनाइटेड किंगडम को इस पैमाने पर 86 अंक, जर्मनी को 60, इटली को 74 और युद्ध की विभीषिका झेल रहे यूक्रेन को 36 अंक मिले हैं। अमेरिकी क्षेत्र में 88 अंकों के साथ कनाडा पहले स्थान पर और 12 अंकों के साथ वेनेज़ुएला अंतिम स्थान पर है। इस पैमाने पर अमेरिका को 64, ब्राज़ील को 48 और मेक्सिको को 36 अंक दिए गए हैं।


इस रिपोर्ट के अनुसार अपेक्षाकृत छोटे देशों में सत्ता मानवाधिकार का बड़े देशों की अपेक्षा अधिक सम्मान करती है। अपेक्षाकृत छोटे देशों को बड़े देशों की तुलना में इस पैमाने पर औसतन 30 से 35 अंक अधिक मिले हैं। हाल में अनेक अध्ययनों में बताया गया है कि दुनिया की युवा आबादी प्रजातंत्र की तुलना में निरंकुश सत्ता या फिर सेना का अधिक समर्थन करने लगी है। इस रिपोर्ट में भी बताया गया है कि अपेक्षाकृत युवा आबादी वाले देशों को मानवाधिकार के पैमाने पर औसतन 4 से 12 अंक कम मिले हैं। अमीर देशों में मानवाधिकार गरीब देशों की अपेक्षा अधिक सुरक्षित रहता है, अमीर देशों को गरीब देशों की अपेक्षा औसतन 34 से 40 अंक अधिक मिले हैं। ओशिनिया और यूरोप में मानवाधिकार की स्थिति सबसे अच्छी है, जबकि एशिया और मध्य-पूर्व इस संदर्भ में सबसे खतरनाक क्षेत्र है। अमेरिका और अफ्रीका में मानवाधिकार की स्थिति लगभग एक जैसी है।

 एमनेस्टी इन्टरनेशनल की एक रिपोर्ट में भारत के बारे में बताया गया है कि बीजेपी सरकार लगातार अल्पसंख्यकों को कुचलने का कम कर रही है और इसके समर्थक बिना किसी भय के अल्पसंख्यकों पर हमले करते हैं। बीजेपी की धार्मिक और छद्म राष्ट्रीयता की भावना अब न्याय व्यवस्था और नॅशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन जैसे संवैधानिक संस्थाओं में भी स्पष्ट होने लगी है। न्याय व्यवस्था भारी-भरकम बुलडोज़र के नीचे दब गयी है और अल्पसंख्यकों पर बुलडोज़र चलानी के समर्थन में जनता और मीडिया खड़ी रहती है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और स्वतंत्र पत्रकारों की आवाज को पुलिस और प्रशासन कुचल रहे हैं।

देश में एक पुलिस राज स्थापित हो गया है, और वह कभी भी किसी की भी हत्या करने के लिए स्वतंत्र है। वर्ष 2022 के पहले 9 महीनों के दौरान ही पुलिस कस्टडी में 147 मौतें, न्यायिक हिरासत में 1882 मौतें और पुलिस द्वारा तथाकथित एनकाउंटर में 119 मौतें दर्ज की गयी हैं। जम्मू कश्मीर में अभिव्यक्ति की आजादी और आंदोलनों के अधिकार को कुचलने के लिए क्रूरता का पैमाना बढ़ गया है। लम्बे समय से कश्मीरी पंडितों के साथ खड़े होने का दावा करने वाले नेता और राजनैतिक दल इन्हीं पंडितों की हत्या के बाद इन्हें धमकाने लगे हैं। अगस्त 2019 के बाद से अब तक 35 से अधिक पत्रकारों पर हिंसा की गयी है या उन्हें पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया गया है और अनेक पत्रकार जेलों में बंद हैं। देश में मानवाधिकार हनन करने वाली भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मानवाधिकार हनन करने वाली सरकारों के साथ एकजुटता दिखाई है। संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार, बांग्लादेश, सीरिया, इजराइल और रूस में मानवाधिकार हनन के लिए सरकारों की भर्त्सना के सभी मामलों में भारत ने मतदान में भाग नहीं लिया।

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