आकार पटेल का लेख: क्या सुशांत के आगे बेरोजगारी-बदहाली-कोरोना को भूल जाएंगे वोटर और कम नहीं होगी मोदी की लोकप्रियता !
क्या हम वोट भी उसी तरह देते हैं जिस तरह किसी फेसबुक पोस्ट को लाइक या फॉरवर्ड करते हैं। क्या वोट देने की हमारी प्राथमिकता या राजनीतिक दल को समर्थन काम के आधार पर नहीं बल्कि छवि के आधार पर होता है। अगर ऐसा है भी तो भी कम से कम सबके लिए तो यह सत्य नहीं हो सकता।
सीबीआई ने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की गुत्थी सुलझाने के लिए पांच टीमें बनाई हैं। मुझे नहीं समझ आता कि आखिर सीबीआई इस मामले की जांच कर रही है और इसे लेकर लोगों की दिलचस्पी इतनी क्यों है। कुछ लोगों का कहना है कि ऐसा सिर्फ बिहार चुनाव को लेकर राजनीतिक मकसद से किया जा रहा है। अगर ऐसा है भी, तो भी मुझे नहीं समझ आता कि यह क्या है। बिहार देश की चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य के समय से ही राजनीति का प्राचीन केंद्र रहा है।
तो क्या बिहारी इतने नासमझ हैं कि वह इस तरह के आधार पर किसी भी दल को वोट दे देंगे? शायद ऐसा ही हो, और अगर ऐसा है तो मुझे बड़ी निराशा होगी। बिहार दुनिया के सबसे गरीब इलाकों में से एक है। दशकों से इस राज्य पर दो ही पार्टियों की सत्ता रही है। ऐसे में वोटर बॉलीवुड की किसी घटना से प्रेरित होकर वोट करेंगे, देखने वाली बात होगी। वैसे ऐसा होगा तो यह अपने आप में अजीब सी घटना होगी। वैसे सुशांत सिंह की कहानी को उछाले जाने के दो कारण सामने आए हैं। पहला तो यह कि इस बहाने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के बेटे को निशाना बनाया जा रहा है। दूसरा यह कि इसके जरिए बॉलीवुड के मुस्लिम अभिनेताओं पर निशाना साधा जा रहा है। मुझे यही कारण तर्कसंगत भी लगते हैं, क्योंकि मौजूदा सरकार मुस्लिमों को लेकर अलग नजरिया रखती है और उन पर हमला करने के लिए किसी भी झूठ का सहारा ले सकती है।
लेकिन वापस वोटर के रुझान की तरफ आएं, तो ध्यान उस लेख की तरफ जाता है जिसे मेरे दोस्त शेखर गुप्ता ने लिखा है और कहा है कि नरेंद्र मोदी 2024 में भी सत्ता में वापस आएंगे बशर्ते वह खुद अपनी छवि को नुकसान न पहुंचा लें। शेखर गुप्ता ने तर्क दिया है कि वोटर को हुए नुकसान का कोई अर्थ ही नहीं है क्योंकि उसे न तो गर्त मे जाती अर्थव्यवस्था, रिकॉर्डतोड़ बेरोजगारी, चीन द्वारा हमारी जमीन पर कब्जा और कोरोना रोक पाने में सरकार की नाकामी से कोई फर्क नहीं पड़ता।
लेकिन शेखर गुप्ता ने यह नहीं बताया कि आखिर वह इस नतीजे पर पहुंच कैसे, लेकिन इतना कहा है कि एक सर्वे में सामने आया है कि मोदी की लोकप्रियता फिर से शिखर पर है। फिर से. मुझे नहीं पता कि ऐसा है, लेकिन ऐसा है तो बड़ी दिलचस्प बात है। हमारी विकास दर जनवरी 2018 से ही लगातार 9 तिमाहियों तक नीचे गिरती रही है, और यह सब तो मोदी सरकार के अपने आंकड़े ही बताते हैं। बेरोजगारी की दर तो इतनी है जितनी भारत में कभी रिकॉर्ड नहीं की गई, यह आंकड़ा भी सरकार का ही है। नहीं पता कि मोदी की इस बात पर किसने भरोसा किया था जब उन्होंने कहा था कि चीन ने कोई घुसपैठ की ही नहीं है। उम्मीद करें कि मोदी को खुद तो कम से कम इस बात पर भरोसा हो।
हम अभी भी चीन के साथ बात कर रहे हैं ताकि उसे हमारी जमीन छोड़ने के लिए मना सकें, और हमारे फौजी जनरल कई दौर की बातचीत इस बारे में कर चुके हैं। यह बैठकें तो इसीलिए हो रही है क्योंकि मोदी ने जो कुछ कहा था वह सत्य नहीं था, क्योंकि अगर वह हमारी जमीन पर नहीं हैं तो फिर बात किसके लिए हो रही है।
कोरोना के आंकड़े भी स्पष्ट हैं। आज भारत दुनिया में तीसरा सर्वाधिक मरीजों वाला देश बन चुका है। रोज सामने आ वाले मरीजों की संख्या के मामले में हम नंबर एक है, और यही हाल रहा तो शायद हम दुनिया के सर्वाधिक संक्रमित देश बन जाएंगे। कम से कम यह तो ऐसा रिकॉर्ड नहीं है जिसे सरकार देखना चाहेगी और जिसका प्रधानमंत्री बहुत लोकप्रिय हो। किसी और देश में तो इसे राजनीतिक त्रासदी माना जाता। यह ऐसा रिकॉर्ड है जिसका असर हर वोटर, वो किसी भी राजनीतिक दल का क्यों न हो, उस पर असर पड़ता है।
सवाल है कि क्या हम वोट भी उसी तरह देते हैं जिस तरह किसी फेसबुक पोस्ट को लाइक या ट्विटर को फॉरवर्ड करते हैं। क्या वोट देने की हमारी प्राथमिकता या राजनीतिक दल को समर्थन काम के आधार पर नहीं बल्कि छवि के आधार पर होता है। नहीं ऐसा नहीं है, अगर ऐसा है भी तो भी कम से कम सबके लिए तो यह सत्य नहीं हो सकता। मेरे लिए तो बिल्कुल नहीं।
लेकिन कितने लोग हैं जो सामान्यता सोचते हैं। अगर ऐसा होता तो कम से कम किसी बॉलीवुड अभिनेता की मौत पर इतना सर्कस तो नहीं होता। अपनी पूरी जिंदगी में मैंने इतनी बदतर आर्थिक स्थिति नहीं देखी, इतने बड़े पैमाने पर बेरोजगारी नहीं देखी, किसी महामारी का सामना नहीं किया और न ही किसी दुश्मन मुल्क ने हमारे घर में घुसने की जुर्रत की। न ही यह देखा कि किसी बॉलीवुड घटना पर इतना शोर मचा हो।
एक नागरिक, एक व्यक्ति और एक वोटर के तौर पर क्या हम ऐसे ही हैं? उम्मीद करें कि ऐसा न हो। मुझे नहीं लगता कि हमारी आज की युवा पीढ़ी या फिर आने वाली पीढ़ी स्वास्थ्य, सुरक्षा, रोजगार और अपने भविष्य को लेकर इतनी बेफिक्र होगी और उसे बॉलीवुड में इतनी दिलचस्पी होगी। अभी मेरे पास इसका जवाब नहीं है, लेकिन जवाब दूर भी नहीं है।
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