अभिव्यक्ति की गुलामी में उलझता देश, फ्रीडम टू राइट इंडेक्स में भी भारत की स्थिति खराब
भारत शुरु से इस इंडेक्स में पहले दस देशों में शामिल रहता था, पर इजराइल और रूस के युद्ध के कारण वहां अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने में तेजी आ गयी है, इसलिए भारत दसवें स्थान से आगे चला गया है।
प्रधानमंत्री मोदी के सपनों का न्यू इंडिया या तथाकथित विकसित भारत, कोई कल्पना नहीं बल्कि हकीकत है। अब यह एक पुलिस राज के साथ ही उन्मादी गिरोहों और हिंसक कट्टरवादी भगवा भीड़ द्वारा नियंत्रित देश बन गया है। देश के ऐसे हालात में मेनस्ट्रीम मीडिया की पूरी भागीदारी है और न्यायपालिका समेत सभी संवैधानिक संस्थाएं बस केवल नाम के लिए रह गईं हैं। यहां पुलिस, मीडिया और प्रशासन, हत्यारों और बलात्कारियों के साथ खड़े रहते हैं और इस मिलीभगत के विरुद्ध आवाज उठाने वाले मुजरिम करार दिए जाते हैं। जाहिर है, ऐसे देश में अभिव्यक्ति की आजादी तो कब की ख़त्म की जा चुकी है, और इससे सम्बंधित हरेक वैश्विक इंडेक्स में तथाकथित न्यू इंडिया और विश्वगुरु फिसड्डी ही साबित होता है।
लेखकों, बुद्धिजीवियों और कलाकारों की अभिव्यक्ति की आवाज पर नजर रखने वाली संस्था, पेन अमेरिका (PEN America), पिछले पांच वर्षों से लिखने की आजादी इंडेक्स, यानी फ्रीडम टू राइट इंडेक्स (Freedom to Write Index), प्रकाशित करती है और इस इंडेक्स के हरेक संस्करण में इस संदर्भ में सबसे खराब देशों में भारत शामिल रहता है। इस इंडेक्स का आधार हरेक देश में अपने काम या अपने लेखन के लिए विशुद्ध राजनैतिक कारणों से गिरफ्तार किये गए लेखकों, बुद्धिजीवियों या कलाकारों की संख्या होती है। इस इंडेक्स का नया संस्करण अप्रैल 2024 में प्रकाशित किया गया है, जिसका आधार वर्ष 2023 के आंकड़े हैं, और हमारा देश इस इंडेक्स में 13वें स्थान पर है।
वर्ष 2023 में दुनिया के 33 देशों में कुल 339 लेखक/बुद्धिजीवी जेल में बंद थे। यह संख्या पिछले 5 वर्षों में सर्वाधिक है। वर्ष 2019 के पहले संस्करण में यह संख्या 238 थी। यह संख्या वर्ष 2022 की तुलना में 9 प्रतिशत अधिक है। पहले स्थान पर चीन है, जहां कैद किये गए लेखकों की संख्या पहली बार 100 से भी अधिक, 107 तक पहुँच गयी है। दूसरे स्थान पर 49 ऐसे कैदियों के साथ ईरान है और तीसरे स्थान पर 19 कैदियों के साथ सऊदी अरब है। चौथे स्थान पर विएतनाम (19), पांचवें पर इजराइल (17), छठे पर बेलारूस (16), सातवें पर रूस (16), आठवें पर तुर्किये (14), नौवें स्थान पर म्यांमार (12) और दसवें स्थान पर एरिट्रिया (7) है। ग्यारहवें स्थान पर 6 लेखकों को कैद कर इजिप्ट और क्यूबा हैं। इसके बाद 5 लेखकों को जेल में डालकर संयुक्त तौर पर भारत, उज्बेकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और मोरक्को का स्थान है|
वर्ष 2023 में जेल में बंद रहे भारतीय लेखकों के नाम हैं – अरुण फेरिरा, प्रबीर पुरकायस्थ, फहद शह, वेर्नों गोंजाल्वेस और हनी बाबू। अरुण फेरिरा साहित्यिक लेखक और गीतकार हैं और अगस्त 2018 से कैद हैं। न्यूज़क्लिक के संस्थापक और सम्पादक प्रबीर पुरकायस्थ अक्टूबर 2023 से आतंकवाद-निरोधक क़ानून के तहत जेल में बंद हैं। कश्मीर में सम्पादक फहद शाह राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के नाम पर अक्टूबर 2022 से हिसासत में थे और नवम्बर 2023 में जमानत पर रिहा हुए। भीमा-कोरेगाँव मामले में लेखक वरुण गोंजाल्वेस और हैनीबाबू को जेल में रखा गया है।
जाहिर है, ये सभी मानवाधिकार कार्यकर्ता और लेखक किसी आपराधिक कारणों से नहीं बल्कि केवल सत्ता के विरोध के ही जेल में ठूंसे गए हैं। भारत शुरु से इस इंडेक्स में पहले दस देशों में शामिल रहता था, पर इजराइल और रूस के युद्ध के कारण वहां अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने में तेजी आ गयी है, इसलिए भारत दसवें स्थान से आगे चला गया है।
कैद किये गए लेखकों की पूरी संख्या में 15 प्रतिशत, यानि 51 महिलायें भी हैं। राजनैतिक कारणों से लेखकों को जेल में डालने की घटनाएं साल-दर-साल बढ़ती जा रही हैं। वर्ष 2023 में 339, वर्ष 2021 के लिए यह संख्या 277 है, वर्ष 2020 में संख्या 273 थी और वर्ष 2019 में यह संख्या 238 थी। सबसे अधिक महिलायें, 15, ईरान में कैद हैं, इसके बाद 9 महिला लेखिकाओं को कैद कर चीन दूसरे स्थान पर है। तीसरे स्थान पर इजराइल है, जहां 6 महिला लेखिकाएं कैद हैं।
इस इंडेक्स के अनुसार दुनियाभर में बंद 339 लेखकों में से सबसे अधिक 180 ऑनलाइन कमेंटेटर, 115 साहित्यिक लेखक हैं, 108 पत्रकार, 80 एक्टिविस्ट, 68 कवि हैं, 63 बुद्धिजीवी हैं, 38 कलाकार, 31 गायक या गीतकार हैं, 14 अनुवादक हैं, 13 प्रकाशक हैं, 12 सम्पादक और 5 रंगकर्मी हैं| हरेक वर्ष कवियों की सख्या बढ़ती जा रही है, जाहिर है फिर से कवितायें विद्रोह की आवाज बन रही हैं और ऐसा म्यांमार और चीन के कवियों ने स्पष्ट तौर पर दिखाया है। वर्ष 2023 में ईरान में दुनिया के किसी भी देश की तुलना में लेखकों, कवियों और कलाकारों को जेल की सलाखों के पीछे डाला गया।
हमारे देश में तमाम न्यायालय, देश का राजा और मंत्री-संतरी समय-समय पर अभिव्यक्ति की आजादी की बात करते हैं। इसके बाद कुछ दिनों तक देश के मीडिया का कंकाल इन वक्तव्यों को प्रमुखता से प्रचारित करता है और साथ ही बताता है कि यह आजादी तो हमारे संविधान ने दी है। इसी देश की हकीकत यह है कि रामरहीम जैसा एक घोषित और सजायाफ्ता बलात्कारी और पत्रकार का हत्यारा सरेआम सरकारी जेड श्रेणी की सुरक्षा में घूमता है, सत्ता के लिए चुनाव प्रचार करता है और बलात्कार और ह्त्या की रिपोर्टिंग करने जा रहे पत्रकार सिद्दीक कप्पन, जो हाथरस पहुँच भी नहीं पाए थे, लम्बे समय तक यूएपीए के तहत बंद रहे।
लखीमपुर खीरी में किसानों के साथ ही रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकार पर सरेआम गाड़ी चढाने वाला आजाद घूम रहा है और जिसके नाम पर वह गाड़ी है, वह प्रधानमंत्री का विश्वासपात्र मंत्री है और प्रधानमंत्री उसी राज्य को असंख्य बार राज्य की सुरक्षा व्यवस्था देश में सबसे बेहतर है का तमगा दे चुके हैं|
दरअसल अब देश में न्यायपालिका, चुनाव आयोग, सभी जांच एजेंसियों और दूसरे संवैधानिक विभागों पर ताला लगा देना चाहिए। आज के दौर में इनकी जरूरत ख़त्म हो चुकी है। इनके बंद होने के बाद कम से कम जनता की उम्मीद तो ख़त्म होगी। आज पूंजीपतियों का कंकाल मीडिया ही सत्ताभक्त पुलिस के साथ देश चला रहे हैं। उन्हें जो अपराधी लगता है वही अपराधी होता है।सत्ता के बंद लिफाफों के आधार पर न्यायालय के आदेश आते हैं, सत्ता की मरजी पर चुनाव आयोग को भड़काऊ भाषण नजर आता है और सत्ता के इशारे पर जांच एजेंसियां काम करती हैं।
सत्ता के गुनाहों को प्रवचन की तरह प्रसार करने का काम मीडिया कर रही है, और मोर्फेड वीडियो से सबूत भी गढ़ लेती है। सत्ता की नजर में पूरा देश एक तमाशा है – कभी पूरी सत्ता देश छोड़कर चुनाव का खेल खेलती है, कभी हिजाब का खेल खेलती है, कभी मंगलसूत्र का खेल खेलती है, कभी कृषि कानूनों का खेल खेलती है और कभी कश्मीर-कश्मीर करती है| इन सबमें मेनस्ट्रीम मीडिया सत्ता के खेल में डबल्स पार्टनर की भूमिका बखूबी निभाती है|
मेनस्ट्रीम मीडिया की विश्वसनीयता कम हो रही है और वास्तविक और जनता से जुड़े समाचार तो केवल स्वतंत्र पत्रकार ही कर रहे हैं। किसी लोकतांत्रिक देश की इससे बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है कि जनता मेनस्ट्रीम मीडिया को, न्यायालयों को और सभी संवैधानिक संस्थाओं को अविश्वसनीय करार दे। मीडिया में यह अविश्वास तो किसानों ने और सीएए आन्दोलनकारियों ने खुलेआम दिखाया था, पर सत्ता की गोद में बैठने की आदत से लाचार मीडिया लगातार लचर होती जा रही है|
लेखकों के लिए सबसे खतरनाक एशिया-प्रशांत क्षेत्र है, जहां 152 लेखक कैद में हैं। इसके बाद का दूसरा खतरनाक क्षेत्र मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका है, जहां 105 लेखक कैद में हैं| तीसरे स्थान पर 61 लेखकों को कैद कर यूरोप और मध्य एशिया का क्षेत्र है| इस इंडेक्स के अनुसार भले ही 33 देशों में 339 लेखकों को कैद किया गया हो, पर दुनियाभर में निष्पक्ष लेखकों पर खतरे बढ़ रहे हैं| दुनिया के 88 देशों में 923 लेखक खतरे में हैं – उन्हें धमकियां दी जा रही हैं, प्रताड़ित किया जा रहा है या फिर शहर या देश से बाहर किया जा रहा है| पिछले वर्ष 51 लेखकों की ह्त्या की गयी, 15 लापता हैं और 88 को देश छोड़ना पड़ा|
सन्दर्भ: Freedom to Write Index 2023, PEN America-pen.org/report/freedom-to-write-index-2023/
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