चाहे कितना ढिंढोरा पीट ले बीजेपी, सच तो यह है कि दुनिया में खराब हुई है भारत की छवि
फ्रीडम हाउस ने कहा है कि ‘वैसे तो भारत में बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार और हिंदू राष्ट्रवादी दल भारतीय जनता पार्टी ने भेदभावपूर्ण नीतियों को अपना रखा है और मुसलमानों के खिलाफ हिंसा बढ़ गई है।’
न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सायास भारत की लोकतांत्रिक विरासत की बात की। दावा किया कि वह ऐसे देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं जो ‘लोकतंत्र की मां’ है। मोदी ने निजी उदाहरण देते हुए कहा कि उनके पिता की चाय की दुकान थी और जब वह बच्चे थे तो चाय बेचने के काम में पिता की मदद किया करते थे और यह भारतीय लोकतंत्र की मजबूती ही है कि वह जीवन में इतनी ऊंचाई तक पहुंच सके कि चौथी बार संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक को संबोधित कर रहे हैं।
खैर, अब प्रधानमंत्री मोदी के साथ राष्ट्रपति जो बिडेन की बैठक पर नजर डालें। इस बैठक में भारत में लोकतंत्र की मौजूदा स्थिति की बात उठी। अमेरिका को लगता है कि भारत में सियासी अराजकता सिर उठा रही है। भारतीय मूल की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने मोदी से भेंट के दौरान यह कहने से परहेज नहीं किया कि लोकतांत्रिक सिद्धांतों, संस्थाओं और मानवाधिकारों की रक्षा करना कितना जरूरी है।
अमेरिकी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति से मुलाकात के बाद मोदी क्वाडिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग (क्वाड) की बैठक में शामिल हुए। इसकी मेजबानी राष्ट्रपति बिडेन ने की थी। इस बैठक में जो बिडन और प्रधानमंत्री मोदी के अलावा जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा और ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन ने भाग लिया। क्वाड के चारों सदस्य देशों में लोकतंत्र है। लेकिन हाल ही में वाशिंगटन स्थित फ्रीडम हाउस ने भारत का दर्जा ‘फ्री’ से घटाकर ‘पार्टली फ्री’ कर दिया है। यह संस्था दुनिया भर में आजादी के घटते-बढ़ते स्तर पर अमेरिका और बाहरी देशों में नीतिगत चर्चा के लिए अनुसंधान और विश्लेषण उपलब्ध कराती है।
फ्रीडम हाउस ने भारत का दर्जा घटाने की वजह भी बताईः ‘भारत में हिंदू राष्ट्रवादी सरकार और इसके सहयोगियों ने विभिन्न स्तरों पर एक पैटर्न के तहत हिंसा और भेदभावपूर्ण नीतियों को बढ़ावा दिया है जिससे मुसलमान प्रभावित हुए और इसके अलावा मीडिया, शिक्षाविदों, सिविल सोसाइटी और प्रदर्शनकारियों की ओर से असहमति के स्वर को दबाने की नीति अपनाई जा रही है।’ यह भी कहा गया कि ‘वैसे तो भारत में बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार और हिंदू राष्ट्रवादी दल भारतीय जनता पार्टी ने भेदभावपूर्ण नीतियों को अपना रखा है और मुसलमानों के खिलाफ हिंसा बढ़ गई है।’ बावजूद इसके कि संविधान अभिव्यक्ति और धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, मोदी सरकार के कार्यकाल में पत्रकारों, गैर-सरकारी संगठनों और सरकार के आलोचकों को प्रताड़ित करने के मामलों में खासा इजाफा हुआ है।
अमेरिकी विदेश विभाग की भी भारत में हो रही घटनाओं पर नजर है। अभी अप्रैल में अमेरिकी कांग्रेस को सौंपी मानवाधिकार पर 2020 की रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी सरकार के दौरान पुलिस हिरासत में मौत, मुठभेड़ में लोगों की हत्या, मनमाने तरीके से हिरासत में लेने और गिरफ्तार करने, अभिव्यक्ति पर पहरा, हिंसा, पत्रकारों के खिलाफ मुकदमा, गैर-सरकारी संगठनों पर नाहक अंकुश लगाने वाले नियम-कायदे, सरकार के सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार, महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में जांच और जिम्मेदारी तय करने में कोताही, अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव जैसे लोकतंत्र को कमजोर करने के मामले कहीं बढ़ गए हैं।
यहां तक कि जब मोदी कमला हैरिस से मिल रहे थे, एक अमेरिकी सांसद- मिशिगन के डेमोक्रेट कांग्रेसी एंडी लेविन ने यह कहते हुए चिंता व्यक्त की कि ‘मुझे उम्मीद है कि उनसे इस बारे में ईमानदार बातचीत होगी कि मोदी सरकार कैसे सुनिश्चित कर सकती है कि भारत का लोकतंत्र अपने सभी लोगों के लिए एक लोकतंत्र ही बना रहे।’ यहां तक कि अमेरिकी कांग्रेस में शक्तिशाली इंडिया कॉकस जिसमें कॉकस के सह-अध्यक्ष, कांग्रेसी ब्रैड शेरमेन और स्टीव चाबोट शामिल हैं, ने भारत सरकार से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि लोकतंत्र के मानकों को बनाए रखा जाए और असहमति की अनुमति दी जाए।
ये ऐसे मुद्दे हैं जिनकी वजह से दुनिया में भारत की छवि खराब हुई है। बेशक मोदी के लौटने पर उनका भव्य स्वागत करते हुए भाजपा कह रही हो कि मोदी के नेतृत्व में भारत की वैश्विक स्थिति मजबूत हुई है लेकिन कांग्रेस नेताओं समेत तमाम लोग मोदी के संबोधन के दौरान संयुक्त राष्ट्र सभागार में खाली पड़ी सीटों के हवाले से इसे कमजोर हुआ देखते हैं।
क्वाड समिट से ठीक पहले मोदी ने ट्वीट किया: ‘भारत और अमेरिका सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्र हैं। हमारे साझा मूल्य हैं और हमारा सहयोग भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है।’
हालांकि कई लोगों का मानना है कि एक अलोकतांत्रिक चीन के खिलाफ मोर्चा खोल रखे क्वाड जैसे गठबंधन में बिडेन के लिए लोकतंत्र से दूर हो रहे भारत को बनाए रखना मुश्किल होता जाएगा। वे यह भी मानते हैं कि अगर भारत मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में चीन के सीमा पार से हुए आक्रमण से निपटने में असमर्थ है, तो समुद्री सीमाओं को सुरक्षित रखने में भी उसके सक्षम होने पर यकीन नहीं किया जा सकता।
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