‘मुस्लिम-मुस्लिम’ के राजनीतिक चक्रव्यूह में फंसा भारतीय मुसलमान, बहुसंख्यक हिंदू आबादी का नुकसान भी कम नहीं
क्या देश की एक चौथाई से भी कम जनसंख्या बड़ी बहुसंख्यक आबादी को नुकसान पहुंचा सकती है? वो भी भारतीय मुसलमान, जो कभी बाबरी मस्जिद विध्वंस तो कभी गुजरात नरसंहार और कभी मॉब लिंचिंग जैसे हमले झेल रहा है।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, तीन तलाक, उर्दू भाषा, मोहम्मद अली जिन्ना, पाकिस्तान, आतंकवाद। यह एक कुचक्र है, जिसके बीच भारतीय मुसलमान ऐसा फंसा है कि शायद इसे कभी तोड़ ही नहीं पाए। पिछले दो-तीन महीनों से सब ठीक ठाक चल रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक का मामला तय ही कर दिया था। मुसलमान मीडिया और राजनीतिक के फोकस से बाहर था। लेकिन भारत की राजनीति मुस्लिम परिधि से बाहर कैसे रह सकती है।
कुछ नहीं मिला तो कुछ हिंदूवादी तत्वों को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के यूनियन हॉल में सन 1938 से टंगी मोहम्मद अली जिन्ना की एक तस्वीर याद आ गयी। कुछ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों ने प्रदर्शन कर उन तत्वों के विरोध में कार्रवाई की मांग की। लेकिन उनको जवाब लाठियों से मिला। छात्रों ने फिर हड़ताल की। बस फिर क्या था। वहीं जिन्ना, वहीं पाकिस्तान, वहीं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे प्रतीकों के चक्रव्यूह में भारतीय मुसलमान फिर फंस गया।
यह अग्नि परीक्षा कब तक? और किस बात की अग्नि परीक्षा? कौन मुसलमान है जो इस देश में आज जिन्ना भक्त है? किस भारतीय मुस्लिम के मन में आंतकग्रस्त पाकिस्तान का मोह बचा है? आज 10 प्रतिशत मुस्लिम नौजवान भी उर्दू नहीं लिख-पढ़ सकता है। लेकिन राजनीतिक जगत में लगातार मची मुस्लिम ध्वनी से तो यही प्रतीत होता है कि इस देश की लगभग 17 करोड़ मुस्लिम जनसंख्या 100 करोड़ से अधिक हिंदू जंनसख्या के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
क्या यह संभव है कि किसी भी देश की एक चौथाई से भी कम जनसंख्या वाला समूह उस देश की बड़ी बहुसंख्यक आबादी को नुकसान पहुंचा सके? और वो भी भारतीय मुसलमान, जो कभी बाबरी मस्जिद विध्वंस तो कभी गुजरात नरसंहार और कभी मॉब लिंचिंग जैसे हमलों से जूझ रहा है।
लेकिन देश में एक ऐसा वातावरण है जैसे देश की सारी समस्याओं की जड़ केवल और केवल मुसलमान ही है। ऐसा क्यों है?
राजनीति में कामयाबी का सबसे प्राचीन और सटीक नुस्खा शायद सदैव ‘बांटो और राज करो’ ही रहा है। अंग्रेजों के संबंध में ये बात हम सुनते-सुनते थक गए, लेकिन इस रणनीति से आज भी मुक्ति प्राप्त नहीं हुई। आज जब कर्नाटक चुनाव के बीच भारतीय जनता पार्टी को कठिनाईयों का सामना करना पड़ा तो एकाएक कुछ तत्वों को सन 1938 से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में टंगी जिन्ना की फोटो याद आ गयी। आखिर यह क्यों हुआ? कारण सीधा है। वह यह है कि बीजेपी को कर्नाटक में फिर से ‘बांटो और राज करो’ की रणनीति याद आती दिखाई दे रही है। एक हिंदू वोट बैंक उस समय तक बन ही नहीं सकता, जब तक उसको मुस्लिम शत्रु का खतरा दिखाया नहीं जाए।
अब यह काम कैसे हो। देखो, जिस जिन्ना ने देश तोड़ा, उसकी तस्वीर अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में आज भी टंगी है! देखो, यह मुसलमान तीन तलाक के सहारे आए दिन शादी कर देश में अपनी जनसंख्या बढ़ा रहे हैं! यह राम मंदिर नहीं बनने देते हैं! वे हिंदू समाज और देश के लिए खतरा हैं। बस इन्हीं बिंदुओं के इर्द-गिर्द देश की राजनीति लगभग तीन दशकों से घिरी है। और इस चक्रव्यूह में मुसलमान तो फंसा ही है, लेकिन नुकसान देश की बहुसंख्यक हिंदू जनसंख्या का भी कम नहीं है। नोटबंदी से कमर अधिकतर हिंदू व्यापारी की टूटी। लेकिन मुस्लिम मुद्दा उठाकर चुनाव योगी और मोदी जीते।
आखिर मुस्लिम डर दिखाकर कब तक इस देश में राजनीतिक घटनाक्रम चलता रहेगा? शायद इसका जवाब हिंदू समाज को अब ढूंढने का समय आ गया है।
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