दीवार पे लिखी इबारत साफ है प्रधानमंत्री जी, लोगों का दबा हुआ गुस्सा अब फूटने लगा है...
आज रात, जब सारी दुनिया सो रही है, भारत अपनी बेटियों की अस्मत बचाने के लिए उम्मीद के दीपक हाथ में लिए नई सुबह का इंतजार कर रहा है। यह एक ऐसा क्षण है जो आधुनिक भारत के इतिहास में फिरआया है।
‘आज रात, जब सारी दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता की नयी सुबह के साथ उठेगा। एक ऐसा क्षण जो इतिहास में बहुत ही कम आता है, जब हम पुराने को छोड़ नए की तरफ जाते हैं, जब एक युग का अंत होता है, और जब वर्षों से शोषित एक देश की आत्मा, अपनी बात कह सकती है…’ ये शब्द देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के हैं जो उन्होंने 14-15 अगस्त की रात संसद भवन में अपने मशहूर भाषण ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ में कहे थे। इतिहासकारों और उन सभी भारतीयों से सबसे जो इस भाषण से भावनात्मक तौर पर जुड़े हैं, उनसे माफी के साथ मैं इसमें कुछ संशोधन करना चाहता हूं। यह संशोधन समय की मांग है और देश के मौजूदा हालात से प्रेरित है।
‘आज रात, जब पूरा हिंदुस्तान सो रहा है, भारत अपनी बेटियों की अस्मत बचाने के लिए उम्मीद के दीपक हाथ में लिए नई सुबह का इंतजार कर रहा है। यह एक ऐसा क्षण है जो आधुनिक भारत के इतिहास में फिर आया है।’
आज देश त्राहिमाम कर रहा है। देश की बेटियां खतरे में हैं, सिसक रही हैं इंसाफ के लिए, उनकी अस्मत खतरे में हैं, किसान मर रहा है अपनी मेहनत के मुआवजे के लिए, छात्र सड़कों पर हैं अपनी प्रतिभा और योग्य क्षमताओं पर पड़ रही डैकती के लिए, मजदूर बेहाल है काम छिन जाने के कारण, शिक्षित युवा आंदोलित और क्रोधित है बेरोजगारी के कारण, देश का दम घुट रहा है अभिव्यक्ति की आजादी पर पहरे के कारण, प्रेस कुचला हुआ है दमन और धमकी के कारण, सफाई कर्मचारी भूखे पेट है पगार न बढ़ने के कारण, लेकिन सरकार, चौकीदार, इस सबके लिए जिम्मेदार सो रहे हैं।
पंडित नेहरू ने अपने भाषण में कहा था, ‘आज नियत समय आ गया है, एक ऐसा दिन जिसे नियति ने तय किया था – और एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद, भारत जागृत और स्वतंत्र खड़ा है। कुछ हद तक अभी भी हमारा भूतकाल हमसे चिपका हुआ है, और हम अक्सर जो वचन लेते रहे हैं उसे निभाने से पहले बहुत कुछ करना है। पर फिर भी निर्णायक बिंदु अतीत हो चुका है, और हमारे लिए एक नया इतिहास आरम्भ हो चुका है, एक ऐसा इतिहास जिसे हम गढ़ेंगे और जिसके बारे में और लोग लिखेंगे।’
दिल्ली के इंडिया गेट पर स्वत: स्फूर्त जनसैलाब ने साबित कर दिया है कि देश जागृत हो चुका है। लंबे समय से जारी असंतोष को उम्मीद की एक किरण नजर आई है, लोगों को एक मार्ग मिला है, एक उम्मीद जगी है। मोदी सरकार के लिए दीवार पे लिखी इबारत साफ है, ‘गद्दी छोड़ो कि जनता आती है।’
ऐसा कैसे हो सकता है कि सरकार में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग जिन मुद्दों पर गला फाड़-फाड़कर चिल्लाते थे, आज खामोश हैं। कठुआ की आठ साल की मासूम हो, उन्नाव की बेटी हो, बिहार में एक छोटी बच्ची हो....इन पर हुए जुल्मों को देखकर कैसे कोई चुप रह सकता है, इनके मुजरिमों को बचाने के लिए कैसे कोई सामने खड़ा हो सकता है। कैसे जघन्य अपराध के मुजरिमों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने से कोई रोक सकता है?
जिस संसद को आपकी सरकार ने नहीं चलने दिया, उसके लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहराकर उपवास का ढोंग कर रहे मोदी जी के कानों तक उसी संसद के सामने उमड़े जनसैलाब से उठी आवाज़ें जरूर पहुंची होंगी। मोदी जी, इन आवाज़ों को सुनिए। वीभत्स और नृशंस अपराधों पर आपकी चुप्पी देश सहन नहीं कर रहा, उसने अब अपनी आवाज बुलंद करना शुरु कर दी है।
आप यह भी जान लीजिए कि अहंकार न तो कभी किसी का रहा है और न रहेगा। आप जिन बापू का नाम ले-लेकर भाषण देते हैं, वे जवाबदेही के कितने बड़े पक्षधर थे यह शायद आपको नहीं पता है, इसीलिए आप चुप हैं। जिम्मेदारी और जवाबदेही आपकी है प्रधानमंत्री जी, आपको बोलना होगा।
आज की रात उमड़ा जनसैलाब बेटियों की अस्मत बचाने के साथ ही उन लोगों से देश को बचाने के लिए भी सामने आया है, जिन्होंने देश की अस्मिता, उसके लोगों के सद्भाव और आजादी को नष्ट कर दिया है।
नेहरू जी ने कहा था, ‘हमें कठिन परिश्रम करना होगा। हम में से कोई भी तब तक चैन से नहीं बैठ सकता है, जब तक हम अपने वचन को पूरी तरह निभा नहीं देते, जब तक हम भारत के सभी लोगों को उस गंतव्य तक नहीं पहुंचा देते जहाँ भाग्य उन्हें पहुँचाना चाहता है।’ यह गंतव्य है किसानों की खुशहाली, शिक्षित युवा के लिए रोजगार, कामगारों के लिए काम, कारोबारी के लिए कारोबार, महिलाओं सम्मान, छात्रों के साथ न्याय, बेरोजगारी से मुक्ति, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
पिछली सरकारों ने देश को कानून बनाकर कुछ अधिकार दिए थे। सूचना का अधिकार, लेकिन मोदी जी, आपकी सरकार तो सबकुछ गोपनीय रखने में विश्वास रखती है। भोजन का अधिकार, लेकिन आपके शासन में तो लोग भूख से मर जाते हैं। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण योजना से रोजगार का अधिकार, लेकिन बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है। संविधान ने हमें अभिव्यक्ति की आजादी दी है, आपके शासन में तो अभिव्यक्ति के अर्थ राष्ट्रद्रोह हो गए हैं।
जनसंदेश को समझिए, असंतोष की आवाज़ों को गौर से सुनिए, बेरोजगारों, किसानों, छात्रों, मजदूरों-कामगारों के जीवन को सरल बनाइए, महिलाओं का सम्मान पुनर्स्थापित कीजिए...लेकिन आप तो चुप हैं। और मौन धारण करने वाले से किसी समाधान की आशा व्यर्थ है। देश को भी आपका मौन समझ आ गया है, उसने आपसे उम्मीदें छोड़ दी हैं।
कभी मौका मिले तो मशहूर शायर कैफी आज़मी की ये पंक्तियां सुन लीजिएगा प्रधानमंत्री जी,
आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है,
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आएगी,
सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो,
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी ।
आज की रात भी बहुत गर्म हवा थी, इस हवा में गुस्सा है, दुख है, अफसोस है आपको चुनने का। और एक खिड़की भी खुली है, क्योंकि लोग उठ खड़े हुए हैं।
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