भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए बुरी खबर हैं इमरान खान

अब तक सामने आई बातों पर भरोसा करें तो क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान सेना के पिट्ठु हैं जो पाकिस्तान चुनाव के दौरान पिछले दरवाजे से लोकतंत्र को कब्जे में लेने के सेना के खेल का मोहरा बने हुए थे। अगर वे पाकिस्तान के अगले प्रधानमंत्री बनते हैं तो उन्हें सेना की कठपुतली बनने में खुशी होगी।

फोटो: सोशल मीडिया 
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ज़फ़र आग़ा

लोकतंत्र के जारी रहने को लेकर पाकिस्तान में हमेशा से एक समस्या रही है। सतही कारणों को आधार बनाकर सेना चुनी हुई सरकारों को अक्सर सत्ता से बेदखल कर देती हैं। लोकप्रिय जननेताओं की जान से मार देने का भी पाकिस्तान में एक इतिहास रहा है और वहां की सैन्य सत्ता लोकतंत्र को दूर रखने के लिए कुख्यात है। लेकिन सत्ता से चिपकी रहने वाली पाकिस्तान की सेना के लिए भी अब चुनी हुई सरकार को बेदखल करना मुश्किल हो रहा है। जनरल परवेज मुशर्रफ आखिरी सेनाध्यक्ष थे जिन्होंने 1999 में नवाज शरीफ की सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया था।

आसिफ जरदारी और बाद में नवाज शरीफ के नेतृत्व वाली एक के बाद एक लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई दो सरकारों ने पहली दफा अपना कार्यकाल पूरा किया है और लगातार 10 साल सत्ता में रहे। इसने साफ तौर पर पाकिस्तान की सेना को व्याकुल कर दिया जिसे लंबे समय तक बैरकों में रहना पड़ा। सुरक्षा और विदेशी मामलों पर अपनी पकड़ बनाए रखने में सेना भरोसा रखती है। अगर कोई भी चुनी हुई सरकार इस नियम का उल्लंघन करती है तो उसका न सिर्फ विरोध किया जाता है, बल्कि उसे बुरी तरह से दंडित भी किया जाता है।

नवाज शरीफ को भारत के साथ अपने रिश्ते सुधारने की पहल के लिए दो बार इसकी कीमत चुकानी पड़ी। उन्हें पहली बार शांति मिशन पर लाहौर पहुंचे भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की यात्रा के बाद मुशर्रफ ने सत्ता से बेदखल कर दिया था। शरीफ ने दूसरी बार बड़ी कीमत तब चुकाई जब उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति दोस्ताना रवैया दिखाया। वे फिलहाल भ्रष्टाचार के आरोपों में अपनी बेटी के साथ जेल की सजा काट रहे हैं।

पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) इस बार खुद को जीवित रखने के लिए चुनावी मैदान में खड़ा हुआ, जिसका सारा श्रेय सेना की योजना पर न्यायपालिका द्वारा किए गए सत्ता-पलट को जाता है। लेकिन पाकिस्तान की जनता अब सीधे सैन्य शासन को स्वीकार करने के लिए कतई तैयार नहीं है। यह पाकिस्तान की राजनीति में एक नाटकीय बदलाव है जो सेना को बहुत ज्यादा अशांत कर रहा है। सेना ने इस स्थिति से निपटने के लिए एक नया रास्ता निकाला है। वह लोकतंत्र का दिखावा करने के लिए पिट्ठु राजनेताओं के नेतृत्व वाली एक चुनी हुई सरकार के जरिये सत्ता की चाभी अपने पास रखना चाहती है।

अब तक सामने आई बातों पर भरोसा करें तो क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान सेना के पिट्ठु हैं जो पाकिस्तान चुनाव के दौरान पिछले दरवाजे से लोकतंत्र को कब्जे में लेने के सेना के खेल का मोहरा बने हुए थे। इमरान के पास महत्वाकांक्षाएं ज्यादा हैं और राजनीतिक विवेक कम। अगर वे पाकिस्तान के अगले प्रधानमंत्री बनते हैं तो उन्हें सेना की कठपुतली बनने में खुशी होगी। इसका मतलब यह होगा कि वहां एक आंख में धूल झोंकने वाला लोकतंत्र होगा और पाकिस्तान की जनता को सत्ता-सरंचना से बाहर रखा जाएगा। इसके जरिये पाकिस्तानी सेना की भारत-विरोधी नीति जारी रहेगी और कश्मीर में उनका टांग अड़ाना भी चलता रहेगा।

इसका एक बड़ा परिणाम यह होगा कि पाकिस्तान के भीतर और भारत में काम कर रहे सेना-समर्थित आतंकी समूहों का उत्साह बढ़ेगा। इस पृष्ठभूमि को देखने पर ऐसा ही लगता है कि इमरान खान भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए बुरी खबर हैं।

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