विष्णु नागर का व्यंग्य: संघ के कार्यक्रम में अगर प्रणब मुखर्जी के बाद बोलते मोहन भागवत तो यह होता उनका भाषण!

सरसंघचालक के भाषण का ‘लिखित’ रूप जो पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की इस जिद के कारण बेचारे नहीं दे सके कि अंतिम वक्ता वह खुद होंगे, सरसंघचालक नहीं।

फोटो: सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

भूतपूर्व महामहिम जी,

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजधानी नागपुर में, उसके राष्ट्रपति भवन में आप पधारे, इसलिए  आपका स्वागत-अभिनंदन। आपको याद होगा कि 2010 में आप कांग्रेस की सरकार में वित्त मंत्री थे तो आपने हमारे संगठन को आतंकवादी संगठन कहा था,आज उसी के मुख्यालय को आपने अपनी चरणधूलि से पवित्र किया है, इससे अधिक प्रसन्नता और सौभाग्य की बात हमारे लिए और क्या हो सकती है? इससे 2019 में कुछ मदद मिली तो हम आपका आभार मन ही मन मानेंगे। आपने उसी संगठन के पितामह  डॉ हेडगेवारजी को 'भारतमाता का सपूत' बताकर हमें गदगद ही कर दिया। आपसे इतनी अधिक उदारता की आशा तो हममें से किसी को नहीं थी। हृदय तो हमारा होता नहीं, फिर भी चूंकि हृदय से धन्यवाद देने की रस्म चली आ रही है, उसे निभाते हुए मैं आपको बार-बार हृदय नामक अपने काल्पनिक अंग से धन्यवाद देता हूं। और आशा ही नहीं विश्वास प्रकट करता हूं कि मोदीजी इसके लिए आपको अवश्य उचित ढंग से उपकृत करेंगे।

मैं इसलिए भी आपका धन्यवाद करता हूं कि आपने अपनी मातृसंस्था कांग्रेस तो कांग्रेस, अपनी बेटी के विरोध की भी परवाह नहीं की और यहां आए, यह आपके बहुत बड़ा संत और परमत्यागी होने का अकाट्य प्रमाण है। ऐसे महापुरुष इस धराधाम पर  प्रकट होते रहें, यह हमारी मनोकामना है।और हमारा सारा भाषण धन्यवाद ज्ञापन में ही खर्च न हो जाए, इसलिए इस सिलसिले में अंतिम बात यह कहना चाहूंगा कि आपने जो कहा, अंग्रेजी में कहा, यह तो बहुत ही अच्छा किया क्योंकि हमारे स्वयंसेवक तो लट्ठ चलाते हैं, दंगे करते-करवाते हैं, उन्हें इसके लिए आंग्ल भाषा ज्ञान की क्या जरूरत, इसलिए आपने कहा तो बहुत कुछ मगर उनके भेजे में कुछ घुसा नहीं होगा, यह  हमारे लिए अतीव प्रसन्नता का विषय है। वैसे तो भूतपूर्व महामहिम जी, हम तीन साल तक जो प्रशिक्षण देते हैं, उसके जरिए दिमाग में इतना गोबर भर देते हैं कि वहां किसी चीज के लिए कोई जगह नहीं बचती, इसलिए आपने अगर हिंदी में भी भाषण दिया होता तो वह भी उतना ही बेअसर होता, जितना कि आपका अंग्रेजी में दिया गया यह भाषण है।

रही बात उन बड़ी-बड़ी बातों की, जो आपने कीं, अच्छा किया। हम आप जैसों को सादर बुलाते ही इसलिए हैं कि आप इधर लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, सहिष्णुता, विविधता जैसी बातें मजे से करके खुश होते रहें कि आपने हमारे गढ़ में आकर अपनी बात कही। उधर हम भी दुनिया को दिखा सकें कि अच्छी तरह आंख-कान खोलकर देख-सुन लो लोगों कि हम इनको बुलाते हैं, सुनने का नाटक करते हैं पर इनका रत्तीभर भी असर ग्रहण नहीं करते। हमने तो 1947 में गांधीजी को भी बुलाया था। वे भी बोल गए वह सब, जो वह सोचते थे। हमने उनसे इतना अधिक असर लिया कि वह 1948 में दुनिया से चले ही गए। और नाथूराम गोडसे को इसके लिए शुक्रिया कहने का समय भी अब आ चुका है, यह लोकतंत्र में हमारी बढ़ती आस्था का प्रमाण है।

खैर, आप फैसला करो कि ज्यादा जानने वाला ज्यादा  बुद्धिमान होता है या हम लट्ठबाज! हम जानते थे भूतपूर्व महामहिम जी कि आप यहां आए हैं तो यहां भी वही कहेंगे, जो आप कहते आए हैं और आपको कोई भ्रम रहा भी होगा तो अब टूट जाएगा कि हम अब भी वही करेंगे, जो करते आए हैं।आप भी, आप रहेंगे तो हम भी हम रहेंगे। आपके संघ भवन से बाहर निकलते ही हमारा काम शुरू हो जाएगा। आप यहां बिना काली टोपी पहने बैठे हैं न, खुश होंगे कि इतनी काली टोपियों के बीच आप अकेले बिना टोपीवाले हैं मगर थोड़ी देर बाद सोशल मीडिया पर हमारे स्वयंसेवक का कमाल देखिएगा। वे फोटोशाप से आपके सिर पर काली टोपी पहना देंगे। आपने हमारे केसरिया को हमारी तरह ध्वज प्रणाम नहीं किया मगर हमारी टीम यह भी दिखा देगी कि आपने भी यही किया है। जो-जो आपने नहीं कहा, वह भी हम सोशल मीडिया पर आपके नाम से डलवा देंगे। यह हमारी कल्चर है, यह हमारी संस्कृति है, यह हमारा हिंदुत्व है और एक आप हैं कि हमारे लिए सबकुछ छोड़कर चले आए। आपको पब्लिसिटी का क्षणिक लाभ मिला, हमें जो लाभ मिला, वह परमानेंट है। फिर से आपके आने का धन्यवाद। अगली बार भी आप जैसा कोई मिल जाए तो फिर हमारी बल्ले-बल्ले है।और हां जय हिंद के साथ आपने वंदे मातरम कहकर जो वंदनीय कार्य किया है, उसके लिए अतिरिक्त अभिनंदन।

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