खरी-खरी: बालाकोट पर सरकार से जायज़ सवाल पूछना देशद्रोह कैसे हो गया?
बीजेपी के पैरों के नीचे से जमीन खिसक चुकी थी। राफेल मुद्दे पर बदनामी, युवाओं की बेरोजगारी, किसान आक्रोश जैसे गंभीर मुद्दों से घिरी बीजेपी को 2019 लोकसभा चुनाव हाथ से निकलता दिख रहा था। ऐसे में पाकिस्तान ने पुलवामा आतंकी धमाका कर बेजान बीजेपी को एक मौका दे दिया है।
भला कौन है जो इस देश में सेना पर उंगली उठाए। भारतीय सेना के त्याग और बलिदान से ही आज भारत की एकता और अखंडता सलामत है। सन् 1962 में चीनी हमलों से लेकर अभी दो सप्ताह पहले पुलवामा आतंकी हमले तक भारत के लिए न जाने कितने नाजुक मौके आए। सन् 1947 में कश्मीर पर पहले आक्रमण से लेकर कारगिल तक भारतीय सीमा बदलने के पाकिस्तान ने न जाने कितने प्रयास कर डाले। फिर 1980 के दशक से अब तक पाकिस्तानी सेना ने भारत के खिलाफ आतंक की रणनीति बनाकर भारत को हर स्तर पर घायल करने का जो षड्यंत्र रचा वह आज भी जारी है। कभी कश्मीर में धमाके, तो कभी संसद भवन में घुसकर आतंक का नंगा नाच, कभी मुंबई में निहत्थों पर आक्रमण, तो कभी पुलवामा जैसे घातक धमाके, पाकिस्तान ने तो हद ही खत्म कर दी। परंतु वह देश के खिलाफ संपूर्णआक्रमण हो अथवा आतंकी षड्यंत्र, भारत ने आजादी के समय 1947 में जो अपनी सीमाएं तय की थीं वह सीमाएं आज भी वैसे ही अटल हैं। भारत के शत्रु नाकाम थे और भविष्य में भी कभी वह सफल नहीं हो सकते हैं। इसका श्रेय हमारी सेना और हमारे नेतृत्व को जाता है कि जिसके बलिदान एवं दूर-दृष्टि ने भारत को हर संकटसे मुक्ति दिलाई।
इसका एक कारण यह भी है कि स्वतंत्रता के पश्चात भारत की एकता और अखंडता के मुद्दे पर कभी किसी राजनीतिक दल ने किसी प्रकार की राजनीति नहीं की। देश की अखंडता हर राजनीतिक दल का धर्म है, जिसका पालन हर दल ने अब तक किया। इसका एक उदाहरण यह है कि जब 1971 में पाकिस्तान ने अपने पूर्वी भाग से भारत के खिलाफ मोर्चा खोला, तो संपूर्ण विपक्ष ने उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को संपूर्ण समर्थन दिया। केवल इतना ही नहीं जब इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए, तो उस समय इंदिरा गांधी को विपक्ष के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘दुर्गा’ की उपाधि देकर संबोधित किया।
परंतु, पुलवामा एवं बालाकोट के प्रकरण के पश्चात् अब यह महसूस हो रहा है कि आज के भारत में देश की पुरानी परंपराएं टूट रही हैं। जब पुलवामा में हमारे सुरक्षा दल पर हमला हुआ और उसके पश्चात् गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने ‘ऑल पार्टी मीट’ बुलाई, तो कांग्रेस समेत संपूर्ण विपक्ष ने मोदी सरकार को पाकिस्तान से निपटने की खुली छूट दी। फिर बालाकोट पर हमारी वायुसेना के सफल प्रहार के पश्चात कांग्रेस के नेतृत्व में 21 विपक्षी दलों ने भारतीय सेना को नमन किया।
परंतु, उसके तुरंत पश्चात बीजेपी ने एक ऐसा माहौल उत्पन्न किया जैसे इस देश में देशभक्ति पर केवल बीजेपी का ठेका है और बाकी दल मानो पाकिस्तान के एजेंट हैं। यह बात खुलकर तो नहीं अपितु टीवी डिबेट और बीजेपी के नेताओं के भाषणों से जाहिर थी। जानबूझकर एक ऐसा वातावरण उत्पन्न किया जा रहा है कि जिसमें पुलवामा अथवा बालाकोट के संबंध में किसी प्रकार का प्रश्न करना देशद्रोह कहा जाने लगा। इस इक्कीसवीं शताब्दी में सेटेलाइट इमेजरी के दौर में दुनिया भर के चप्पे-चप्पे पर होने वाली हर घटना की ‘सेटेलाइट इमेज’ से संपूर्ण सूचना होती है। अभी लगभग दो महीने पहले सऊदी पत्रकार खाशोज्जी की जब तुर्की में सऊदी कॉन्सुलिएट में हत्या की गई, तो सीआईए समेत सारे संसार को सेटेलाइट इमेजरी से पता लग गया कि खाशोज्जी को कैसे मारा गया। ऐसे दौर में हमारी वायुसेना ने बालाकोट में क्या किया, भला इस पर कैसे और कब तक पर्दा पड़ा रह सकता है।
परंतु मोदी सरकार ने बालाकोट एक्शन के पश्चात यह फैसला किया कि वह इस संबंध में देश को संपूर्ण जानकारी नहीं देगी। किसी ने सरकार से कोई सवाल नहीं पूछा। परंतु पाकिस्तान ने इसका दुरुपयोग किया। उसने चौबीस घंटों के अंदर अंतरराष्ट्रीय मीडिया के जरिये यह माहौल बना दिया मानो बालाकोट में उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। ‘बीबीसी’ बोला कि एक कव्वा एवं कुछ पेड़ों की क्षति हुई, तो ‘न्यूयार्क टाइम्स’ ने लिखा कि केवल एक पाकिस्तानी नागरिक मारा गया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसी मीडिया रपट के पश्चात भारतीय वायुसेना की क्षमता पर उंगली उठने लगी। देश के भीतर सोशल मीडिया में भी प्रश्न उठने लग गए। इसी बीच बीजेपी अध्यक्ष ने एक चुनावी रैली में यह ऐलान कर दिया कि बालाकोट में 250 आंतकी मारे गए। अब यह स्पष्ट था कि बीजेपी अध्यक्ष के पास सरकारी सूत्रों से सूचना है। इस परिप्रेक्ष्य में मोदी सरकार से विपक्ष ने कहा कि बालाकोट में जो कुछ हुआ उसका पूरा ब्यौरा देश को दिया जाए।
बाप रे बाप, इतने से बयान पर मानो देश में आफत मच गई। ‘गोदी मीडिया’ से लेकर बीजेपी नेताओं तक हर किसी ने मानो विपक्ष को देशद्रोही ठहरा दिया। अरे भाई, उस बात को कोई कैसे और कब तक छिपाएगा जिसका लेखा-जोखा संसार भर में ‘सेटेलाइट इमेजेज’ के जरिये मौजूद है। ऐसे में सरकार को यह सुझाव देना कि आप बालाकोट का ब्यौरा देकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया की अटकलें बंद करें, कोई पाप तो नहीं। परंतु मोदी राज में मानो जुबान खोलना ही देशद्रोह है। टीवी स्टूडियो से लेकर बीजेपी नेताओं तक ने विपक्ष की देशभक्ति पर उंगलियां उठानी आरंभ कर दीं। भला यह कौन सी देशभक्ति है कि वह सूचना जो संसार के पास है उसको घोषित करने की सलाह देना देशद्रोह कहा जाए। परंतु बीजेपी और उसके सहयोगियों ने तो देशभक्ति का ठेकाअपने सिर ले रखा है। इसलिए उनकी दृष्टि में उनके अतिरिक्त कोई सच्चा देशभक्त हो ही नहीं सकता है। परंतु यह बीजेपी का भ्रम है जो अब सबकी समझ में भलीभांति आ रहा है।
सत्य तो यह है कि बीजेपी स्वयं बालाकोट का संपूर्ण राजनीतिकरण कर रही है। अब यह स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी यह फैसला कर चुकी है कि वह अगला चुनाव ‘राष्ट्रवाद’ के मुद्दे पर ही लड़ेगी। यह भी कटु सत्य है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगी अमित शाह ने इस मुद्देपर चुनावी रैलियां शुरू कर दी हैं। मोदी जी स्वयं जनता के बीच यह बयान दे रहे हैं कि ‘घर में घुसकर मारूंगा’, तो शाह साहब बालाकोट में मारे गए आतंकियों की संख्या बता रहे हैं। स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी पुलवामा एवं बालाकोट का खुला राजनीतिकरण ही नहीं, उसको चुनाव में भुनाने का प्रयास भी कर रही है।
बात यह है कि बीजेपी के पैरों के नीचे से जमीन खिसक चुकी थी। राफेल मुद्दे पर बदनामी, युवाओं की बेरोजगारी, किसान आक्रोश जैसे गंभीर मुद्दों से घिरी बीजेपी को 2019 लोकसभा चुनाव हाथ से निकलते दिख रहे थे। ऐसे में पाकिस्तान ने पुलवामा आतंकी धमाका कर मानो बेजान बीजेपी को एक मौका दे दिया और बीजेपी ने उसके आधार पर ‘राष्ट्रवाद’ बनाम ‘देशद्रोह’ को चुनावी मुद्दा बनाने का प्रयास शुरू कर दिया। इस प्रकरण में बीजेपी स्वयं राष्ट्रवादी रूप और संपूर्ण विपक्ष को देशद्रोही स्वरूप देने में जुट गई।
यह अत्यंत दुखद स्थिति है। भारत का हर राजनीतिक दल देश की एकता और अखंडता के प्रति समर्पित है और फिर वह कांग्रेस पार्टी जिसने अपने संघर्ष से देश को स्वतंत्रता दिलाई उसकी देशभक्ति पर उंगली उठाना केवल मूर्खता ही हो सकती है। परंतु केवल हिंदुत्व विचारधारा को राष्ट्रवाद समझने वाली बीजेपी को यह भ्रम हो गया है कि केवल वही एक राष्ट्रवादी पार्टी है। इस कारण ऐसी परिस्थितियों में राष्ट्रवाद का चुनावीकरण हरगिज नहीं होना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो चुनावी गर्मा-गर्मी में राष्ट्रवाद के नाम पर कीचड़ उछलेगी। अतः इस संबंध में चुनाव आयोग को एक सर्वदलीय बैठक बुलाकर राष्ट्रवाद का चुनावीकरण होने से रोकने का प्रयास करना चाहिए।
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