आकार पटेल का लेख: सच से दूर समाचार, तर्क से परे विश्लेषण, सलाहें ताक पर और चुनावी रैलियों में लाखों की भीड़
सवाल है कि जब सिर्फ 100 केस ही सामने आए थे तो नेशनल लॉकडाउन लगा दिया गया और जब एक दिन में 40000 नए केस सामने आ रहे हैं तो लॉकडाउन लगना तो दूर, हम क्रिकेट स्टेडियम में हजारों, चुनावी रैलियों और कुंभ में लाखों लोगों को जमा कर रहे हैं?
आज के दौर के लेखन की समस्या यह है कि ये ज्यादातर अर्थहीन होते हैं। दरअसल समाचारों का सच्चाई से कोई संबंध नहीं होता, इसलिए उन पर टिप्पणी करना भी कुछ ऐसा ही है। इस लेख में मैं भी कुछ ऐसा ही कर रहा हूं जो अर्थहीन ही है। आज किसी भी विश्लेषक की कोई भूमिका नहीं रह गई है क्योंकि तर्क और कारणों के अभाव में आखिर विश्लेषण हो भी तो क्या। मेरे कहने का तात्पर्य क्या है, इसके लिए ये चार समाचारों पर गौर करें।
सबसे पहले रविवार मार्च 14 की हेडलाइन देखिए, ‘भारत बनाम इंग्लैंड: कोविड-19 के बाद पहले टी-20 मैच में रिकॉर्ड भीड़’। खबरों में बताया गया कि दुनिया के सबसे बड़े नरेंद्र मोदी स्टेडियम में खेले गए इस मैच को 57,000 दर्शक देखने आए। दूसरी हेडलाइन भी 14 मार्च की है, इसमें कहा गया, ‘कोविड-19 का खौफ: अहमदाबाद में होने वाले बाकी टी-20 मैच बिना दर्शकों के होंगे।’ रिपोर्ट में बताया गया कि बीसीसीआई ने इस नतीजे पर पहुंची की हजारों दर्शकों को एक दूसरे के करीब बैठाना महामारी के दौर में समझदारी का काम नहीं है। वैसे फरवरी के अंत तक कोरोना की दूसरी लहर शुरु हो चुकी थी, तो सवाल है कि आखिर दुनिया के सबसे बड़े स्टेडियम में दर्शकों के आने की अनुमति ही क्यों दी गई। इन खबरों में यह नहीं बताया गया कि गुजरात में इन चार दिनों में कोरोना ममलों की संख्या 40 फीसदी बढ़ चुकी है।
तीसरी हेडलाइन शनिवार सुबह 20 मार्च की है। इसमें कहा गया, ‘कोविड-19 के मामलों में बढ़ोत्तरी पर गृहमंत्रालय की राज्यों को सलाह, नियमों का पालन करें।’ रिपोर्ट में बताया गया कि गृह सचवि अजय भल्ला ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को चिट्ठी लिखकर कहा है कि कोरोना के बढ़ते मामलों के मद्देनजर लोगों के बड़ी संख्या में जमा होने पर रोक लगाने के लिए जरूरी उपाय किए जाएं और इस आदेश का सख्ती से पालन किया जाए।
चौथी हेडलाइन भी इसी दिन की है। समें कहा गया है, : ‘आखिर उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री क्यों नहीं चाहते कुंभ की भीड़ पर रोकटोक।’ इस रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य की बीजेपी सरकार कुंभ मेला सभी के लिए खोलना चाहती है। 11 मार्च तक हरिद्वार कुंभ में 32 लाख लोग पहले ही पहुंच चुके थे और अधिक लोगों के आने का सिलसिला जारी है। यहां 12, 14 और 27 अप्रैल को शाही स्नान होना है। इस दौरान बीते दो सप्ताह में हरिद्वार में कोरोना मामलों की संख्या दोगुनी हो चुकी है। यह स्पष्ट नहीं है कि आखिर इन गतिविधियों के बीच केंद्र की सलाह और दिशा निर्देशों का पालन कैसे हो रहा है।
एक और हेडलाइन में बताया गया कि प्रधानमंत्री की खड़गपुर में रैली आज, अगले 10 दिनों में चार और रैलियां होंगी। इसी के साथ एक और खबर थी जिसमें बताया गया कि बंगाल में मोदी 20 और अमित शाह 50 रैलियां करेंगे। 7 मार्च को मोदी की ब्रिगेड चलो रैली हुई जिसमें दावा किया गया कि 5 से 10 लाख लोग शामिल हुए। इस रैली के बाद से बंगाल में कोरोना मामलों की संख्या दोगुनी हो चुकी है।
एक अन्य हेडलाइन में बताया गया कि 111 दिनों बाद कोरोना मामलों की संख्या 40 हजार पार, सितंबर के बाद से एक दिन में सर्वाधिक मामले सामने आए। शुक्रवार को देश में कोरोना के 40 हजार से अधिक नए मामले सामने आए
एक साल पहे 24 मार्च 2020 को जब पीएम मोदी ने फैसला किया था कि भारत में 21 दिनों का लॉकडाउन लगाया जा रहा है तो उस समय देश में कोरोना मामलों की संख्या 100 से कम थी।
सवाल है कि जब सिर्फ 100 केस ही सामने आए थे तो नेशनल लॉकडाउन लगा दिया गया और जब एक दिन में 40000 नए केस सामने आ रहे हैं तो लॉकडाउन लगना तो दूर, हम क्रिकेट स्टेडियम में हजारों, चुनावी रैलियों और कुंभ में लाखों लोगों को जमा कर रहे हैं?
इस सबके पीछे कौन सा विज्ञान है? मुझे नहीं पता। शायद किसी और को भी नहीं मालूम। आखिर मोदी सरकार राज्यों को क्यों पत्र भेज रही है कि कोविड नियमों का सख्ती से पालन हो, क्राउंड कंच्रोल क्या जाए जबकि खुद प्रधानमंत्री चुनावी रैलियां कर रहे हैं? आखिर क्यों सरकार कह रही है कि कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए तुरंत प्रभावी कदम उठाए जाएं, जबकि एक ही जगह पर एक महीने क लिए लाखों लोग जमा हो रहे हैं? यह सब ऐसे ही सवालहैं। इनका कोई जवाब नहीं है, क्योंकि इन दिनों भारत में व्यवस्था जिस तरह चल रही है उसका न तो कोई तर्क है और न ही को सेंस।
प्रधानमंत्री ने बंगाल में नया नारा दिया कि खेला नहीं विकास होगा। लेकिन उनकी अपनी सरकार के आंकड़े बताते हैं कि देश की जीडीपी जनवरी 2018 के बाद से निरंतर गिर रही हैं। यह 8 से 7, फिर 6, 4 और 2019 खत्म होते होते 3 फीसदी पर पहुंच चुकी थी। इसके बाद तो कोरोना काल में यह ऐतिहासिक निगेटिव आंकड़े में चली गई। आज देश में चीन या अमेरिका के मुकाबले 20 फीसदी कम व्यस्क लोग कार्यबल में शामिल हैं।
इसका सीधा अर्थ है कि बड़ी जनसंख्या का भारत ने कोई फायदा नहीं उठाया, जबकि होना तो यह चाहिए था कि हमारे यहां कहीं अधिक लोग कार्यबल में शामिल होते। ऐसा हो इसलिए नहीं रहा है क्योंकि उनके लिए काम है ही नहीं। क्या यही विकास है? मुझे नहीं पता, लेकिन प्रधानमंत्री कहते हैं कि विकास हो रहा है, तो हो सकता है यही सच्चाई हो।
आज देश में सारे विश्लेषक संदर्भहीन हो चुके हैं क्योंकि सच्चाई और आंकड़ों की कोई औकात रह ही नहीं गई है। ये सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन सच्चाई यही है।
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