आकार पटेल का लेख: बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर ज्यादतियां और पुराने भारत की विरासत

उम्मीद करें कि बांग्लादेश अपनी नई शुरुआत के साथ धर्मनिरपेक्षता की ओर बढ़ेगा, जोकि उस पुराने भारत की अपरिहार्य नियति है जिसमें तीनों देश शामिल थे।

बांग्लादेश में छात्रों के प्रदर्शन के बाद हसीना सरकार का तख्ता पलट हुआ है (फोटो - Getty Images)
बांग्लादेश में छात्रों के प्रदर्शन के बाद हसीना सरकार का तख्ता पलट हुआ है (फोटो - Getty Images)
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आकार पटेल

बांग्लादेश में हुई घटनाओं और सरकार के तख्तापलट के बाद अल्पसंख्यकों, खास तौर पर हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की अपेक्षित आशंका जताई जा रही थी। आजादी के बाद दक्षिण एशिया के देशों में अल्पसंख्यकों पर हमला करना किसी न किसी कारण से राष्ट्रवाद का एक स्तंभ रहा है। चूंकि ये सभी देश एक अनसुलझी पहचान के संकट से भी जूझ रहे हैं।

बांग्लादेश का संविधान ‘बिस्मिल्लाह रहमान इन रहीम’ से शुरु होता है। इसके संविधान का अनुच्छेद 2ए कहता है, ‘देश का सरकारी धर्म इस्लाम है, लेकिन देश को हिंदू, बौद्ध, ईसाई और अन्य धर्मों के लोगों को समान अधिकार और समान दर्जा सुनिश्चित करना होगा।’

बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट के 2010 के एक आदेश से वहां धर्मनिरपेक्षता बहाल हुई थी। इसमें कहा गया था, ‘धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद और समाजवाद के संदर्भ में संविधान की प्रस्तावना और जरूरी प्रावधान जैसे कि 15 अगस्त 1975 को थे, वैसे ही बहाल किए जाएं।’ लेकिन रोचक रूप से इस आदेश में देश के धर्म को अनछुआ छोड़ दिया गया था। ऐसे में एक देश की असाधारण स्थिति है जहां का संविधान कुरआन की आयत से अल्लाह के नाम के साथ शुरु होता है, इसकी प्रस्तावना राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और समाजवाद के उच्च आदर्शों की बात करती है, लेकिन इसके साथ ही देश का धर्म भी निर्धारित कर दिया गया है जोकि इस्लाम है।

दुबई की तरह बांग्लादेश में भी शुक्रवार और शनिवार को साप्ताहिक अवकाश होता है और वह कुछ ऐसे देशों में शुमार है जहां रविवार को काम होता है। पाकिस्तान तक में ऐसी व्यवस्था नहीं है।

आजादी के समय पाकिस्तान ने धर्म को कानून में शामिल कर दिया था क्योंकि उसका मानना था कि इससे देश में खुशनुमा माहौल बनेगा। इसकी हिमायत करते हुए पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने कहा था कि भौतिक और वैज्ञानिक विकास मानव व्यक्ति के विकास से कहीं आगे निकल गया है। इसका नतीजा यह हुआ कि इंसान ऐसे आविष्कार करने में सक्षम हो गया जो दुनिया और समाज को नष्ट कर सकते हैं। ऐसा सिर्फ इसलिए संभव हो पाया क्योंकि मनुष्य ने पने आध्यात्मिक पक्ष को अनदेखा कर दिया और अगर उसे ईश्वर (पाकिस्ता नके संदर्भ में अल्लाह) पर भरोसा होता तो ऐसी समस्याएं आती ही नहीं।

उन्होंने कहा थाकि सिर्फ धर्म ही विज्ञान के खतरों से बचा सकता है और मुसलमान होने के नाते पाकिस्तानियों को इस्लाम के आदर्शों का पाबंद रहना चाहिए और दुनिया में अपना योगदान देना चाहिए। उन्होंने कहा था कि देश की तरफ से मुसलमानों को धर्म के मुताबिक जीवन जीने का उपदेश दिए जाने का गैर-मुस्लिमों पर कोई असर नहीं होगा, तो जाहिर है उन्हें ऐसे उपदेशों से कोई फर्क भी नहीं पड़ेगा।


इन उपदेशों का नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तान के मुसलमानों से जुड़े कानून समय के साथ खत्म हो गए। शुरुआती इस्लाम उस समय अस्तित्व में था जब जेलें नहीं हुआ करती थीं। अपराधों के लिए सज़ा आमतौर पर हिरासत के बजाय शारीरिक होती थी। पाकिस्तान ने चोरी के लिए सज़ा के तौर पर हाथ काटने की सजा की शुरुआत की था और ऐसा करने के लिए डरे हुए डॉक्टरों के एक समूह को बाकायदा प्रशिक्षित किया ग. था। लेकिन पाकिस्तान जजों, जो भारत की तरह ही कानून में पारंगत थे, वे ऐसी सजा सुनाने से बचते थे और इसलिए इस कानून का इस्तेमाल न होने के साथ वह धीरे-धीरे प्रैक्टिस से बाहर हो गया। इसी तरह व्यभिचार के मामलों में संगसार यानी पत्थरों से मारने की सजा का प्रावधान किया गया था। लेकिन आजतक किसी को  भी पत्थर मार-मारकर मौत की सजा नहीं दी गई।

शराब पीने पर सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने की सजा भी खत्म हो गई और 2009 में शरीयत अदालत नेकोड़े मारने की सजा को खत्म करते हुए कहा कि शराब पीना कोई इतना बड़ा अपराध नहीं है। राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में पाकिस्तान ने बलात्कार की सजा में बदलाव करते हुए इसे शरीयत के कानून के बजाए फिर से आपराधिक कानून में वापस कर दिया। पहले इसमें पीड़िता द्वारा सबूत या गवाह पेश न करने की स्थिति में उसे ही सजा जिए जाने का प्रावधान था।

इसके अलावा जकात के तौर पर पाकिस्तानी सुन्नियों के बैंक खातों से 2.5 फीसदी रकम काटे जाने की व्यवस्था भी नाकाम हो गई क्योंकि लोग जकात काटे से ठीक पहले ही बैंक से पैसे निकाल लेते थे। शिया समुदाय ने इसका विरोध किया था, इसलिए उन्हें इस व्यवस्था के बाहर रखा गया था।

रमजान के दौरान रोजा रखना अनिवार्य किए जाने का कानून गैरजरूरी साबित हुआ क्योंकि उपमहाद्वीप के अधिकांश मुसलमान रोजे रखते ही हैं, और फिर ऐसे कानून का मुसलमान रेस्त्रां और सिनेमा मालिकों ने खुलकर विरोध किया था। इसके अलावा एक शरीयत अदालत ने बैकिंग व्यवस्था से ब्याज खत्म करने की मांग उठाई थी. लेकिन इसे अगली सरकारों ने अनदेखा कर दिया।

पाकिस्तान के इस्लामीकरण की आखिरी कोशिश कोई दो दशक पहले नवाज शरीफ के कार्यकाल में हुई थी। इसके लिए संविधान में 15वां संशोधन किया जाना था, लेकिन यह प्रस्ताव संसद में गिर गया था। पाकिस्तान आधा-अधूरा इस्लामिक देश है, और ईरान की तरह यहां कोई बड़ा इमाम या इस्लामी नेता नहीं है, और यहां कभी ऐसा हो भी नहीं सकता. सऊदी अरब के विपरीत पाकिस्तान में कोई नौतिक पुलिस भी नहीं है क्योंकि पाकिस्तानी सांस्कृतिक रूप से दक्षिण एशियाई हैं और स्थानीय रीति-रिवाज मानते हैं।


एक तरफ जहां पाकिस्तान धर्मनिरपेक्षता की तरफ अग्रसर हुआ, वहीं भारत काफी हद तक विपरीत दिशा में बढ़ा। वैसे 50 के दशक से ही एक सच्चाई है, लेकिन हाल के दिनों में खासतौर पर इसमें बदलाव आया है। 2015 में बीजेपी शासित राज्यों ने बीफ रखने को अपराध घोषित करना शुरु किया जिसके नतीजे में मॉब लिंचिग की कई घटनाएं सामने आईँ। 2019 में संसद ने एक साथ तीन तलाक दिए जाने को अपराध घोषित किया, और ऐसा करने वाले मुस्लिम पुरुषों सजा देने का प्रावधान किया, लेकिन इसका कोई खास असर नहीं पड़ा (क्योंकि सुप्रीम कोर्ट तो पहले ही एक साथ तीन तलाक दिए जाने को अवैध घोषित कर चुका था)।

2018 के बाद बीजेपी शासित 7 राज्यों ने धर्म परिवर्तन कर होने वाले अंतरधार्मिक विवाह को अपराध घोषित करते हुए ऐसी शादियों को अवैध घोषित कर दिया, भले ही ऐसे जोड़ों के बच्चे भी थे। लेकिन धर्म परिवर्तन कर हिंदू धर्म अपनाने को मूल धर्म में वापसी करार दिया गया और इसे कानून से बाहर रखा गया और इन्हें धर्म परिवर्तन की परिभाषा से भी मध्य प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में बाहर रखा गया। कई राज्यों में धर्म परिवर्तन का आरोप लगाकर ईसाइयों पर भी शिकंजा कसा जा रहा है। हालांकि इस कानून के तहत किसी को दोषी तो नहीं ठहराया गया अलबत्ता लोगों को प्रताड़ित करने के लिए इसका इस्तेमाल खूब किया गया।

गुजरात सरकार ने 2019 में मुसलमानों के हिंदुओं से संपत्ति खरीदने या लीज पर दिए जाने को नियमित कर दिया जिससे की मुस्लिम बहुल इलाके न बस सकें। यान गुजरात में विदेशी तो संपत्ति खरीद सकते हैं या किराए पर ले सकते हैं, लेकिन गुजराती मुसलमान नहीं ले सकते। कश्मीरियों की तो बात की क्या करें कि उनके साथ क्या कुछ नहीं हो रहा है, क्योंकि उन्हें तो सामूहिक रूप से दंडित किया गया है।

पाकिस्तान संवैधानिक तौर पर सांप्रदायिक होना चाता था, भारत सेक्युलर या धर्मनिरपेक्ष होना चाहता था, लेकिन अ वह खुद को सांप्रदायिक बनाने पर तुला है। तीनों देशों में एक ही दंड संहिता है जो कोई डेढ़ सदी पहले मैकाले ने बनाई थी। लेकिन तीनों ने अपने यहां कानूनों में बदलाव कर राज्यों को खासतौर से अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की छूट दे दी है। आज भारत में वही हो रहा है जो पाकिस्तान में पहले हो चुका है।

उम्मीद करें कि बांग्लादेश अपनी नई शुरुआत के साथ धर्मनिरपेक्षता की ओर बढ़ेगा, जोकि उस पुराने भारत की अपरिहार्य नियति है जिसमें तीनों देश शामिल थे।

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