Gujarat Election 2022: गुजरात में बीजेपी की हालत बेहद खराब! पीएम मोदी तक को जाना पड़ रहा है घर-घर

इस बार बीजेपी की दाल गलती नहीं दिख रही। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अपने-अपने तरीके से बीजेपी को दिन में तारे दिखा रही हैं। और तो और, बीजेपी ने अपने लिए बागियों की ऐसी फौज तैयार कर रखी है जिसने जमीनी स्तर पर पार्टी की नाक में दम कर रखा है।

फोटो: सोशल मीडिया
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आर के मिश्रा

शायद दो दशकों में यह पहली बार है जब गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ बीजेपी को पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों की नाराजगी दूर करने के लिए दिन-रात काम करना पड़ रहा है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पार्टी में निचले स्तर पर लगी इस आग को बुझाने के लिए लगातार गुजरात में डेरा जमाना पड़ा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी आना-जाना लगा हुआ है और उनकी तमाम चुनावी रैलियों का कार्यक्रम बनाया जा रहा है।

बीजेपी के लिए गुजरात का चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल है और बेशक देश के तमाम राज्यों में से गुजरात महज एक है लेकिन इसका सियासी मतलब कहीं अधिक है। इस चुनाव को मोदी-शाह के लिए निजी छवि को बनाए रखने या बिगाड़ देने की क्षमता रखने वाले चुनाव के तौर पर देखा जा रहा है। बीजेपी ने घोषणा की है कि नवंबर के अंत में प्रधानमंत्री फिर गुजरात आएंगे और दो दिनों तक वह घर-घर जाकर लोगों को वोटर स्लिप बांटेंगे। इस दौरान वह लोगों से अपील करेंगे कि वे बीजेपी को ही वोट दें। यह पहली बार है जब प्रधानमंत्री किसी राज्य में मतदाताओं को लुभाने के लिए खुद वोटर स्लिप बांटेंगे। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस चुनाव में बीजेपी किन हालात का सामना कर रही है।

गुजरात के पिछले विधानसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने 34 रैलियां की थीं और देखने की बात है कि इस बार उनकी रैलियों की संख्या इससे अधिक होती है या नहीं। मोदी की राज्य में होनी वाली रैलियों के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि उसी दौरान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और अपनी अभिनव ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से पार्टी में नई जान फूंकने वाले राहुल गांधी भी 21 और 22 नवंबर को नवसारी में चुनावी रैलियों को संबोधित कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक ही दिन नवसारी में रहे।

मोरबी पुल हादसा भी ऐसे समय हुआ है कि उसने राजनीतिक तौर पर बीजेपी को मुश्किलों में डाल दिया है और जिस तरह से गुजरात हाईकोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार पर तीखी टिप्पणियां की हैं, उसने बीजेपी को एकदम असहज स्थिति में ला खड़ा किया है। 30 अक्तूबर को हुए मोरबी पुल हादसे में आधिकारिक तौर पर 135 लोगों की जान चली गई थी और उसके बाद से ही सरकार के लिए इस मामले में जवाब देते नहीं बन रहा है। इस मामले की सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से जो जवाब दिया गया, उससे असंतुष्ट हाईकोर्ट ने वे सारे रिकॉर्ड तलब कर लिए हैं जिनके आधार पर अजंता मैन्युफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड को पुल के रखरखाव का ठेका दिया गया। कोर्ट ने सरकार से तमाम तीखे सवाल किए। इसके साथ ही पंजाब विधानसभा का चुनाव जीतकर गुजरात के चुनाव में किस्मत आजमा रही अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और विधानसभा में संख्याबल के हिसाब से दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने भी मोरबी हादसे के मामले में बीजेपी पर जमकर हमला बोला है। दोनों पार्टियों ने आरोप लगाया है कि इतनी बड़ी मानवीय त्रासदी के बाद भी बीजेपी जिस तरह उद्योगपति जयसुख पटेल पर कोई सीधी कार्रवाई नहीं कर रही है, उससे साफ होता है कि सत्तारूढ़ दल में पटेल की ऊंची पहुंच है और इस हादसे के लिए राज्य सरकार अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकती। इस तरह राज्य के कई इलाकों में मोरबी एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है।


 प्रधानमंत्री मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह खास तौर पर सौराष्ट्र क्षेत्र पर ध्यान दे रहे हैं। इसकी वजह यह है कि 2017 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में यहां बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा था और बीजेपी चाहती है कि यहां खोई जमीन को किसी भी तरह वापस लिया जाए। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र में प्रधानमंत्री की चार रैलियों के होने की संभावना है।

 एक और भी कारक पर गौर करने की जरूरत है। यह पहला चुनाव है जब बीजेपी को बड़ी संख्या में बागी उम्मीदवारों का सामना करना पड़ रहा है। इन बागियों को समझाने-बुझाने के लिए अमित शाह ने केन्द्रीय मंत्रियों, गुजरात के सांसदों और लगभग सभी बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को तैनात कर रखा है लेकिन अब भी कई विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां कोई तरकीब काम नहीं कर रही है।

 जबकि विजय रूपाणी और नितिन पटेल जैसे वरिष्ठ पार्टी नेताओं ने ‘स्वेच्छा से’ चुनाव से अपने आप को अलग कर लिया है और इसका स्वाभाविक नतीजा यह है कि तमाम विधानसभा क्षेत्रों में इन नेताओं के समर्थकों में नाराजगी है और वे पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों के लिए काम नहीं कर रहे हैं। खास तौर पर वैसे विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी कार्यकर्ता खास तौर पर खिन्न हैं जहां नए लोगों या फिर कांग्रेस से आए लोगों को पार्टी ने उम्मीदवार बना दिया है। इन क्षेत्रों में टिकट के दावेदार पार्टी नेताओं में असंतोष है और इसका असर पार्टी में निचले स्तर तक देखने को मिल रहा है।

पिछले साल जब पूरी विजय रूपाणी कैबिनेट को हटा दिया गया था, तब गृह मंत्री प्रदीप सिंह जाडेजा की कुर्सी भी जाती रही थी। प्रदीप सिंह ने इस बार चुनाव नहीं लड़ने की इच्छा जताई और उनके निजी सहायक बाबूसिंह जाधव को बीजेपी ने अहमदाबाद की वातवा सीट से उम्मीदवार बनाया है। वड़ोदरा जिले की वघोडिया सीट से बीजेपी के वर्तमान विधायक मधु श्रीवास्तव को पार्टी ने टिकट नहीं दिया और इससे नाराज श्रीवास्तव ने निर्दलीय प्रत्याशी को तौर पर पर्चा भर दिया है और वह बीजेपी के आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ खम ठोंक रहे हैं। मिली जानकारी के मुताबिक, बीजेपी ने उन्हें इस बात के लिए रजामंद करने की बहुत कोशिश की कि वह बीजेपी के आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ने के अपने फैसले पर फिर से विचार करें लेकिन अब तक इसका कोई असर नहीं दिख रहा।

कच्छ क्षेत्र के मांडवी से बीजेपी के पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह जाडेजा ने पाला बदलकर कांग्रेस का हाथ थाम लिया है। कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए धवलसिंह झाला उत्तर गुजरात के बयाड निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। बनासकांठा जिले के धनेरा में मावजी देसाई भी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। पंचमहल में बीजेपी के पूर्व सांसद प्रभातसिंह चौहान ने पार्टी छोड़ दी और अब कलोलास से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। लूनावाडा निर्वाचन क्षेत्र में तो बीजेपी के दो बागी एसएम खांट और जेपी पटेल निर्दलीय उम्मीदवारों के तौर पर चुनाव मैदान में हैं।


यह बदलाव कहीं भारी न पड़ जाए

बीजेपी की पहली सूची में 38 विधायकों के नाम हटा दिए गए। पार्टी के इस कदम को तब प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष सी.आर. पाटिल ने ‘पीढ़ीगत बदलाव’ करार दिया था और कहा था कि इस बार पार्टी की ओर से अपेक्षाकृत युवा और महत्वाकांक्षी पार्टी नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा गया है। उसके बाद पार्टी की दूसरी सूची आई और इसमें भी छह उम्मीदवारों में से दो मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए गए। ये दोनों महिलाएं थीं। 12 उम्मीदवारों की जो तीसरी सूची आई, उसमें अल्पेश ठाकोर सहित कांग्रेस के कई दलबदलू भी थे और इस कारण बीजेपी समर्थकों और वफादारों में निराशा का माहौल बन गया।

इन सब उलटफेर का बीजेपी में जमीनी स्तर पर कितना प्रतिकूल असर पड़ा, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कम-से-कम 22 निर्वाचन क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन हुए और बीजेपी कार्यालयों पर धावा बोला गया। पार्टी प्रमुख पाटिल और गृह मंत्री हर्ष सांघवी सहित राज्य के तमाम नेताओं को उम्मीदवारों की सूची से निकाल बाहर किए नेताओं को मनाने के काम में लगाया गया लेकिन वे विद्रोहियों तक पहुंचने में विफल रहे। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, केन्द्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला, मनसुख मांडवीय और प्रदीपसिंह को तनावपूर्ण स्थिति से निपटने का मुश्किल काम सौंपा गया। स्थिति ऐसी रही कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्देश पर खुद अमित शाह को गुजरात आना पड़ा। 

गृह मंत्री हर्ष सांघवी को वडोदरा ले जाया गया जहां एक मौजूदा विधायक और दो पूर्व विधायकों ने निर्दलीय के रूप में मैदान में कूदने की धमकी दी थी। वड़ोदरा के वाघोडिया से मौजूदा विधायक मधु श्रीवास्तव के अलावा कर्जन से सतीश पटेल और पदरा से दिनेश पटेल भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की धमकी दे रहे थे। सांधवी ने इन तीनों को मिलने के लिए बुलाया लेकिन उनमें से कोई नहीं आया। सावरकुंडला से मैदान में उतरे महेंद्र कासवाला को अहमदाबाद से आने के कारण ‘बाहरी’ और ‘किसान विरोधी’ करार दिए जाने के बाद बगावत का सामना करना पड़ रहा है।

 सुरेंद्रनगर जिले के वधावन से पार्टी के टिकट आवंटित बीजेपी उम्मीदवार ने चुनाव लड़ने से ही इनकार कर दिया। पाटीदार आंदोलन के नेताओं- हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर के खिलाफ भी इसी तरह की नाराजगी है जिन्होंने कांग्रेस का हाथ झटककर बीजेपी का दामन थामा और उन्हें क्रमशः वीरमगाम और गांधीनगर से मैदान में उतारा गया है।

सूरत में चोरयासी से बीजेपी विधायक झंखाना पटेल ने 2017 में एक लाख से अधिक मतों के दूसरे सबसे बड़े अंतर से यह सीट जीती थी लेकिन उन्हें भी टिकट नहीं मिलने से उनके समर्थकों में खासी नाराजगी रही और उन्होंने सड़कों पर उतरकर अपने गुस्से का इजहार भी किया। केसरीसिंह सोलंकी को इस बार जब मातर से टिकट नहीं दिया गया तो उन्होंने बीजेपी से इस्तीफा देकर आम आदमी पार्टी को अपना लिया लेकिन दिल्ली से बीच-बचाव के बाद वह फिर से बीजेपी में लौट आए। सौराष्ट्र क्षेत्र के वांकानेर, तलाला, बोटाड, महुवा, कलावाड के साथ-साथ उत्तरी गुजरात के बेचराजी, विसनगर, दीसा, धानेरा, मेहसाणा, हिम्मतनगर और विजापुर में बीजेपी कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध प्रदर्शन की खबरें भी सुर्खियां बनीं।


कांग्रेस प्रवक्ता डॉ. मनीष दोशी कहते हैं, ‘एक पार्टी जो अपने आजमाए हुए नेताओं का अपमान करती है और उनका साथ छोड़ देती है, मूल्य-आधारित राजनीति का दावा नहीं कर सकती है। यह और कुछ नहीं बल्कि अवसरवादिता है।’ वह संभवत: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और दस बार पार्टी विधायक रहे मोहनसिंह राठवा को इशारों-इशारों में नसीहत दे रहे थे जिन्होंने बीजेपी में शामिल होने के लिए कांग्रेस छोड़ दी और उनके बेटे को पार्टी ने टिकट से नवाजा। 

इसी तरह, अवैध चूना पत्थर खनन मामले में कारावास की सजा पाने वाले और 2019 में विधानसभा अध्यक्ष द्वारा अयोग्य घोषित किए गए कांग्रेस विधायक भगवानभाई बराड हाईकोर्ट द्वारा सजा पर रोक लगाने के बाद पिछले सप्ताह बीजेपी में शामिल हो गए। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र त्रिवेदी जिन्होंने बराड को अयोग्य घोषित किया था और बाद में भूपेंद्र पटेल सरकार में राजस्व मंत्री बने थे, उन्हें इस बार खुद हटा दिया गया है। लेकिन बराड को उनके पुराने निर्वाचन क्षेत्र में बीजेपी ने टिकट देकर पुरस्कृत किया है।

गुजरात में चुनाव प्रचार जोर पकड़ रहा है और यह हफ्ता इस मामले में अहम है कि यह कम-से-कम इस बात का संकेत दे देगा कि अपने बागियों को मनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही बीजेपी की कोशिशें कितनी कामयाब रहेंगी। वैसे, यह काम हरगिज आसान नहीं।

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