राम पुनियानी का लेखः ‘इंडिया’ से BJP-RSS में भारी बेचैनी, इस्तेमाल रोकने के लिए झोंकी ताकत
“इंडिया, जो भारत है”, निरंतरता और परिवर्तन दोनों को एकसाथ अभिव्यक्त करता अद्भुत शब्द समूह है। वह हमारी महान परम्पराओं को कायम रखने के साथ ही समयानुरूप परिवर्तनों को गले लगाने की बात करता है। इन्हीं परिवर्तनों ने आधुनिक भारत की नींव रखी है।
यह संयोग ही है कि विपक्षी पार्टियों के ‘इंडिया’ (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायन्स) के नाम से एक मंच पर आने के बाद से बीजेपी सरकार आधिकारिक दस्तावेजों में ‘इंडिया’ शब्द के इस्तेमाल से बच रही है और उसके पितृ संगठन आरएसएस ने एक फतवा जारी कर कहा है कि हमारे देश के लिए केवल ‘भारत’ शब्द का प्रयोग होना चाहिए। जी20 की शिखर बैठक में भाग लेने दिल्ली आए विदेशी मेहमानों को ‘भारत की राष्ट्रपति’ ने भोज पर आमंत्रित किया। सत्ताधारी बीजेपी भी ‘इंडिया’ शब्द के इस्तेमाल से बच रही है। उसका कहना है कि हमारे देश को यह नाम हमारे औपिनिवेशिक शासकों ने दिया था और इसलिए इससे औपनिवेशिकता की बू आती है। पार्टी नेता हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि ‘इंडिया’ शब्द हमारे देश की औपनिवेशिक विरासत का हिस्सा है और हमें इससे छुटकारा पा लेना चाहिए।
आरएसएस के मुखिया और अन्य पदाधिकारी भी यही बात कह रहे हैं। गुवाहाटी में एक कार्यक्रम में बोलते हुए मोहन भागवत ने कहा, “हमें इंडिया शब्द का प्रयोग बंद कर देना चाहिए और इसकी जगह भारत शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए। कब-जब हम इंडिया इसलिए कहते हैं ताकि अंग्रेजी-भाषी लोग समझ सकें कि हम किस देश के बारे में बात कर रहे हैं। अक्सर हम प्रवाह में इस शब्द का प्रयोग करते हैं। हमें यह बंद करना चाहिए।”
यह जताने के प्रयास भी हो रहे हैं कि इंडिया और भारत शब्द हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों और अलग-अलग सांस्कृतिक धाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। कई मौकों पर ‘इंडिया’ और ‘भारत’ को देश की परस्पर विरोधाभासी प्रवृत्तियों या घटकों के रूप में भी प्रस्तुत किया जा रहा है। जैसे भागवत ने ही हमें बताया था कि “बलात्कार, इंडिया में होते हैं भारत में नहीं।” उनके अनुसार, बलात्कार और सामूहिक बलात्कार केवल ‘शहरी भारत’ में होते हैं जहां पश्चिमी संस्कृति का बोलबाला है और ‘ऐसी चीजें’ ग्रामीण भारत में नहीं होतीं, जहां पारंपरिक मूल्यों की प्रधानता है। कहने की जरुरत नहीं कि भागवत पूरी तरह गलत हैं। यही बहस एक बार फिर जिंदा हो गई है और इसका कारण है विपक्ष द्वारा अपने गठबंधन के लिए एकदम उपयुक्त और प्रभावी नाम चुनना।
सच तो यह है हमारे देश के नाम के अनेक स्त्रोत हैं। सभ्यताएं स्थिर पोखर की तरह नहीं होतीं। वे बहती हुई नदी की तरह होती हैं। समय और परिस्थितियों के साथ उनमें परिवर्तन आते रहते हैं। अतीत में कई महाद्वीपों और देशों के नाम बदले हैं। हमारे देश को मुख्यतः दो नामों– भारत और इंडिया से पहचाना जाता रहा है। इन दोनों ही नामों के कई स्त्रोत हैं। भारत शब्द का स्त्रोत मुख्यतः धर्मग्रन्थ हैं। कुछ धर्मग्रंथों में इस भूमि को जम्बूद्वीप भी कहा गया है। सम्राट अशोक के शिलालेखों में जम्बूद्वीप शब्द ही प्रयुक्त हुआ है। जम्बूद्वीप का अर्थ है मेरु पर्वत के चारों ओर जो चार महाद्वीप हैं, उनमें से दक्षिण में स्थित महाद्वीप। यह परिकल्पना प्राचीन ब्रह्माण्ड ज्ञान का भाग है। जामुन के पेड़ के नाम पर जम्बूद्वीप कहे जाने जाने वाले दुनिया के इस हिस्से में आधुनिक मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं। इसी तरह, गंगा नदी की घाटी, जिसमें आर्यों ने सबसे पहले डेरा डाला, को आर्यावर्त भी कहा जाता है।
भारत शब्द का सबंध महान भरत राजा के भरत वंश से है। ऋग्वेद (सप्तम अध्याय, ऋचा 18) में भरत वंश के राजा सुदस और दसराजन (दस राजाओं) के बीच युद्ध का वर्णन है। महाभारत में चक्रवर्ती सम्राट भरत का ज़िक्र आता है, जो कौरवों और पांडवों के पूर्वज थे। विष्णुपुराण में भरतवंशम की चर्चा है। भरत का साम्राज्य, वर्तमान भारत के अलावा वर्तमान पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और ईरान तक फैला हुआ था। जैन साहित्य में बताया गया है कि चक्रवर्ती सम्राट भरत प्रथम तीर्थंकर के सबसे बड़े पुत्र थे।
इसके अलावा, हमारे देश के नामकरण में सिन्धु नदी की भी भूमिका है। अवेस्ता में इसे हप्तहिन्दू कहा गया है। वेदों में कुछ स्थानों पर इसे सप्तसिंधु बताया गया है। हखामानी (पर्शियन) स्त्रोतों में सिन्धु नदी के आसपास के इलाके को हिन्दुकुश कहा गया है। इसके भी पहले, चौथी सदी ईसा पूर्व में मेगस्थनीज ने इसे इंडिया बताया था, जो यूनानी भाषा में इंडिके हो गया। यहीं से इंडिया नाम की शुरुआत हुई। जो लोग कह रहे हैं कि इंडिया शब्द औपनिवेशिक विरासत हैं, वे इस शब्द के जटिल इतिहास से परिचित नहीं हैं और राजनैतिक उद्देश्यों से संविधान की शब्दावली “इंडिया, जो भारत है” का इस्तेमाल करना नहीं चाहते।
मानव सभ्यताएं ठहरती नहीं हैं। बल्कि ठहरी हुई सभ्यताएं प्रगति नहीं करतीं। इस सत्य का उन विभूतियों को अहसास था जो औपनिवेशिक ताकतों के विरुद्ध संघर्ष कर रही थीं। यही कारण था कि सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी ने “इंडिया: द नेशन इन द मेकिंग” की बात की थी। यही कारण था कि गांधीजी ने अपने समाचारपत्र का नाम ‘यंग इंडिया’ रखा था और यही कारण था कि आंबेडकर ने पहले इंडियन लेबर पार्टी और बाद में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया का गठन किया था। ‘इंडिया’ शब्द कतई औपनिवेशिक विरासत नहीं है। यह शब्द ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में व्यापार करने और उसे लूटने के लिए यहां आने से बहुत पहले से प्रचलन में था। इस शब्द का इस्तेमाल औपिनिवेशिकता-विरोधी आन्दोलन में भी किया गया था। और पूरी दुनिया हमारे देश को इंडिया के नाम से ही जानती है।
जो लोग औपनिवेशिक विरासत और पश्चिमी प्रभाव के नाम पर ‘इंडिया’ शब्द के इस्तेमाल को बंद करवाना चाहते हैं, वे तो समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व जैसे प्रजातान्त्रिक मूल्यों को अपनाने के भी खिलाफ हैं। यह भी दिलचस्प है कि यही लोग अभी कुछ समय पहले तक इसी शब्द का जम कर इस्तेमाल करते थे। मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, क्लीन इंडिया ये सब नाम आखिर किसके दिए हुए हैं? अपनी चुनावी सभाओं में मोदी ‘वोट फॉर इंडिया’ का नारा भी देते रहे हैं।
“इंडिया, जो भारत है”, निरंतरता और परिवर्तन दोनों को एकसाथ अभिव्यक्त करता अद्भुत शब्द समूह है। वह हमारी महान परम्पराओं को कायम रखने के साथ ही समयानुरूप परिवर्तनों को गले लगाने की बात करता है। इन्हीं परिवर्तनों ने आधुनिक भारत की नींव रखी है।
भारत के संविधान निर्माताओं को ‘भारत’ शब्द से कोई एलर्जी नहीं थी। उन्होंने उसे हमारी आत्मा के रूप में स्वीकार किया। वे ‘भारत’ और ‘इंडिया’ को एक-दूसरे का विरोधाभासी नहीं मानते थे। वे आधुनिक भारत की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं को समझते थे। यही कारण है कि उन्होंने गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर के ‘जन गण मन’ को राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया, जिसमें ‘भारत भाग्य विधाता’ की बात कही गयी है। राजीव गांधी ने 21वीं सदी के भारत की परिकल्पना करते हुए ‘मेरा देश महान’ का नारा दिया था।
पूरी दुनिया हमारे देश को ‘इंडिया’ नाम से ही जानती है। यह भी दिलचस्प है कि ‘इंडिया’ शब्द के प्रयोग पर सबसे पहले जिस व्यक्ति ने आपत्ति की थी, उनका नाम था मुहम्मद अली जिन्ना। हमारी स्वतंत्रता के चार हफ्ते बाद, जिन्ना ने भारत के गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबैटन को लिखे एक पत्र में हमारे देश के लिए ‘इंडिया’ शब्द के इस्तेमाल का विरोध किया था। उन्होंने लिखा था, “यह दुखद है कि किन्हीं छुपे हुए कारणों की वजह से हिंदुस्तान ने अपने लिए ‘इंडिया’ शब्द को अंगीकार किया है। यह गुमराह करने वाला है और इसका उद्देश्य भ्रम फैलाना है।” जिन्ना के अनुसार, ‘इंडिया’ उस अविभाजित राष्ट्र का नाम था, जिसका अस्तित्व बंटवारे के बाद समाप्त हो गया है। क्या हम कह सकते हैं कि आज जो लोग इंडिया शब्द के इस्तेमाल पर हमलावर हैं, वे जिन्ना की राह पर चल रहे हैं?
(लेख का अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा)
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia