कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए भारत सरकार ने समय रहते नहीं उठाए कदम, अब कैसे करेंगे रोकथाम?
कोरोना वायरस विश्व महामारी के रूप में घोषित हो चुका है। इससे लाखों लोग पीड़ित हैं और 20 हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं। भारत के प्रधानमंत्री एक सप्ताह के अंदर दो बार देश को संबोधित कर चुके हैं।
कोरोना वायरस विश्व महामारी के रूप में घोषित हो चुका है। इससे लाखों लोग पीड़ित हैं और 20 हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं। भारत के प्रधानमंत्री एक सप्ताह के अंदर दो बार देश को संबोधित कर चुके हैं। प्रधानमंत्री का पहला संबोधन 20 मार्च, 2020 को हुआ। प्रधानमंत्री ने 22 मार्च, 2020 को ‘जनता कर्फ्यू’ की बात की और लोगों से कहा कि अपने बालकानी में खड़ा होकर स्वास्थ्य कर्मी का अभिवादन करें जो जनता की सेवा में लगे हैं। 4 दिन बाद प्रधानमंत्री ने दोबारा देश को संबोधित करते हुए 21 दिन के लॉक डाउन की घोषणा पूरे देश में किये। प्रधानमंत्री के घोषणा से पहले ही दिल्ली सहित देश के कई राज्यों में 31 मार्च तक लॉक डाउन की घोषणा हो चुकी थी।
22 मार्च, 2020 ‘जनता कर्फ्यू’ का जो दृश्य समाचार और सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचा वह काफी चौंकाने वाली थी। शाम को लोग ढोलक, झाल, थाली, कटोरे पिटते हुए, शंखों के उन्मादी ध्वनि-प्रदूषण के साथ सड़कों पर आ गए। उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले से खबर आई कि जिला मजिस्ट्रेट और एसपी भी भीड़ में घंटा बजाते हुए सड़क पर चल रहे थे। ‘जनता कर्फ्यू’ लगा था कि लोग एक दूसरे के शारीरिक तौर पर संपर्क में नहीं आये उसके उल्ट 22 मार्च को देखने को मिला। यह इस कारण हुआ कि लोगों के दिमाग में व्हाट्सएप्प संदेश के द्वारा बताया गया कि ध्वनि से करोना के वायरस मर जायेंगे। इस जोश में आकर लोग पटाखे और बाजे तक बजाते नजर आए। इस व्हाट्सएप्प संदेश को सरकार की तरफ से कोई खंडन नहीं किया गया बल्कि एक मौन सहमति दी गई ताकि दिखे कि लोगों में देश के प्रधानमंत्री के लिए कितना प्यार है। ‘जनता कर्फ्यू’ के दिन ही जब शंख और घड़ियाल बजा कर ‘ध्वनि प्रदूषण’ किया जा रहा था उसी समय डॉ. राम मनोहर लोहिया इंस्ट्च्युट, लखनऊ से उत्तर प्रदेश नर्सेज एसोसिएशन के प्रदेश महामंत्री सुजे सिंह ने लाइव प्रसारण करके अपनी समस्याओं को लोगों के बीच रखा। सुजे सिहं ने बताया कि ‘‘एन-95 मास्क नहीं है। प्लेन मास्क से मरिज को देख भाल कर रही हैं। हमें बेसिक चीजें नहीं दी जा रही हैं और कहा जा रहा है कि बोलिए मत। हमें पीपीई कीट नहीं मिल सकती क्या यह देश इतना गरीब हो गया है? नौकरियां ठेके पर हैं सात, दस, पन्द्रह हजार पर नर्सें काम कर रही हैं, पेंशन नहीं दे रहे हैं। धमकी देते हैं कि बोलने पर निकाल दिया जायेगा। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि पत्रकार बंधु सवाल करें। उन्होंने यह भी बताया कि हमने कोरोना को लेकर पहले ही आवाज उठाई थी कि इसको भारत में आने ही नहीं दें और दूसरे देश से आने वाले लोगों को उनके दूतावास में ही रखें। उन्होंने अपने सुझाव में यह भी कहा था कि एयरपोर्ट पर ही कुंभ मेले जैसे अस्पताल बना दिया जाए और बाहर से आने वाले लोगों को पहले वह क्वारंटाइन में रखा जाये, उसके बाद ही बाहर आने दिया जाए। बाढ़ वाला कार्यक्रम नहीं चलेगा मुझे सब पता है कि बाढ़ में कितना दिया जाता है कितना खा लिया जाता है। हमको समान दिया जाये नहीं तो हम काम नहीं करेंगे हम जनसेवा के लिए परिवार को मौत के मुंह में नहीं डालेंगें। हमारी छुट्टी दे दो हम भी घंटा घड़ियाल बजा लेंगे।’’ यह बात सुजे सिंह उस समय कह रही थी जब प्रधानमंत्री के निर्देश पर स्वास्थ्यकर्मियों के अभिवादन में घंटा, घड़ियाल बजाये जा रहे थे।
24 मार्च को प्रधानमंत्री देश को संबोधित करते हुए कहा कि 21 दिनों को भारत को लॉक डाउन किया जा रहा है। उन्होंने अमेरिका और ईटली का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां कि स्वास्थ्य व्यवस्थाएं दुनिया के बेहतर व्यवस्था है फिर भी वहां पर इतने लोग मर रहे हैं। अगर हम सचेत नहीं हुए तो बहुत नुकसान होगा और देश 21 साल पीछे चला जायेगा। पंद्रह हजार करोड़ रुपए कोरोना से निपटने के लिए देने को कहा। पत्रकारों को भी बधाई दिए जो कि अपनी जान जोखिम डालकर खबरें पहुंचा रहे हैं।
प्रधानमंत्री जी ने पत्रकारों को बधाई तो दिए लेकिन एक दिन पहले आज तक के पत्रकार नवीन के पिटाई पर अफसोस तक जाहिर नहीं किया गया। 21 दिन के लॉक डाउन की घोषणा कर दी लेकिन लोग 21 दिन तक गरीब लोग क्या खाएंगे, पीएंगे, कैसे रहेंगे इसकी कोई जानकारी नहीं दी। बस एक लक्ष्मण रेखा खींच दी कि दरवाजे की दहलीज न पार करें। यह अच्छा हुआ कि विश्व के सबसे ऊंची प्रतिमा बनाने वाले प्रधानमंत्री जी ने यह नहीं बताया कि उनके पास अस्पतालों में इससे लड़ने के लिए क्या व्यवस्था की गई है। वह सड़कों, सार्वजनिक जगहों को बैक्टीरिया मुक्त कैसे करेंगे। वह इस बार ‘स्टैच्यु ऑफ युनिटी’ को भूल गये और मान लिया कि अमेरिका और इटली की स्वास्थ्य सेवा बेहतर है।
प्रधानमंत्री ने एक सप्ताह के अंदर दो बार भाषण देकर तो चले गए लेकिन ये नहीं बताया कि जनता को राशन कहां से दिया जाएगा। प्रधानमंत्री के भाषण का दूसरे दिन भी वही हर्ष देखने को मिला जो कि 22 मार्च को देखने को मिला था। प्रधानमंत्री जी लॉकडाउन की खबर भी एडवाइजरी जारी किया जा सकता था। आपने आधी-अधूरी बात राष्ट्र के नाम के संदेश में क्यों बताई? दिल्ली में 22 मार्च से 30 मार्च तक पहले से लॉक डाउन की घोषणा थी जिसके कारण मजदूर वर्ग परेशान हो गया था, क्योंकि उसके पास काम नहीं था, घर की अनाज भी 5 दिन बीतते समाप्त होने वाली थी। उसी समय प्रधानमंत्री द्वारा 21 दिन के लॉक डाउन ने हालत और खराब कर दी और वस्तुओं की कालाबाजारी होने लगी। जो आलू 15-20 रुपए किलो थो वह 40-50 रुपए किलो बिकने लगा। लोग घर जाने के लिए स्टेशनों, बस अड्डांं पर निकल गये। सामाचार में आने लगा कि पुलिस लोगों को पिटाई करने लगी। एक न्यूज चैनल में देखा गया कि 15-20 साल लड़कों का एक झूंड रेलवे स्टेशन के आस-पास तीन दिनों से घूम रहा है और वह रो रहा है। कई जगह लोग पैदल ही 1000-1200 किलोमीटर दूर घर की ओर जाते हुए दिखाई दिये। मुझे बादली, दिल्ली से कई परिवारों को फोन आया कि उनके पास राशन नहीं हैं। एक चप्पल सिलाई का काम करने वाले व्यक्ति ने कहा कि ‘‘क्या खायें, ईंट फोड़ कर खायें’’। यह मात्र 5 दिन के लॉक डाउन में यह स्थिति हो गई तो आगे क्या स्थिति होने वाली है, हम समझ सकते हैं। क्या हम करोना वाइरस को लॉक डाउन करके ही भगा सकते हैं?
करोना वाइरस और सरकार की तैयारी
लैबोरेट्री मेडिसिन की प्रोफेसर और एम्स में इंफेक्शन कंट्रोल डिपार्टमेंट की इंचार्ज डॉक्टर पूर्वा माथुर ने कहा है कि अस्पताल में मास्क और हैंडसैनिटाइजर की कमी को देखते हुए माइक्रोबयोलाजी डिपार्टमेंट के डॉक्टर लैबोरेट्री में हैंड सैनिटाइजर और फेस मास्क तैयार कर रहे हैं। इंफेक्शन कंट्रोल डिपार्टमेंट के एक सीनयिर डॉक्टर का कहना है कि प्रशासन द्वारा पीपीई उपलब्ध कराया गया है लेकिन यह कम है इसलिए हमें अन्य विकल्प तैयार करने हैं।
हिमाचल के सबसे बड़े मातृ एवं शिशु अस्पताल, केएनएच में मास्क की कमी के कारण 13 मार्च, 2020 को डॉक्टरों ने सिजेरियन करने से मना कर दिया। डॉक्टर को कहा गया कि टोपी को ही मास्क की तरह प्रयोग करें जिससे डॉक्टर नाराज हो गये। अस्पताल प्रबंधन ने दर्जी से चार मास्क सिलवा कर दिया। अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अंबिका चौहान कहती है कि मार्केट में सप्लाई कम होने से कपड़े के मास्क बनाए जा रहे हैं।
भारत सरकार द्वार उठाए गए कदम
भारत में हर रोज 5 लाख पीपीई की जरूरत है। भारत सरकार ने सरकारी कंपनी एचएलएल को मई 2020 तक साढ़े सात लाख पीपीई, 60 लाख एन-95 मास्क और एक करोड़ तीन लाख प्लाई मास्क तैयार करने की ऑर्डर दिया है। आईसीएमआर से जुड़े भारत में लगभग 70 टेस्ट यूनिट हैं जहां पर टेस्ट का काम होता है। आईसीएमआर के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव के अनुसार इस हफ्ते के अंत तक करीब और 50 सरकारी लैब तैयार हो जाएंगे जिसमें टेस्ट हो सकती है। भारत सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से दस लाख किट की मांग की है। आईसीएमआर ने यह भी दावा कि है कि 23 मार्च तक भारत में दो ऐसे लैब तैयार होंगे जो कि 1400 टेस्ट रोज कर सकेंगे। अमेरिका और जापान से कुछ ऐसी आधुनिक मशीने मंगाने की बात हो रही है जिससे कि एक घंटे में कोविड-19 की जांच की जा सके।
सरकार की लापरवाही
जब यह बीमारी चीन तक ही सीमित थी, विश्व स्वास्थ्य संगठन की दक्षिण-पूर्व एशिया के क्षेत्रीय डायरेक्टर पूनम खेत्रपाल ने स्वास्थ्य मंत्री को तीन बार पत्र लिखकर कोरोना से निपटने के लिए जरूरी कदम उठाने को कहा था। जब 30 जनवरी, 2020 में पहला केस आया था और 3 फरवरी, 2020 को डॉ. हर्षवर्धन की अगुवाई में जीओएम की बैठक हुई उसी समय देश को लॉक डाउन क्यों नहीं किया गया? 31 जनवरी को विदेश व्यापार निदेशालय द्वारा लगाये गये प्रतिबंध को भारत सरकार क्यों ढील दी और पीपीई और मास्क को निर्यात करने देती रही। 23-24 फरवरी के ट्रम्प की यात्रा को रद्द क्यों नहीं किया गया? सैकड़ों की संख्या में आए अमेरिकी जो कि गुजरात से दिल्ली तक घुमते रहे क्या कोरोना का संक्रमण उससे नहीं फैला होगा? अंतर्राष्ट्रीय आवागमन को 22 मार्च, 2020 तक छूट दी गई। इस आवागमन को जनवरी या फरवरी के पहले हफ्ते में क्यों नहीं रोका गया? समुचित सुरक्षा पीपीई, मास्क और दस्ताने के पर्याप्त सुरक्षा के बिना जब डॉक्टर, नर्सें काम करेंगे और वह संक्रमित हांगी तो कौन बचायेगा? सुजे सिंह जैसी नर्सेज की मांग पर सरकार क्यों नहीं ध्यान देती है? लॉक डाउन करके सरकार राशन, दवाई घर-घर तक पहुंचाने की व्यवस्था क्यों नहीं कर रही है? लॉक डाउन से कोरोना का कहर हम अगर थोड़ा कम कर पाएं तो कुपोषण और भूख से होने वाली बीमारियों के कारण लोगों को अस्पताल तक जाना होगा जिससे की संक्रमण बढ़ने का खतरा और बढ़ जायेगा।
चीन सरकार का अनुभव बताता है कि वह पूरे वुहान शहर को बंद कर दिया गया था और रोबोट के जरिए लोगों के घरों तक रोजमर्रा की जरूरतों को पहुंचाने का काम किया गया। सड़कों, सार्वजनिक स्थानों सबको सैनिटाइजर से धोया गया। वहां पर सोशल डिस्टेसिंग (सामाजिक दूरी) की जगह फिजिकल दूरी बनाई गई। सोशल डिस्टेंस को कम किया गया। वहां पर लोग ऐप से जुड़ कर एक दूसरे की खैरियत और जरूरत को पूछते थे। अगर किसी एक को बाहर जाना है तो वह पूरे मुहल्ले से ऐप से जान लेता था कि कुछ मंगाना तो नहीं है फिर वह निकल कर सबकी जरूरत की सामान लाते थे। भारत में सरकार सोशल डिस्टेंस बनाने की बात कर रही है जबकि बीमारी के समय सोशल डिस्टेंस कम करना होता है जिससे कि लोग मानसिक तनाव में नहीं आएं। बीमारी से बचने के लिए फिजिकल डिस्टेंस की जरूरत है। भारत में सच में लोग सोशल डिस्टेंस ही बना रहे हैं जिन स्वास्थ्यकर्मियों को 20 मार्च, 2020 को थाली, गिलास, ढोल, नगाड़े पिटकर अभिवादन किया गया, उनको ही अब घर खाली करने को कहा जा रहा है। चीन में सैनिटाइजर से सड़के धो दी गई। भारत में हाथ धोने के लिए सैनिटाइजर नहीं मिल रहे हैं उसकी कालाबाजारी की जा रही है।
सरकार ने कोरोना को रोकने के लिए सही समय चुक गई है लेकिन अभी भी जो कदम उठा रही है वह पर्याप्त नहीं है और इससे करोना को रोकने में मद्द मिलना कम ही नजर आ रहा है। भारत में कोरोना के डर से कई लोग मानसिक तनाव में आकर आत्महत्या कर चुके हैं। भारत के 90 प्रतिशत मजदूर (करीब 40 करोड़) असंगठित क्षेत्र के हैं जिसके सामने एक माह का खर्च चलाना मुश्किल होता है, उनके लिए सरकार को जमीन स्तर पर व्यवस्था करने की जरूरत है जिससे कि वह भूख के शिकार न हो या उनको किसी और कारण से अस्पताल नहीं जाना पड़े। कोरोना बीमारी का प्रभाव समाज में लम्बे समय तक रहेगा, मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ेगी, गरीबी रेखा के नीचे जीने वालों की संख्या बढ़ेगी। सरकार सबसे पहले सुनिश्चित करे किसी की भूख से मौत नहीं हो, कुपोषित बच्चों की संख्याएं नहीं बढ़ें नहीं तो भारत का भविष्य कई साल पीछे चला जायेगा। कालाबाजारी करने वालों पर सख्त कार्रवाई हो और पुलिस-प्रशासन को लोगों के साथ दुर्व्यवहार नहीं करने की हिदायत दी जाए। सरकार स्वास्थ्य की बजट को बढ़ाये और मन्दिरों, मस्जिदों, गुरूद्वारों की जगह अस्पताल बनाये। प्राइवेट अस्पतालों को सारकारी करण किया जाए। सरकारी खर्चे पर कोरोना संक्रमित लोगों की जांच की जाए और उनकी इलाज की समुचित व्यवस्था की जाए।
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