ऑस्टेलिया में आग की तबाही जारी, करोड़ों जानवरों के झुलसने से विलुप्ति का खतरा पैदा
ऑस्ट्रेलिया पिछले कई महीनों से जंगलों और झाड़ियों की आग से जूझ रहा है, जिसकी चपेट में वहां की 180 लाख हेक्टेयर भूमि आ चुकी है। सबसे बुरा प्रभाव जंगली जानवरों पर पड़ा है। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के अनुसार आग से अब तक वहां 1.25 अरब से अधिक जानवर मर चुके हैं।
दुनिया में बड़े देशों में केवल दो देश- अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया, ऐसे हैं, जो जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि का लगातार विरोध करते रहे हैं। दूसरी तरफ जानकारों के अनुसार, तापमान वृद्धि की सबसे अधिक मार यही दो देश झेल रहे हैं। अमेरिका लगातार चक्रवातों और जंगलों की आग से परेशान रहता है, तो दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया पिछले कई महीनों से जंगलों और झाड़ियों की आग से जूझ रहा है। किसी भी समय औसतन 100 क्षेत्र इस आग की चपेट में रहते हैं।
ऑस्ट्रेलिया में, जहां यह गर्मी का समय है और तापमान लगातार रिकॉर्ड तोड़ रहा है। पिछले साल दिसंबर महीने में यहां का औसत तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया था। पिछले साल ऑस्ट्रेलिया के अनेक क्षेत्रों में बारिश हो गयी थी, जिससे आग की लपटें कुछ कम तो हो गयी हैं, पर बुझी नहीं। मौसम विभाग ने बारिश के बाद फिर तापमान तेजी से बढ़ने की बात कही है, इसका सीधा सा मतलब है कि आग का प्रकोप और बढेगा।
ऑस्ट्रेलिया में अब तक 180 लाख हेक्टेयर भूमि आग की चपेट में आ चुकी है। इस आग का धुआं लगभग 1000 वर्ग किलोमीटर के दायरे को प्रभावित कर रहा है। अनेक कस्बे और गांव पूरे तरीके से आग से नष्ट हो गए। अनेक शहर और कस्बे धुएं के कारण भयानक वायु प्रदूषण की चपेट में हैं। कृषि और उद्योग प्रभावित हो रहे हैं, कुछ लोग भी मर चुके हैं। पर, इस आग का सबसे बुरा प्रभाव जंगली जानवरों पर पड़ा है। एक अनुमान के अनुसार इस आग में लगभग एक अरब जानवर अब तक मर चुके हैं। इस संख्या में छोटे स्तनपायी जानवर, चमगादड़ और कीट-पतंगे शामिल नहीं हैं। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के अनुसार ऑस्ट्रेलिया में अबतक 1.25 अरब से अधिक जानवर मर चुके हैं। ऑस्ट्रेलिया का वन्य जीवन अनोखा है, और बहुत सारी प्रजातियां स्थानिक है। इन प्रजातियों का बड़ी संख्या में मरना इन्हें विलुप्तीकरण की तरफ ले जा रहा है।
ऑस्ट्रेलिया में जंगलों और झाड़ियों की आग कोई नई बात नहीं है, यह एक वार्षिक घटना है। पर, पिछले कुछ वर्षों से इसका क्षेत्र और विभीषिका बढ़ती जा रही है। साल 2019 में तो पिछले सभी रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए। कुछ महीने पहले जब आग का दौर शुरू हुआ तब सरकार को इसकी विभीषिका का अंदाजा नहीं हुआ। इसके बाद जब तक सरकार चेताती, तब तक स्थिति नियंत्रण से बाहर हो चुकी थी। वैसे भी पर्यावरण के सन्दर्भ में ऑस्ट्रेलिया का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है। यहां प्रजातियों के विलुप्तीकरण की दर दुनिया में सबसे अधिक है और इस बार की आग ने इस समस्या को और विकराल कर दिया है।
सबसे अधिक प्रभावित राज्य न्यू साउथ वेल्स है, जिसका 49 लाख हेक्टेयर क्षेत्र आग की चपेट में है। यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी के इकोलॉजिस्ट क्रिस्टोफर डिकमैन के अनुसार इस राज्य में लगभग 50 करोड़ जानवर आग से प्रभावित हैं और कुछ करोड़ मर चुके हैं। इस साल आग से प्रभावित होने वाले जानवरों की संख्या अभूतपूर्व है। जो जानवर मर रहे हैं, उनमें कंगारू, कोआला, वल्लबिज, ग्लाइडर्स, पोटरूस और हनीईटर्स प्रमुख हैं। कंगारू और कोआला तो सीधे आग से या फिर घने धुंए के कारण मर रहे हैं। पर्यावरण मंत्री सुसान ले ने दिसंबर में बताया था कि पूरे ऑस्ट्रेलिया में कोआला की जितनी संख्या थी उसमें से एक-तिहाई से अधिक इस आग के कारण मर चुके हैं और जो बचे हैं उनका भी आवास नष्ट हो चूका है और इनके भोजन का अभाव है।
दूसरी प्रभावित प्रजाति, वोम्बट्स, कम दूरी तक तेजी से दौड़ पाते हैं, फिर सुस्त हो जाते हैं। इसीलिए घने आग का क्षेत्र यदि बड़ा हो तो वे इससे बाहर नहीं निकल पाते। छोटे स्तनपायी और सरीसृप सीधे आग से नहीं मरते। आग लगते ही ये अपने बिलों में चले जाते हैं। पर आग से इनका वातावरण और भोजन प्रभावित होता है, जिससे ये मरने लगते हैं। जो क्षेत्र आग से नष्ट होते हैं, वहां यदि जानवर बचते भी हैं तो सामान्य जिन्दगी नहीं गुजार पाते और जल्दी ही मरने की कगार पर आ जाते हैं। दरअसल इन्हें वनस्पतियों से सुरक्षा मिलती है, पर इनके बढ़ने की रफ्तार बहुत धीमी रहती है।
ऑस्ट्रेलिया में लगभग एक दशक से भयानक सूखा पड़ा है, इसलिए वनों और झाड़ियों की स्थिति पहले से ही खराब थी, अब इस आग ने तो इसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया। इस सूखे से फ्लाइंग फोक्सेस की प्रजाति पहले से ही विलुप्तीकरण के कगार पर आ चुकी थी। जानवर और उनका आवास, दोनों एक दूसरे पर निर्भर करते हैं। रैट कंगारू एक ऐसी प्रजाति है जो भूमि की उत्पादकता बढाती है। जब इनकी संख्या कम होती है, तब भूमि की उत्पादकता कम होने लगती है और साथ में वनस्पतियों के पनपने की रफ्तार भी कम हो जाती है। फिर, इन वनस्पतियों पर पनपने वाली अन्य प्रजातियां भी प्रभावित होने लगती हैं।
दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में स्थित कंगारू आइलैंड कोआला प्रजाति के लिए स्वर्ग था, पर अब इसके 155000 हेक्टेयर क्षेत्र में आग लग चुकी है। एक स्थानिक चिड़िया, कोक्कतू, पहले से ही विलुप्त हो रही थी। 1990 के दशक में इनकी संख्या 150 तक रह गयी थी, फिर अनेक प्रयासों के बाद इनकी संख्या किसी तरह 400 तक पहुंची। पर इस बार की आग में इनके पूरी तरह से विलुप्त हो जाने की संभावना है। आग जिस समय शुरू हो रही थी, वह समय मादा कोक्कतू के अंडे देने और फिर उन्हें सेने का समय था। अधिकतर मादा आग की भेंट चढ़ गयीं और जो बहसें हैं उनका वातावरण और भोजन का साधन नष्ट हो चुका है।
मानव की हरेक गतिविधियां, दूसरे जन्तुओं और वनस्पतियों को प्रभावित करती रही हैं, पर तापमान वृद्धि तो पूरी दुनिया को प्रभावित कर रहा है। ऑस्ट्रेलिया की आग इसका एक और उदाहरण है, पर अफसोस यह है कि हम इसे रोकने की नहीं बल्कि हालात और बिगाड़ने की ओर लगातार बढ़ रहे हैं।
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