श्रीराम के लिए तो भेदभाव, बैर और नफरत की भावना असहनीय थी, फिर उनके नाम पर नफरत की सियासत क्यों !
मानस में श्रीराम का जो चरित्र बताया गया है, उसमें बार-बार कहा गया है कि वे दुख मिटाने वाले और करुणा के सागर थे। उनके चरित्र का जो वर्णन किया गया है, उससे स्पष्ट हो जाता है कि जनसाधारण के प्रति किसी प्रकार के भेदभाव, बैर, नफरत की भावना उनके लिए असहनीय थी।
इन दिनों सांप्रदायिक ताकतें एक बार फिर नये सिरे से अयोध्या विवाद को भड़का रही हैं। यह बहुत दुखद है, क्योंकि श्रीराम की तो पूरी कथा ही सांप्रदायिकता की सोच के विरुद्ध है।
रामचरित मानस के उत्तरकांड में नगरवासियों की सभा में गुरुजनों, मुनियों की उपस्थिति में भगवान राम द्वारा कहे गए उपदेश वचन दिये गए हैं। इनमें बताया गया है कि भक्त में कौन से गुण आवश्यक हैं और कौन सी बातों से भक्त को दूर रहना चाहिए। राम कहते हैं, “कहो तो भक्ति में कौन सा परिश्रम है? इसमें न योग की आवश्यकता है, न यज्ञ, तप, जप और उपवास की। यहां इतनी ही आवश्यकता है कि सरल स्वभाव हो, मन में कुटिलता न हो और जो कुछ मिले उसी में सदा संतोष हो।” भक्त किन बुराइयों से दूर रहे, इस बारे में स्पष्ट कहा गया है, “न किसी से बैर करे, न लड़ाई-झगड़ा करे।” सबसे महत्त्वपूर्ण तो इससे अगली चैपाई है जिसमें राम कहते हैं, “संतजनों के संसर्ग (सत्संग) से जिसे सदा प्रेम है, जिसके मन में सब विषय यहां तक कि स्वर्ग और मुक्ति तक (भक्ति के सामने) तृण के समान हैं, जो भक्ति के पक्ष में हठ करता है, पर (दूसरे के मत का खंडन करने की) मूर्खता नहीं करता तथा जिसने सब कुतर्कों को दूर बहा दिया है, वह सच्चा भक्त है।”
तुलसीदास धर्म और अधर्म की व्याख्या इस प्रकार करते हैं- ‘पर हित सरिस धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधमाई।’
अर्थात दूसरे के हित के समान धर्म नहीं है। अतः स्पष्ट है कि जो नफरत की विचारधारा फैला कर दंगे कराते हैं, ऐसे दंगे जिनमें हजारों लोगों को कष्ट होता है वे गोस्वामीजी की मान्यता के अनुसार सबसे बड़ा अधर्म करते हैं।
एक दूसरी जगह तुलसीदास लिखते हैं, ‘सियाराम मय सब जग जानी, करहूं प्रणाम जोर जुग पानी।’
अर्थात सीता और राम को मैंने समस्त प्राणीमात्र में जाना है, उसी प्राणीमात्र को मैं दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम करता हूं। जो सीताराम के नाम का उपयोग किसी समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए करते हैं, उन्हें ये शब्द ध्यान से पढ़ लेने चाहिए।
यह स्पष्ट है कि अपने धर्म में आस्थावान लोगों और भक्तों की जो व्याख्या मानस में की गई है, उसमें दूसरे धर्मों या मतों के प्रति विरोध या बैर का थोड़ा सा भी स्थान नहीं है। सच्चा आस्थावान और भक्त व्यक्ति वही बताया गया है जो बैर और विरोध की भावनाओं से मुक्त हो।
श्रीराम का मानस में जो चरित्र बताया गया है, उसमें बार-बार कहा गया है कि वे दुख मिटाने वाले और करुणा के सागर थे। उनके चरित्र का जो वर्णन किया गया है, उससे स्पष्ट हो जाता है कि जनसाधारण के प्रति किसी प्रकार के भेदभाव, बैर, नफरत की भावना उनके लिए असहनीय थी। उन्हें ‘क्रोध और भय का नाश करने वाला तथा सदा क्रोध रहित कहा गया है’। उनके नाम को सब भयों का नाश करने वाला और बिगड़ी बुद्धि को सुधारने वाला बताया गया है। उनके नाम को ‘उदार नाम’ और ‘कल्याण का भवन’ भी कहा गया है। सुन्दर कांड में उनके स्वभाव को ‘अत्यंत ही कोमल’ बताया गया है। श्री राम के ऐसे चरित्र को किसी सांप्रदायिक सोच या प्रचार से जोड़ा जाए, यह सुबुद्धि के बाहर है।
जिन बातों का इतिहासकारों के अनुसार कोई आधार नहीं है, उसका दुरुपयोग परस्पर द्वेष फैलाने के लिए करने वाले लोग गोस्वामी तुलसीदास के ये शब्द (मानस में लिखे गये) भूल गए हैं- ‘असत्य बोलने में जो पाप है तमाम पहाड़ों का झुंड भी उससे कम है।’ इन लोगों के बारे में हमें ‘मानस’ के यही शब्द ध्यान में आते हैं- ‘देखने में तो सुन्दर हैं (धार्मिक बातें करते हैं) परन्तु मन गंदा है जैसे कि विष से भरा घड़ा।’
कुछ लोग जो भाईचारे की बातें करते रहे हैं वे भी इन दुष्टों के साथ हो लिये हैं। उनसे हम मानस के शब्दों में पूछना चाहते हैं -
‘खल मंडली बसहू दिन राती,
सखा धर्म निबहई केहि भांति।’
अर्थात् दिन रात दुष्टों की संगति में रहते हो तो तुम्हारा धर्म कैसे निभता है। ऐसे लोगों से तो दूर रहना ही धर्मोचित है। मानस के शब्दों में-
‘आगे कह मृद वचन बनाई।
पीछे अनहित मन कुटिलाई।
जाकर चित अहि गति सम भाई।
अस कुमति परिहरेहि भलाई।’
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
- Communalism
- Lord Ram
- Ayodhya Dispute
- अयोध्या विवाद
- सांप्रदायिकता
- भगवान राम
- RamCharitmanas
- Life Story of Lord Ram
- Tulsidas
- राम चरितमानस
- भगवान की जीवन कथा
- तुलसीदास