किसान आंदोलनः यारी-दोस्ती वाले पूंजीवाद के खिलाफ सीधी लड़ाई, दो सबसे धनी उद्योगपतियों के लिए गंभीर चुनौती
माना जाता है कि कृषि उपज क्षेत्र में पैर जमाने के लिए अडानी समूह ने 2019 में बड़ी संख्या में कंपनियां रिजस्टर कराई हैं। वैसे भी, गौतम अडानी ने तो जिंसों में कारोबार शुरू भी कर दिया है। फोर्ब्स का आकलन है कि अडानी की कुल संपत्ति 28.7 बिलियन डॉलर है।
भारत में राजनीतिक के साथ-साथ आर्थिक सत्ता को भी कुछ ही हाथों में दे दिए जाने की बातों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान खींचा है। भारत सत्ता के करीबी पूंजीवादियों के वैसे उभार का रूसी उदाहरण जैसा बनता दिख रहा है, जहां राष्ट्रीय पूंजी को किनारे कर दिया गया था और कुछ पूंजीपति ही राजनीतिक सत्ता को नियंत्रित कर रहे थे, जिससे सत्ता कुछ ही लोगों तक सीमित हो गई।
अंग्रेजी के आर्थिक अखबार फाइनांशियल टाइम्स ने पिछले महीने गौतम अडानी को ‘मोदी का रॉकफेलर’ कहा। रॉकफेलर अमेरिका के सबसे बड़े बिजनेसमैन थे और माना जाता है कि उनकी जितनी धन-संपदा थी, उतनी आज तक किसी की नहीं हुई। अखबार ने मोदी शासन के दौरान अडानी की आकाश छूती बुलंदी का उल्लेख किया। और moneylife. in में वरिष्ठ पत्रकार बीनू एस थॉमस की मुकेश अंबानी को लिखी खुली चिट्ठी में रिलायंस इंडस्ट्री की एकाधिकार हासिल करने वाली प्रवृत्तियों के बारे में बताया गया।
उन्होंने विस्तार से बताया कि क्यों वह रिलायंस के उत्पादों और सेवाओं का उपयोग करना छोड़ रहे हैं। थॉमस ने लिखा कि रिलायंस ने निश्चित तौर पर बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार दिया है, सरकार के लिए धन और राजस्व पैदा किया है, लेकिन यही पर्याप्त नहीं है। उन्होंने लिखा कि ‘रिलायंस जैसे बड़े बिजनेस के लिए यह सुनिश्चित करना विशेष दायित्व है कि बाजार में काम करने का उसका तरीका उचित हो और वह दीर्घ अवधि वाले उपभोक्ता को प्रोत्साहित करे और सबसे महत्वपूर्ण बात कि वह राष्ट्रीय हित के लिए हो।’
उन्होंने कंपनी के कमतर आचार-व्यवहार को रेखांकित किया। उन्होंने लिखा कि ‘मैं अब रिलायंस डिजिटल से इलेक्ट्रिकल सामान या रिलायंस रिटेल या जियोमार्ट से किराने का सामान या रिलायंस पेट्रोलियम आउटलेट से तेल भरवाने नहीं जा रहा हूं। मैं नेटवर्क-18 के जरिये रिलायंस के नियंत्रण वाले किसी भी 71 टेलीविजन चैनल को देखने से अपने को यथासंभव दूर रखूंगा और उस आंकड़े में शामिल नहीं होऊंगा, जिसमें आपने 2019 रिलायंस एजीएम बयान में दावा किया था कि देश में इसके 80 लाख दर्शक या टेलीविजन देखने वाले 95 प्रतिशत लोग हैं। मेरे जिओ वाई-फाई कनेक्शन जिसकी अवधि अगले महीने समाप्त हो रही है, का नवीकरण नहीं किया जाएगा। आप समझें कि मैं सभी रिलायंस बिजनेस से बाहर निकल रहा हूं... ।’
कृषि कानूनों का संदर्भ देते हुए थॉमस ने कहा कि ‘...सैद्धांतिक तौर पर कहूं, तो यह किसानों के लिए बुरा विचार नहीं है, सिवाय इसके कि व्यवहार रूप में रिलायंस- जैसे बड़े व्यापारी प्रभावी तौर पर खुद के लिए कीमतें तय करेंगे और कुछ समय बीतने के बाद दूसरी जगहों पर बेहतर कीमतें पाने का उनका विकल्प काफी कम कर देंगे... दो अन्य कानून- पहला, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देने वाला और दूसरा, अनाज, दाल, तेल और प्याज-जैसे रोजाना के कई जरूरी सामान को जमा करने की सीमा हटाने वाला, भी अन्य किसी से भी ज्यादा रिलायंस जैसे बड़े व्यापारियों को लाभ पहुंचाएंगे।’
उन्होंने अंत में लिखा कि ‘लेकिन मुझे उम्मीद है और मैं प्रार्थना करता हूं कि एक चतुर शक्तिशाली बिजनेसमैन के तौर पर आप समझेंगे- शायद बिल्कुल शांत क्षणों में- कि आपके व्यापार के दीर्घ-अवधि हित इस बात से नहीं बंधे हैं कि वे कितने बड़े और शक्तिशाली बन गए हैं, बल्कि आपके व्यापार की महत्वाकांक्षाओं के मेहराब बनाने के लिए कितने ज्यादा लोग अब भी गरीब हैं और विकासशील देश को कितनी कीमत चुकानी पड़ी है।’
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फाइनेंशियल टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया है कि नीतिगत बदलावों के कारण अडानी समूह को कम समय में तेजी से बढ़ने में मदद मिली। रिपोर्ट कहती है, ‘भारत सरकार ने 2018 में जब छह हवाई अड्डों के निजीकरण का फैसला किया तो उसने प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए कई तरह के नियमों में ढील दे दी, जिसके कारण वैसी कंपनियां भी निविदा के लिए योग्य हो गईं जिनके पास उस क्षेत्र का कोई अनुभव नहीं था। नियमों को बदलने का सबसे ज्यादा फायदा गौतम अडानी को हुआ, जिनके पास हवाई अड्डों के संचालन का कोई अनुभव नहीं था और सारे हवाई अड्डों का संचालन का काम उन्हें ही मिला।’
जिस तरह यह ठेका अडानी के हवाले किया गया, उस पर हाय-तौबा मची और केरल के वित्त मंत्री ने तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे को 50 साल की लीज पर अडानी समूह को दिए जाने पर आपत्ति जताई। हालांकि नागरिक उड्डयन मंत्री ने इन आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि बोली लगाने की प्रक्रिया बिल्कुल पारदर्शी तरीके से हुई। एफटी की रिपोर्ट ने टिप्पणी की- ‘इस तरह अडानी समूह रातों रात देश का सबसे बड़ा निजी एयरपोर्ट ऑपरेटर बन गया।’ समाचारपत्र ने ऑस्ट्रेलिया के विश्लेषक टिम बकली को हवाले से कहा, ‘गौतम अडानी बड़े ताकतवर हैं। उनके बड़े सियासी संपर्क हैं जिन्हें भुनाना उन्हें बखूबी आता है।... वह मोदी के रॉकफेलर हैं।’
देश का सबसे बड़ा निजी एयरपोर्ट ऑपरेटर होने के अलावा अडानी समूह कोयले से बिजली बनाने में भी अव्वल है। समूह का काम विविधतापूर्ण है। भारत के बिजली पारेषण और गैस वितरण से लेकर विभिन्न क्षेत्रों में समूह तेजी से बढ़ रहा है और माना जाता है कि कृषि उपज क्षेत्र में पैर जमाने के लिए इसने वर्ष 2019 में बड़ी संख्या में कंपनियां रजिस्टर कराईं। बल्कि गौतम अडानी ने तो जिंसो में कारोबार शुरू भी कर दिया है। ऐसा लगता है कि उन्हें पहले से अंदाजा था कि सरकार किस तरह के कृषि अध्यादेश लाने जा रही है। किसानों द्वारा रिलायंस और अडानी के उत्पादों के बहिष्कार के आह्वान को देश के इन दो सबसे धनी उद्योगपतियों के लिए पहली गंभीर चुनौती माना जा सकता है।
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