पूंजीपतियों के कारनामे: टैक्स चोरी को लेकर नई रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे!
याद कीजिये गौतम अडानी पर ऐसे ही आरोप लगे थे। इस साल जनवरी में आई हिंडनवर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि गौतम अडानी ग्रुप की कंपनियों के शेयरों के भाव बढ़ाने के लिए शेल कंपनियों से शेयरों की खरीदारी की जाती है या उनमें निवेश किया जाता है।
पूरी दुनिया में पूंजीपतियों द्वारा टैक्स चोरी की लगातार चर्चा की जाती है, पर इन्हीं पूंजीपतियों के पैसे से सत्ता तक पहुँचाने वाली सरकारें इसपर कोई कार्यवाही नहीं करती। भारत में विदेशों से पूंजीपतियों का काला धन लाने का दावा करने वाली बीजेपी सरकार तो स्वयं पूरी तरह से पूंजीपतियों के कारनामों को बचाने में लिप्त है। पंद्रह लाख रुपये तो किसी के खाते में नहीं आये, पर प्रधानमंत्री मोदी के पूंजीपतियों के घनिष्ठ रिश्तों का खुलासा लगातार होता रहा है। अडानी पर संसद में आवाज उठाने पर राहुल गाँधी की संसद सदस्यता ही छीन ली गयी थी, और अब संसद महुआ मोइत्रा को देश के लिए खतरा बताया जा रहा है। इन सबके बीच अडानी और अंबानी के मुनाफे में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है।
हाल में ही पेरिस स्थित ईयू टैक्स ऑब्जर्वेटरी नामक संस्था ने पहला टैक्स इवेजन रिपोर्ट, यानि टैक्स चोरी रिपोर्ट प्रकाशित किया है। इसके अनुसार अधिकतर अरबपति टैक्स चोरी या फिर इसे बचाने के लिए शेल कंपनियों का सहारा लेते हैं। यह परम्परागत टैक्स कानूनों के दायरे में नहीं आता। इसमें कहा गया है कि दुनिया के लगभग 3000 अरबपतियों से कम से कम 2 प्रतिशत संपत्ति कर की वसूली की जानी चाहिए। अधिकतर अरबपति टैक्स की चोरी में संलग्न हैं और इस दौरान वे सभी कानूनी सीमाएं लांघ जाते हैं। दुनिया के सबसे धनाढ्य अपनी कुछ आमदनी, जिसमें शेयर्स के डिविडेंड भी शामिल हैं, को कुछ अनाम या गुमनाम सी होल्डिंग कंपनियों में, जिन्हें शेल कंपनियां कहा जाता है, निवेश कर देते हैं। ये शेल कंपनियां धनाढ्यों के नजदीकियों, रिश्तेदारों के नाम होती हैं, और इनका टैक्स चोरी में मदद के अलावा कोई काम नहीं होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि शेल कंपनियां भले ही कानूनी प्रक्रियाओं के दायरे में आती हों, पर क्योंकि इनका टैक्स चोरी के अलावा कोई दूसरा काम नहीं होता, इसलिए ऐसी कंपनियां अवैध या गैर-कानूनी ही कही जायेंगी।
इस रिपोर्ट में पूंजीपतियों का नाम तो नहीं है, पर याद कीजिये गौतम अडानी पर ऐसे ही आरोप लगे थे। इस साल जनवरी में आई हिंडनवर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि गौतम अडानी ग्रुप की कंपनियों के शेयरों के भाव बढ़ाने के लिए शेल कंपनियों से शेयरों की खरीदारी की जाती है या उनमें निवेश किया जाता है। अब जॉर्ज सोरोस के बैकअप वाली ओसीसीआरपी की लेटेस्ट रिपोर्ट में कहा गया है कि अडानी ग्रुप अपने कंपनियों के शेयरों के भाव बढ़ाने के लिए ऑफशोर शेल कंपनियों की फंडिंग का इस्तेमाल करता है। फाइनैंशल टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑफशोर शेल कंपनियां अडानी ग्रुप के शेयरों में सीक्रेट इन्वेस्टमेंट कर उसके भाव में बदलाव करने में बड़ी भूमिका निभाती हैं। इन शेल कंपनियों का भारत के दिग्गज उद्योगपति गौतम अडानी से संबंध है।
इस रिपोर्ट के अनुसार पूंजीपतियों द्वारा आय कम बताने के कारण उनकी संपत्तियों पर औसतन 0 से 0.6 प्रतिशत ही प्रभावी टैक्स चुकाना पड़ता है, जबकि पूरी ईमानदारी से टैक्स चुकाने वाले अरबपतियों को अपनी संपत्ति पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से 20 से 50 प्रतिशत तक टैक्स चुकाना पड़ता है। रियल एस्टेट में निवेश भी टैक्स में हेरा-फेरी का एक प्रचलित माध्यम बन गया है। दुबई और लन्दन जैसे शहरों में और आसपास के क्षेत्रों में रियल एस्टेट में विदेशियों द्वारा निवेश तेजी से बढ़ता जा रहा है। दुबई में रियल एस्टेट में जितना विदेशियों का निवेश है, उसमें से सर्वाधिक 20 प्रतिशत निवेश, भारतीयों का है। दुनिया के लगभग 100 देशों के बीच एक समझौते के तहत बैंकिंग की सूचनाओं का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जिससे टैक्स चोरी पर लगाम लगाया जा सके पर टैक्स चोरी में मदद करने वाली शेल कंपनियां और रियल एस्टेट परियोजनाएं इस दायरे से बाहर हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले वर्ष ब्राज़ील में होने वाले जी20 समूह की बैठक में अरबपतियों पर 2 प्रतिशत संपत्ति कर लगाने का सुझाव प्रस्तुत किया जाएगा।
इस रिपोर्ट की भूमिका को शुरू करते हुए प्रख्यात अर्थशास्त्री जोसफ स्तिग्लित्ज़ ने वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रेंकलिन का एक उद्धरण प्रस्तुत किया है – इस दुनिया में मृत्यु और टैक्स को छोड़कर कुछ भी निश्चित नहीं है। दुनिया के अरबपतियों ने अमरता तो नहीं हासिल की है, पर टैक्स-चोरी के तरीके जरूर सीख गए हैं। अमेरिका के एक न्यायाधीश जेरोम होल्म्स ने कहा था कि ईमानदारी से टैक्स चुकाना सभ्य समाज की निशानी है, यह प्रजातंत्र का केंद्र है और यही तय करता है कि हम समाज के लिए क्या करना चाहते हैं, और किस तरह से समाज में असमानता को ख़त्म करना चाहते हैं।
पूंजीपतियों का लालच और तमाम गोरखधंधे ही दुनिया के तमाम समस्याओं का कारण है। जिनके नाम पनामा पेपर्स और पेन्डोरा पेपर्स में आते है, वही दुनिया में आर्थिक और सामाजिक असमानता बढ़ा रहे हैं, दुनिया को अस्थिर बना रहे हैं, प्राकृतिक संसाधनों को लूट रहे हैं और तापमान बुद्धि भी कर रहे हैं। पूंजीपति ही सत्ता में भी काबिज हैं। अब चुनाव केवल पैसों के बल पर लड़ा जाता है और पूंजीपति ही चुनावों के परिणामों को नियंत्रित करते हैं।
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