CAA-NRC पर मोदी-शाह के भ्रामक बयानों से बढ़ा असंतोष, क्या 2020 बनेगा आंदोलनों का साल!

देशभर में कड़ाके की ठंड के बावजूद आम लोग सड़कों पर हैं। विशेषज्ञों की नजर में देश के कई भाग में छात्रों-युवाओं का विरोध में सड़कों पर आना और बीजेपी विरोधी सियासी दलों के बीच मतभेदों की खायी पटना बता रहा है कि आने वाले समय में जनांदोलनों का दौर तेज होना तय है।

फोटोः सोशल मीडिया
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उमाकांत लखेड़ा

जामिया मिल्लिया इस्लामिया से लेकर जेएनयू और असम से लेकर पश्चिम बंगाल तक नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में सड़कों पर प्रदर्शन लगातार जारी है। मोदी सरकार बचाव में जितनी ज्यादा दलीलें दे रही है, उतनी ही उसकी दुश्वारियां बढ़ती जा रही हैं। विश्वविद्यालयों के छात्रों और युवाओं में असंतोष थमने का नाम नहीं ले रहा और पुलिस ज्यादतियों से देश भर में कड़ाके की सर्दी के बावजूद आम लोग सड़कों पर हैं। विशेषज्ञों की नजर में देश के कई भागों में छात्रों-युवाओं का विरोध में सड़कों पर आना और बीजेपी विरोधी सियासी दलों के बीच मतभेदों की खायी पटने से साफ संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले दिनों में जनांदोलनों का दौर तेज होना तय है।

उत्तर प्रदेश अकेला ऐसा बड़ा प्रदेश है, जहां खास तौर पर पश्चिमी यूपी के बिजनौर, मुजफ्फरनगर, हापुड़, रामपुर, फिरोजबाद, गाजियाबाद, कानपुर, लखनऊ, वाराणसी समेत कई शहरों में सरकारी मशीनरी की विभाजनकारी नीतियों के खिलाफ आम लोगों में असंतोष की आग सुलग रही है। जवाहरलाल नेहरू विवि के प्रोफेसर कमल मित्र चिनॉय मानते हैं कि सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ प्रतिरोध देशव्यापी जनांदोलनों का रूप ले रहा है। सरकार की भरसक कोशिशों के बावजूद लोग स्वतः स्फूर्त तरीके से एकजुट हो रहे हैं। मौजूदा दौर में विपक्षी पार्टियों की एकता पर वह जोर दे रहे हैं।


जेएनयू के अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर प्रवीण झा कहते हैं, “जन असंतोष के पीछे आर्थिक मोर्चे पर लगातार नकारात्मक परिणाम आना, एक बड़ी वजह है कि लोगों का सब्र टूट रहा है।” बकौल उनके पीएम मोदी जरूर महानायक होने का दंभ अब भी भर रहे हैं, लेकिन नोटबंदी से लेकर जीएसटी और अब लोगों के गुस्से को कम करने के लिए नए जीएसटी ड्राफ्ट की जो बातें हो रही हैं, उससे साफ है कि सरकार और उसकी नीतियों का समर्थन करने वालों को अब जाकर अहसास हुआ है कि अर्थव्यवस्था को मुंह के बल गिराने के पीछे कितनी बड़ी गलतियां हुई हैं।

एनआरसी के विरुद्ध देशव्यापी प्रतिरोध की आने वाले दौर में क्या परिणति हो सकती है, इस सवाल पर दिवंगत पूर्व पीएम राजीव गांधी की कैबिनेट के सहयोगी रहे प्रोफेसर के के तिवारी कहते हैं, “जो हालात बन रहे हैं, उससे समाज के हर तबके में असंतोष है। महाराष्ट्र के बाद झारखंड में सरकार गंवाने के बाद पीएम मोदी और अमित शाह के सारे जुमले खत्म हो चुके हैं, इसलिए एनआरसी के बहाने मुस्लिम समुदाय को टारगेट किया जा रहा है।” बकौल उनके, बेरोजगारी बढ़ने और बड़े पैमाने पर रोजगार छिनने के साथ ही जीडीपी की गिरावट के इतर पूरी दुनिया में भारत की छवि खराब हुई है। प्रोफेसर तिवारी मानते हैं कि 2020 के लिए आंदोलन की नींव 2019 के आखिर में ही पड़ चुकी है। 2020 को भारत में आंदोलनों के साल के तौर पर याद किया जाएगा।

देश के मौजूदा हालात के लिए मोदी सरकार को सीधे तौर पर जिम्मेदार मानते हुए स्वराज अभियान के संयोजक योगेंद्र यादव कहते हैं, “पहली बात तो यह है कि खुद मोदी जी ने जानबूझकर भ्रामक बयान देकर हालात बिगाड़े। अगर पीएम की मंशा वाकई में शांति कायम करने की होती तो उन्हें यह बयान देना चाहिए था कि सरकार एनआरसी को कतई लागू नहीं करेगी। वे शंकाओं और भय पैदा कर लोगों को उकसाने के लिए सरकार को ही सीधे दोषी मानते हैं।”

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