गलत था योजना आयोग को खत्म करने का फैसला
योजना आयोग को ही समाप्त कर दिया गया, पंचवर्षीय योजनाओं को ही समाप्त कर दिया गया। इस तरह आजादी के बाद जो योजनाबद्ध विकास का ढांचा तैयार किया गया था, उसी पर प्रहार कर उसे समाप्त कर दिया गया।
धीरे-धीरे यह बहुत स्पष्ट हो गया है कि मोदी सरकार के एक प्रमुख आर्थिक निर्णय नोटबंदी का कोई औचित्य नहीं था और लोगों के लिए दैनिक जीवन में बहुत कठिनाईयां उपस्थित करने के अतिरिक्त इसने अर्थव्यवस्था की भी काफी क्षति की। दूसरी ओर मोदी सरकार के एक अन्य प्रमुख निर्णय योजना आयोग की समाप्ति के बारे में अभी जनमत इतने स्पष्ट तौर पर नहीं बन सका है।
सच्चाई तो यह है कि दीर्घकालीन संतुलित विकास की दृष्टि से देखें तो योजना आयोग को समाप्त करने का निर्णय भी अर्थव्यवस्था के लिए बहुत हानिकारक रहा है। सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने जिस जल्दबाजी में योजना आयोग को समाप्त किया, उससे तो लगता है जैसे किसी षड़यंत्र की तरह योजना आयोग को समाप्त किया गया। वह भी ऐसे समय में जब योजना आयोग की जरूरत पहले से और बढ़ रही थी।
जलवायु बदलाव और अप्रत्याशित मौसम के कारण देश ऐसे दौर से गुजर रहा है जिसमें विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका पहले से और अनिश्चित हो गई है। सूखे, बाढ़, चक्रवात जैसी आपदाएं भी पहले से और विकट हो रही हैं।
दूसरी ओर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अधिक पेचीदी होती आर्थिक स्थितियों के कारण व्यापार और निवेश के क्षेत्र में और आर्थिक अपराधों को नियंत्रित करने के क्षेत्र में कई बड़ी चुनौतियां सामने आ रही हैं।
मौजूदा दौर में अर्थव्यवस्था को कम नियोजन की नहीं अपितु पहले से बेहतर नियोजन की जरूरत है। अतः होना तो यह चाहिए था कि योजना आयोग को पहले से और मजबूत किया जाता और पंचवर्षीय योजनाओं के कार्य को भी और सुधारा जाता।
ऐसा करने के स्थान पर एक बहुत अजीब निर्णय लिया गया कि योजना आयोग को ही समाप्त कर दो, पंचवर्षीय योजनाओं को ही समाप्त कर दो। इस तरह आजादी के बाद जो योजनाबद्ध विकास का ढांचा तैयार किया गया था, उसी पर प्रहार कर उसे समाप्त कर दिया गया।
यहां तक कि इसके लिए कोई राष्ट्रीय विमर्श नहीं किया गया, विशेषज्ञों से परामर्श नहीं किया गया, इतने बड़े निर्णय का औचित्य तय करने वाली कोई प्रामाणिक रिपोर्ट देश के लोगों के सामने नहीं आई। कम से कम लोगों को पता तो चलता कि आखिर किस आधार पर इतना बड़ा निर्णय लिया गया। इस निर्णय में और इस निर्णय की प्रक्रिया में न तो पारदर्शिता थी और न ही भागीदारी, अपितु यह तो बहुत मनमाने ढंग से लिया गया और बहुत जल्दबाजी में लिया गया।
इसके बाद अर्थव्यवस्था में और आर्थिक नीतियों में जो भटकाव आ रहे हैं उसकी एक वजह यह भी है कि अब योजना आयोग नहीं है, योजनाबद्ध विकास की तमाम प्रक्रियाएं नहीं हैं।
हालांकि योजना आयोग को समाप्त करने का निर्णय बहुत अनुचित था और इससे अल्पकालीन और दीर्घकालीन दोनों स्तरों पर बहुत क्षति हुई है। पर विविध कारणों से इस मुद्दे पर उतनी चर्चा नहीं हो सकी जितनी होनी चाहिए थी। अतः अब यह जरूरी है कि योजना आयोग और पंचवर्षीय योजनाओं के महत्त्व पर परिपक्व चर्चा हो ताकि इनके महत्त्व को अधिक व्यापक स्तर पर समझा जाए। यदि देश में योजनाबद्ध विकास और पंचवर्षीय का दौर नए सिरे से आरंभ हो सके तो हमारे अल्पकालीन विकास और उससे भी अधिक दीर्घकालीन विकास को इससे बहुत सहायता मिलेगी।
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