कर्ज पर निर्भर रेलवे भी एयर इंडिया की राह पर, चक्रव्यूह जैसे हालात से कैसे निकला जाए, किसी को समझ नहीं आ रहा
रेल भवन में तमाम बड़े अधिकारियों, तकनीकी विशेषज्ञों की फौज मौजूद है। वहां 150 से ज्यादा संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी और प्रोफेशनल हैं। बावजूद इसके रेलवे पर शिकंजा कसती समस्याओं से वे मुंह फेरे रहे और रेलवे के कोर बिजनेस के गिरने को नजरअंदाज करते रहे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने जब अलग से सालाना रेलवे बजट पेश करने की 93 साल पुरानी परंपरा को तोड़कर 1 फरवरी, 2017 को पेश आम बजट में ही इसे समाहित किया तो उम्मीद जगी थी कि सरकार रेलवे के बारे में नए तरीके से सोचेगी। साल 2016-17 के रेल बजट में रेलवे के भविष्य की रूपरेखा खींची गई थी। उदाहरण के लिए, इसमें विश्वसनीय सेवा गारंटी के साथ समयसारिणी के तहत मालगाड़ियों को चलाना, मालगाड़ियों की औसत स्पीड 23.7 किलोमीटर प्रतिघंटा के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 50 किलोमीटर प्रतिघंटा करना, मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों की औसत गति 60 किलोमीटर प्रतिघंटा के स्तर से बढ़ाकर 80 किलोमीटर प्रतिघंटा करना, स्वर्णिम चतुर्भुज के साथ-साथ सेमी हाईस्पीड ट्रेनें चलाना जैसी तमाम बातें की गई थीं, जो काफी उम्मीदें जताने वाली थीं। लेकिन ये सारी बातें खोखली ही साबित हुईं।
निम्न विकास दर और संसाधनों के संकट ने रेलवे को एयर इंडिया की राह पर ला खड़ा किया है। एक चक्रव्यूह सी स्थिति तैयार हो गई है जिससे कैसे निकला जाए, किसी को समझ नहीं आ रहा। रेल भवन में तमाम बड़े अधिकारियों, तकनीकी विशेषज्ञों की फौज है। वहां 150 से ज्यादा संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी और प्रोफेशनल हैं। बावजूद इसके रेलवे पर शिकंजा कसती समस्याओं से वे मुंह फेरे रहे और रेलवे के कोर बिजनेस के गिरने को नजरअंदाज करते रहे।
रेलवे की माल ढुलाई के एनटीकेएम (नेट टन-किलोमीटर) में सालाना वृद्धि दर केवल 0.26 प्रतिशत रही। 2014 से 2019 के पांच वर्षों के दौरान यात्री परिवहन यानी पीकेएम (पर्सन किलोमीटर) में सालाना वृद्धि दर 0.53 प्रतिशत रही। इससे भी चिंताजनक है रेलवे के कुल राजस्व में सालाना वृद्धि का 4.09 प्रतिशत रहना जबकि इसके कार्यशील व्यय में सालाना वृद्धि 5.54 प्रतिशत की रही। यानी कमाई से ज्यादा खर्च।
वित्तीय वर्ष 2019-2020 की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) के दौरान रेलवे का प्रदर्शन भी कोई उत्साहजनक नहीं रहा। बजट अनुमान की तुलना में माल ढुलाई से प्राप्त राजस्व में 16.97 और यात्री किराये से प्राप्त राजस्व में 5.3 प्रतिशत की कमी रही। इस तरह बजट अनुमानों की तुलना में इस अवधि के दौरान कुल राजस्व में 14.54 प्रतिशत की गिरावट आई, लेकिन चिंता की बात है कि इसी अवधि के दौरान कार्यशील खर्चे बजट अनुमान की तुलना में 4.15 फीसदी बढ़ गए। रेलवे की खराब होती वित्तीय हालत के बारे में 2019 की कैग रिपोर्ट में भी कहा गया है।
सीएजी रिपोर्ट में उदाहरण के तौर पर संचालन अनुपात के आंकड़ों का उल्लेख किया गया है। 2017-18 में यह अनुपात 98.44 प्रतिशत रहा। यानी सौ रुपये कमाने के लिए रेलवे 98.44 रुपये खर्च कर रहा है और यह स्तर पिछले 10 वर्षों में सबसे खराब है। अब रेलवे ऐसी जुगत कर रहा है कि संचालन अनुपात का आंकड़ा कम डरावना लगे। इसके लिए कुछ मदों के आंकड़ों को इधर से उधर किया जा रहा है। सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014-15 के दौरान इसके कुल पूंजीगत खर्चे में आंतरिक संसाधनों की हिस्सेदारी 26.14 प्रतिशत थी जो 2017-18 में घटकर सिर्फ 3.01 प्रतिशत रह गई।
वहीं 2019-20 के बजट अनुमान में कुल परिव्यय 1,60,175.64 करोड़ रहा जो किसी एक साल में अब तक का सबसे ज्यादा खर्च है। इसमें 65,837 करोड़ बजटीय समर्थन से मिले, 10,500 करोड़ का इंतजाम आंतिरक संसाधनों से हुआ और 83,571 करोड़ अन्य संसाधनों से। रेलवे में जिस तरह से ऋण पर निर्भरता बढ़ती जा रही है, आने वाले समय में उसकी माली हालत के और खराब हो जाने का अनुमान है। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में आगाह किया है कि यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान इस मद में 11,489 करोड़ का प्रावधान किया गया जो कार्यशील व्यय का 5.6 प्रतिशत है।
अब बात रेलवे के कोर बिजनेस की। रेलवे रोजाना लगभग 20 हजार ट्रेनें चलाता है और इसमें ढुलाई की हिस्सेदारी 35 फीसदी है, लेकिन इससे रेलवे को राजस्व का 75 फीसदी हिस्सा मिलता है। दिक्कत की बात यह है कि यात्री किराये को कम रखने के लिए माल ढुलाई को ज्यादा रखने की अतार्किक नीति के कारण माल ढुलाई बाजार में भी रेलवे गैर-प्रतिस्पर्धी होता जा रहा है और अपेक्षाकृत सस्ता सड़क परिवहन उसके बिजनेस को प्रभावित कर रहा है।
अब बात श्रेणी वार यात्रा किराये और इसके विभिन्न आयामों की। हाल ही में रेलवे ने यात्री किराये में इजाफा किया, जिसको लेकर तमाम हो-हल्ला हो रहा है, लेकिन यह सही नहीं। इससे रेलवे को सालाना अतिरिक्त 2,000 करोड़ ही मिलेंगे जबकि पैसेंजर बिजनेस में रेलवे को सालाना 35-40 हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है। इस नुकसान में भी सामान्य स्लीपर क्लास और रेलवे की उपनगरीय सेवा की भागीदारी सबसे अधिक है और हालिया किराया वृद्धि में इस सेगमेंट को अनछुआ ही रखा गया, जिस कारण रेलवे की आर्थिक सेहत पर अधिक असर नहीं पड़ा।
ऊंची श्रेणी यानी एसी-फर्स्ट, सेंकंड, थर्ड और एसी चेयर कार मिलाकर भी यात्रा करने वालों का प्रतिशत कुल यात्रियों की तुलना में केवल 2 फीसदी है। सबसे ज्यादा 4 पैसे प्रति किलोमीटर का इजाफा इसी सेगमेंट में हुआ है लेकिन इसकी अपनी अलग स्मस्या है। रेलवे के एसी सफर को चुनौती सस्ती हवाई यात्रा से मिल रही है। रेलवे की आर्थिक मुसीबतों का मुख्य कारण यह है कि सामान्य श्रेणी और उपनगरीय सेवा के किरायों में अरसे से कोई इजाफा नहीं हुआ है। छोटी दूरी के सफर के मामले में रेलवे का किराया बेहद कम है, जबकि होना ये चाहिए था कि छोटी दूरी के लिए लोग सड़क परिवहन और क्षेत्रीय रेल कॉरिडोर का ज्यादा इस्तेमाल करें। सरकार इसके गंभीर नतीजों से अनजान सी लगती है।
रेलवे सामान को आपके घर तक नहीं पहुंचाता। आने वाले समय में उसे भी बदलना होगा। जिस तरह अमेरिका, यूरोपीय संघ, रूस, चीन आदि में रेलवे के कामकाज में बदलाव आ रहा है और वे सामान को घर तक पहुंचाने के लिए तमाम एजेंसियों से करार कर रहे हैं, वैसे ही भारतीय रेलवे को भी करना होगा। रेलवे को सड़क नेटवर्क ऑपरेटर्स से करार करके यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी सेवाएं प्रतिस्पर्धी, सुविधानजनक और विश्वसनीय हों। कारण, पार्सल और छोटे-मोटे सामान के सेगमेंट में रेलवे को सालाना 1,100 करोड़ का नुकसान हो रहा है।
इसके साथ ही रेलवे को सरकारी मानसिकता से निकलना होगा। इसे खुद को ऐसी कॉरपोरेट इकाई में बदलना होगा जिसकी प्रतिबद्धता माल ढुलाई और यात्री परिवहन में तो हो, लेकिन वह आर्थिक दृष्टि से न केवल आत्मनिर्भर हो, बल्कि मुनाफा कमाने वाला भी हो। दुनिया की ज्यादातर रेलवे एक स्वायत्त कॉरपोरेट निकाय बन चुकी हैं, जबकि भारतीय रेल अब भी सरकारी विभाग की सोच से बाहर नहीं निकल पाया है।
रेलवे भारत का एक बड़ा उद्यम है। इसका आकार विशाल है। लेकिन अपने विशाल आकार, शानदार अतीत को देखकर इसे आत्ममुग्ध नहीं होना चाहिए क्योंकि हमने तमाम बड़ी कंपनियों को वक्त के साथ अप्रासंगिक होते, बिखरते देखा है। रेलवे को भी खुद को बदलना होगा, नई तकनीकें अपनानी होंगी, वक्त की जरूरतों के लिहाज से खुद को बेहतर, प्रतिस्पर्धी और सक्षम बनाए रखने पर ध्यान देन होगा। आज इसका दोरामदार संभाल रहे लोगों की जिम्मेदारी है कि आने वाले कल की कसौटी पर रेलवे के वर्तमान को कसें, उसकी तैयारी करें, रेलवे की सक्षमता बढ़ाएं।
(लेखक कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के पूर्व महानि देशक हैं)
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