मुसलमानों के बाद ‘बीजेपी राज’ में दलित निशाने पर...
हाल ही में उत्तर प्रदेश में एक दलित युवक की बेरहमी से पिटाई और उसका वीडियो बनाकर वायरल किया जाना इस बात का सबूत है कि बीजेपी की सरकारों में मुसलमानों के बाद अब दलित निशाने पर हैं।
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर में मकर सक्रांति की पूर्व संध्या भीम आर्मी के सदस्य विपिन की पिटाई करते वक्त वीडियो बनाने और उसे सार्वजनिक करने की घटना को बीजेपी सरकार के दलित विरोधी होने से जोड़कर देखने के कई कारण हैं।
पहला कारण यह है कि उत्तर प्रदेश देश में दलित अत्याचार की घटनाओं में पहले नंबर पर हैं। दूसरा कारण, जिस राज्य में बीजेपी की सरकार बनती है, वहां दलित उत्पीड़न करने वालों को ना जाने किस तकनीक से यह संदेश मिल जाता है कि बीजेपी के शासन में उन्हें डरने की जरुरत नहीं है। उदाहरण के तौर पर, हिमाचल प्रदेश में अभी ‘जुमा-जुमा आठ दिन’ पहले ही बीजेपी की सरकार बनी है और वहां दलित साहित्य के रुप में चर्चित ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा ‘जूठन’ को शिक्षण संस्थानों ने पाठ्यक्रम से हटाने के लिए हामी भर दी है। ‘जूठन’ के खिलाफ यह आरोप लगाया जा रहा है कि इससे जातिवाद को बढ़ावा मिलता है। ‘जूठन’ ओमप्रकाश वाल्मीकि के निधन से वर्षों पहले लिखा गया था और वह दलित साहित्य के रुप में पूरे देश में लोकप्रिय है।
तीसरा कारण, बीजेपी के शासन में दलित उत्पीड़न का वीडियो बनाने का दुस्साहस हमलावरों में साफ दिखता है। गुजरात के उना में दलितों की सरेआम पिटाई से लेकर राजस्थान में अफराजूल की शुंभ प्रसाद रैगर द्वारा हत्या और दूसरी कई घटनाओं के साथ 13 जनवरी को उत्तर प्रदेश के मुज्जफर नगर में दलित युवक की सरेआम पिटाई का वीडियो बनाने की घटना शामिल है।
बीजेपी के शासन में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की कहानी तो भीम आर्मी पर हमलों से ही शुरु होती है। योगी की सरकार बनते ही सहारनपुर के इलाके में दबंग जातियों द्वारा दलितों के संगठन भीम आर्मी पर इस तरह हमला हुआ जैसे दबंग जातियां योगी सरकार को दलितों पर हमले की सलामी दे रही हैं। भीम आर्मी इस इलाके में दलितों के बीच रचनात्मक कार्यों के साथ अपने जुझारुपन की वजह से खासा लोकप्रिय है।
यदि अप्रैल 2017 से पश्चिम उत्तर प्रदेश की घटनाओं पर सरसरी नजर डालें, तो वहां दलित उत्पीड़न के आयामों को समझा जा सकता है। वहां, शब्बीरपुर में पहली बार गैर सुरक्षित क्षेत्र से कोई दलित ग्राम प्रधान निर्वाचित हुआ। सहारनपुर के धूधली गांव में 14 अप्रैल को दलितों ने डा. भीमराव अम्बेडकर का जन्म दिवस मनाया था। लेकिन बीजेपी के नेता और सासंद 20 अप्रैल को डा. अम्बेडकर की शोभा यात्रा निकलाना चाहते थे। क्योंकि वे डा. अम्बेडकर का बीजेपीकरण करना चाहते हैं और वहां के मुसलमानों के विरोध में दलितो को खड़ा करने के लिए “शोभायात्रा” का इस्तेमाल करना चाहते थे।लेकिन दलितों और खासतौर से भीम आर्मी के सक्रिय सदस्यों ने साम्प्रदायिक दंगों के लिए अपना इस्तेमाल होने नहीं दिया। इस बात को लेकर बीजेपी की समर्थक दबंग जातियों में भीम आर्मी के सदस्यों के खिलाफ चिढ़ मच गई।
5 मई 2017 को मुख्य मंत्री योगी के सैकड़ों सजातीय दबंगों ने सैकड़ों की संख्या में दलितों के घरों पर हमला कर दिया। उन्हें आग के हवाले कर दिया गया। भीम आर्मी के कई सदस्यों सहित 45 दलितों को शब्बीरपुर में हमले के बाद पकड़ लिया गया, इनमें से कई भीम आर्मी के सदस्य भी नहीं थे। भीम आर्मी के संस्थापक चन्द्रशेखर आजाद रावण तब से जेल में बंद हैं। उन्हें अदालत ने जमानत भी दे दी, लेकिन योगी सरकार पहले ही यह फैसला कर चुकी थी कि चन्द्रशेखर को जेल से बाहर नहीं आने देना है। योगी सरकार ने जमानत की सूचना मिलते ही चन्द्रशेखर के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगा दिया। 9 मई को दलितों के विरोध प्रदर्शन पर फिर से पुलिस द्वारा हमला किया गया।
इसी कड़ी में मुजफ्फर नगर में 13 जनवरी को भीम आर्मी के 27 साल के सदस्य विपिन को उस समय पकड़ कर मारा पीटा गया, जब वह मोटर साइकिल से वापस लौट रहा था। उस पर आरोप लगाया गया कि उसने हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीरें फाड़कर डा. अम्बेडकर की तस्वीरें लगा दी हैं।
दरअसल, दलितों और मुसलमानों के खिलाफ हमले के जो बहाने सामने आते हैं वह हमलावरों के आपराधिक चरित्र और राजनीति के घालमेल का उदाहरण हैं। गुजरात में एक दलित युवक की इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि वह गरबा का वह कार्यक्रम देख रहा था जिसमें सवर्ण शामिल थे। राजस्थान में शंभू प्रसाद रैगर ने लव जिहाद का बहाना बनाया जबकि पुलिस जांच में ये बात सामने आई है कि अफराजूल एक मामूली मजदूर था। लेकिन रैगर ने अपने अपराधों पर पर्दा डालने के लिए हिन्दूत्ववादियों के लव जेहाद की आड़ ले ली और उन्होंने उसका समर्थन भी किया और उसके लिए पैसे भी जुटाए। मुज्जफर नगर की घटना की तरह इन घटनाओं का भी वीडियो तैयार किया गया था। वीडियो तैयार करने का मकसद पूरे दलित और मुस्लिम समाज के भीतर दहशत पैदा करना है।
मुजफ्फर नगर की घटना से मुजफ्फरपुर की घटना याद आ गई। मुजफ्फरपुर में जून महीने में टीवी चैनल एनडीटीवी के एक पत्रकार से बजरंग दल के सदस्यों ने जबरदस्ती ‘जय श्री राम’ कहने के लिए धमकाया था। पत्रकार अतहरुद्दीन मुन्ने भारती ने आरोप लगाया कि बजरंग दल के सदस्यों ने उन्हें धमकी दी कि अगर उन्होंने ऐसा नहीं कहा तो वो उनकी कार में आग लगा देंगे। वे अपनी पत्नी और माता-पिता के साथ कार में सवार थे।
मुजफ्फर नगर में दलित युवक को पीटते हुए जय माता दी बोलने के लिए धमकाया गया। समाज में दबंगता बनाए रखने वालों के लिए हिन्दूत्वदियों के नारे और उनकी समर्थक सरकार सबसे ज्यादा मुफीद होती हैं। उत्तर प्रदेश की इस घटना से पहले महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में दलितों के खिलाफ हमले की घटना से दलितों में आक्रोश देखा गया था। इसके साथ ही यह भी गौरतलब है कि जिस दिन सोशल मीडिया पर भीम आर्मी के सदस्य विपिन की पिटाई का वीडियो वायरल हो रहा था, उसी दिन पूरे देश में दलित छात्र रोहित वेमुला की याद में दलित उत्पीड़न विरोधी कार्यक्रम चल रहे थे। बीजेपी की सरकारों में सबसे ज्यादा दलित उत्पीड़न विरोधी कार्यक्रम इसीलिए हो रहे हैं कि दलित डरने को तैयार नहीं है।
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